आखिर मैं अभी तक सुधरा ही नहीं

आखिर मैं अभी तक सुधरा ही नहीं
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रिपोर्ट :- विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। हमारे घर में भगवान श्री कृष्ण की एक मनोहारी छवि है। मेरे जन्म से भी काफी समय पूर्व से उसकी पूजा होती चली आ रही है। मेरा जन्म होने के पहले से ही हमारी माता जी छवि के आगे खड़े होकर प्रार्थना किया करती थीं कि बालक तेरे जैसा हो। यह बात हमारे पिताजी स्व. लाला नवल किशोर जी अक्सर बताया करते थे।

मेरा नाम कृष्ण रखा, कृष्ण से किसन और किसन से केशव, किशोर और किस्सो आदि नामों से घर वाले पुकारने लगे। जब स्कूल में दाखिला मिला तो विजय कुमार नाम लिखाया। माता जी की प्रार्थना आंशिक रूप से भगवान ने स्वीकार कर ली। आंशिक रूप से इसलिए कि मेरे अंदर भगवान श्रीकृष्ण के सद्गुण तो थे नहीं बल्कि उनके कुछ ऐसे लक्षण आए जो नहीं आने चाहिए यानी कि उत्पातीपन। मैं बचपन से ही उधमी रहा।

पढ़ाई लिखाई में शुरू से ही मेरा मन नहीं लगता था। अंटा गोली (कन्चे) गुल्ली-डंडा खासकर पतंग उड़ाना मेरा शौक रहा। एक बार तो पतंग लूटने के चक्कर में मेरा कंधा ही टूट गया जो कई माह में ठीक हुआ। पतंग उड़ाने का शौक तो मुझे अब भी है किंन्तु उड़ाने का समय ही नहीं मिलता। मेरे उत्पाती स्वभाव के कारण कभी-कभी पिटाई भी होती और हाथ-पांव बांध कर बैठा दिया

जाता। उससे बचने के तरीके भी मेरे अजब गजब के थे। कभी तो सरकंडे से बने मूढ़े के नीचे छुप जाता, कभी ऊपर बने गुलम्बरों में दुबक जाता और कभी टांड़ पर रखे सामानों के पीछे दम साध कर बैठा रहता था। पूरे घर में घंटों की खोज के बाद जब हाथ आता तब तक सभी का गुस्सा काफूर हो चुका होता और घरवाले हंसते-हंसते लोटपोट हो जाते।

जब मैं थोड़ा बड़ा हुआ और उधमी स्वभाव घटने के बजाय बढ़ने लगा तो घरवाले परेशान होने लगे। खासकर हमारी माताजी बहुत झुंझलातीं थीं। हमारी बुआ जिनके कोई संतान नहीं थी, मुझे बहुत लाड़ प्यार करती थी। माताजी की पिटाई से बुआ ही अक्सर बचाती थीं। माताजी और बुआ अक्सर सलाह करती थी कि कैसे इसे सुधारा जाए? खैर दिनोंदिन मेरा ऊधम और घरवालों की चिंता बढ़ती गई। अक्सर घर वाले कहते थे कि तू नहीं सुधरेगा तो तुझे गुरुकुल में भेज देंगे।

मुझे साधारण स्कूल से हटाकर मोंटेसरी स्कूल में दाखिल कराया और एक के बाद एक कई स्कूलों में मेरे एडमिशन का दौर चला। मैं जैसे तैसे कभी स्कूल जाने के दाव में आता तो घर से स्कूल जाने की कहकर कभी बुआ और कभी नानी के घर भाग जाता। कभी-कभी स्कूल में भी फुटे से पिटाई होती और मुर्गा भी बनने का सौभाग्य मिल जाता। बात बढ़ती गई। जब मेरा ऊधम शांत नहीं हुआ तो बुआ और माताजी तमाम सयानों के पास ले गई और

झाड़-फूंक कराई। हर मंगल और शनिवार को झाड़-फूंक होती, कोई कहता इसे ऊपरी हवा है, 2 महीने में ठीक हो जाएगा। कोई कोई कहता 6 महीने में। जब सालों में भी मेरा ठीक होने का नंबर नहीं आया तब फिर साधु संतों की शरण में मुझे ले जाया जाने लगा। गोवर्धन में कई साधु महात्माओं के यहां माताजी और बुआ लेकर गई। कोई लाभ नहीं। ज्योतिषियों को जन्मपत्री दिखाई गई तथा जो-जो उपाय बताये, वह सभी किए, किंतु नतीजा सिफर।

एक बार रमणरेती वाले सच्चे और दुर्लभ संत बाबा हरनाम दास जी के पास रंगेश्वर स्थित अनेक आश्रम में माता जी और बुआ ले गई। बाबा ने आशीर्वाद दिया और थोड़ी सी भभूति देकर कहा कि माई इस बालक को रोजाना थोड़ी-थोड़ी माथे पर लगाना और जीभ पर डालकर चटा दिया करना। भभूति रोजाना दी जाने लगी। मैंने सोचा कि भभूति से मैं ठीक हो जाऊंगा, यह तो बड़ी अच्छी बात है। मुझे भी सुधरने का चस्का लगा और भभूति की पूरी पुड़िया को एक गिलास पानी में घोरकर पी डाला क्योंकि मुझे सुधरना जो था, वह भी जल्दी।

जब माता जी और बुआ को पता चला तो उन्होंने अपना माथा ठोक लिया। फिर बाबा हरनाम दास जी के पास ले गईं और उन्हें बताया कि बाबा यह तो पूरी पुड़िया को पानी में घोरकर पी गया। बाबा बहुत हंसे और भभूति की दूसरी पुड़िया देकर उन्होंने हिदायत दी कि अब ऐसा मत करना, वर्ना सुधरने के बजाय और बिगड़ जाएगा। मैंने दोबारा ऐसी गलती नहीं की।

खैर समय निकलता गया और मुझ में कोई सुधार नहीं हुआ। एक दो बार फेल होकर मैं आठवीं तक पहुंचा। परीक्षा हुई तीन विषयों में फेल। अंग्रेजी और गणित तीसरा याद नहीं। अंग्रेजी और गणित का घंटा आते ही तो मानो मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। आज भी मैं जोड़ बाकी तो थोड़ा कर लेता हूँ किन्तु गुणा भाग मुझे बिल्कुल नहीं आते।

खैर जब आठवीं में भी मैं फेल हुआ तो मास्टर साहब को पच्चीस रुपये की रिश्वत दी और उन्होंने पता नहीं कैसे मुझे पास का प्रमाण पत्र दिलवा दिया। स्कूल था सुभाष इंटर काॅलेज और इसके बाद घर वालों ने कहा कि बस हो गई तेरी पढ़ाई और मुझे पिताजी ने अपने साथ कामकाज में लगा लिया। परिवार में मेरे अलावा सभी लोग पढ़े लिखे हैं। हमारी सबसे बड़ी बहन गीता देवी ने तो आज से लगभग 60 साल पहले बीए तक की पढ़ाई की थी किंतु मेरी किस्मत में ही कुबड्ड़ होना लिखा था। मुझे इस बात का कोई मलाल नहीं कि मैं पढ़ लिख नहीं पाया क्योंकि कृष्ण ने अपनी उद्दंडता के साथ कृपा भी दी थी। उनकी कृपा और पूर्वजों का आशीर्वाद मेरा सबसे बड़ा संबल है।

मैं यह महसूस करता हूँ कि अब भी मेरा ऊधमीपन जड़ से नहीं गया। बगैर पढ़ा लिखा होने के बावजूदमैं अपनी वर्तमान अनपढ़ वाली जिंदगी से बहुत खुश हूँ। मेरा यह मानना है कि जिंदगी की सफलता और खुशहाली के लिए ए.बी.सी.डी. वाली पढ़ाई कोई जरूरी नहीं। सच्चाई, परमार्थ, नैतिकता और अहिंसा की पढ़ाई यदि हमने पढ़ ली तो ए.बी.सी.डी. वाली पढ़ाई इसके सामने पानी भरती है।

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