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अशोक तू अब बन गया सम्राट अशोक
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रिपोर्टः- विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। सदर बाजार स्थित बगुलिया मोहल्ले का रहने वाला एक अदना सा जनरेटर मिस्त्री अशोक दीक्षित अब सम्राट अशोक बन गया है। यह कमाल कोरोना द्वारा उसे दी गयी सद्बुद्धि का है।
लगभग कई वर्ष पूर्व अशोक मुझसे दस हजार रुपये यह कह कर ले गया था कि बहुत अर्जेंट कार्य से मुझे जरूरत पड़ गई है, कुछ दिन में दे दूंगा। मैंने सरल सहज स्वभाव से उसे रुपए दे दिए। महीना-दो महीना यहां तक कि साल गुजरा, दो साल गुजरे, आखिर कई साल चले गए, अशोक ने करवट नहीं ली। मैंने उसे कई बार समझाया कि भाई ऐसा क्यों करते हो? मैं भी रोजाना कुआं खोदकर पानी पीने वालों जैसी स्थिति का आदमी हूं। मुझे भी पैसों की जरूरत रहती है, मेरे खर्चे भी बहुत हैं और आमदनी सीमित। लेकिन अशोक के ऊपर कोई असर नहीं हुआ।
बाद में पता चला कि अशोक ने शहर भर से इसी प्रकार बहुतों से रुपये ले रखे हैं। हो सकता है यह उसकी मजबूरी रही हो, क्योंकि उसकी आमदनी सीमित थी और गृहस्थी के खर्च ज्यादा थे। खैर जो भी है उसकी वो जाने।
फिर मैं भी चुप मार कर बैठ गया, करता भी क्या? ऐसे और भी अनेक लोग हैं जो ले गए और फिर देने का नाम नहीं। मैं ऐसे लोगों से झगड़ता नहीं, सोच लेता हूँ कि हो सकता है पिछले जन्म में मैंने इनके रुपये मार लिए होंगे। ईश्वर अब हिसाब चुकता कर रहा हो।
गत दिवस अशोक अचानक आया और जेब से दस हजार रुपये निकाले तथा मुझे देकर बोला कि भाई साहब यह लो अपने रुपये, दिन ज्यादा हो गए इसके लिए क्षमा करना। मैंने कहा कि अशोक तेरा हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? माजरा क्या है, तूने तो शहर भर के लोगों को चकमा दे-देकर काफी रुपये मार रखे हैं और अब अचानक क्या बात हो गई?
अशोक बोला कि भाई साहब मैं क्या बताऊं, आप खुद ही समझ लो। इस माहौल को देखकर मेरी आंखे खुल गई है और फिर बोला कि यदि कल को मुझे कुछ हो गया तो फिर मेरे पीछे मेरी संतानों के लिए लोग कहेंगे कि यह उसी बेईमान की औलाद हैं, जिसने हमारे रुपये मार लिए और कहेंगे कि अच्छा हुआ मर गया कम्बख्त। अशोक यहीं नहीं रुका और बोला कि भगवान के यहां भी मुझे शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी सो अलग। ऊपर जाकर भी मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगा। ऊपर मेरी यह गति होगी और नीचे मेरे बच्चों की ऐसी दुर्गति होगी, जो वह भी दुनिया वालों के सामने मुंह छिपाए फिरेंगे। यह मैं नहीं चाहता।
मैंने पूछा कि ये पैसे तेरे पास आये कहां से? वह बोला कि मैंने अपना छोटा सा घर बेच दिया है। मैं सबसे पहले शहर भर के लोगों के पैसे चुकाऊंगा और अब मैं मर भी जाऊंगा तो भी कोई गम नहीं, पर मरूंगा तो चैन से मरुंगा और मरने के बाद लोग कम से कम मेरे ऊपर थूकेंगे तो नहीं और ना ही मेरी औलाद के लिए कहेंगे कि यह उसी बेईमान अशोक की औलाद है। उससे पूछा कि अब कहां रहेगा तो बोला कहीं किराए पर रहूंगा।
मेरा मन अशोक के प्रति श्रद्धानवत हो उठा। मेरी आंखें नम हो गई और मैंने उसे गले से लगा लिया तथा मुंह से स्वतः ही निकला कि अशोक तू अब अशोक नहीं रहा, अब तो तू सम्राट अशोक बन गया है। भगवान तुझे लम्बी उम्र दे और तेरे बच्चे जीते रहें।
रुपये मारने वाले लें अशोक से प्रेरणा
अशोक की इस कहानी से उन सैकड़ों धनाढ्यों को प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने जीएसटी और नोटबंदी की आढ़ में अनगिनत लोगों की रकम मार ली। ब्याज तो दूर मूल में से भी एक रुपया वापिस नहीं दिया। क्या ऐसे लोग जिनके पास अकूत संपत्ति है? उसमें से थोड़ी सी जमीन जायदाद बेचकर इन बेचारों का पैसा नहीं दे सकते?