चमत्कारिक घटनाओं से सुसज्जित रहा है देवराहा बाबा का संपूर्ण जीवन

चमत्कारिक घटनाओं से सुसज्जित रहा है देवराहा बाबा का संपूर्ण जीवन
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रिपोर्टः- कान्ती प्रसाद गुप्ता

मथुरा। योगिनी एकादशी के दिन ब्रह्मांड फाड़ कर देह त्यागने वाले देवराहा बाबा का जीवन अनेकानेक चमत्कारिक घटनाओं से सुसज्जित रहा है। आज दुनियां में जो वैश्विक महामारी फैल रही है, उसकी भविष्यवाणी देवराहा बाबा ने पूर्व में ही कर दी थी। ऐसी ही कुछ चमत्कारिक घटनाओं का वर्णन यहां मैं आपके समक्ष कर रहा हूँ।

कहा जाता है कि देवराहा बाबा करीब 900 साल तक जिन्दा थे। बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल तक मानते हैं।

उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवराहा बाबा। बाबा अष्टांग योग में पारंगत थे। श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे, जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।

श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। जनश्रुति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। लोगों में विश्वास है कि बाबा जल पर चलते भी थे।

यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।

लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। उनकी इच्छा के विरुद्ध अगर कोई उनकी फोटो लेता तो उस फोटो में उनकी तस्वीर नहीं आती थी। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।

अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवराहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधु-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था।

वृंदावन में यमुना पार देवराहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। अफसरों द्वारा हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए जिसकी भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है।

बाबा ने कहा कि यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। इस पर बाबा ने ही अफसरों को तसल्ली दी और कहा कि घबड़ाओ मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि बात है कि दो घंटे बाद ही पीएम आॅफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा।

पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी जैसी विभूतियों ने पूज्य देवराहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ किया था।

देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवराहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।

बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हजारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया।

बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था। देवराहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।

ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं।

प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया-हां, कम से कम देवराहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति रहे डाॅ. राजेंद्र प्रसाद जब कोई दो-तीन साल के थे, तब वह अपने माता-पिता के साथ बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन् 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है।

कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्टि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्यूटर की तरह।

बाबा की बलिष्ठ कदकाठी भी थी लेकिन देह त्यागने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकड़ी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे।

खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना हासिल करने के लिए सैकड़ों लोगों की भीड़ हर जगह जुटती थी। और फिर अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया।

लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का मिजाज बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे। डाॅक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि पारा अंतिम सीमा को तोड़ निकलने पर आमादा है। 19 तारीख को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंद्र को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया।

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