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चीन से दुश्मनी की असल जड़ दलाई लामा
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विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। इस बात को नई पीढ़ी के बहुत कम लोग जानते होंगे कि भारत और चीन की सन 1962 से पहले गहरी दोस्ती थी। दोस्ती भी इतनी गहरी कि सुरक्षा परिषद में भारत को स्थाई सदस्य बनाने का न्यौता अमेरिका व अन्य सदस्य राष्ट्रों ने दिया किन्तु पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी उदारता या यूं कहिए कि दोस्ती की प्रगाढ़ता दिखाते हुए भारत के बजाय चीन को जबरन सुरक्षा परिषद का सदस्य यह कहकर बनवा दिया कि इसकी जरूरत हमसे ज्यादा चीन को है। वहीं चीन अब बार-बार वीटो करके भारत के स्थाई सदस्य बनने में रोड़ा बनता चला आ रहा है। नेहरू जी का यह कदम देश हित में एक प्रकार से आत्मघाती था।
चीन और भारत की गहरी दोस्ती वहीं से दुश्मनी में बदल गई जब तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा चीनी हुकूमत से विद्रोह करके भारत आ गए और नेहरु जी ने उन्हें अपने देश में शरण दे दी। इस पर चीन आग बबूला हो गया। चीन ने बार-बार चेतावनी दी कि इसके परिणाम गंभीर होंगे किन्तु नेहरू जी नहीं माने और नतीजा यह हुआ कि चीन ने भारत पर हमला करके मानसरोवर सहित न सिर्फ हमारे बहुत बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया बल्कि बहुत बड़ी संख्या में हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। चीन की लड़ाई ने देश को लगभग पांच दशक पीछे धकेल दिया हालांकि दलाई लामा आध्यात्मिक धर्मगुरु है और बहुत अच्छे नेक व्यक्ति हैं। यह चीन का आंतरिक मामला था और एक व्यक्ति के चक्कर में देश को कितनी बड़ी क्षति हुई यह विचारणीय प्रश्न है।
सन् 62 से पूर्व चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन. लाई जब भारत आये तो उनका ऐसा स्वागत हुआ जैसे कोई देवदूत स्वर्ग से उतरकर आया है। हिंदी चीनी भाई-भाई के ऐसे नारे लगे कि लगने लगा भारत और चीन सगे माजाये भाई हो गए हैं। चीनी राष्ट्रपति माओत्से तुंग और प्रधानमंत्री चाऊ एन. लाई को नेहरु जी भारत का सबसे बड़ा हितेषी मानने लगे।
नेहरू जी की सबसे बड़ी गलती थी कि उन्होंने भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य न बनाकर चीन को बनवाया। उन्होंने ऐसा करके चीन को दोस्ती का उपहार दिया जो देश के साथ बहुत बड़ा धोखा साबित हुआ। दूसरी गलती यह की कि चीन की हुकूमत से बगावत करके आऐ दलाई लामा को शरण दे दी। तीसरी गलती उनकी यह थी कि उन्होंने चीनी नेताओं के ऊपर अत्यधिक विश्वास करके अपने देश की सुरक्षा के ऊपर कोई खास ध्यान नहीं दिया। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद सरदार पटेल जब-जब नेहरू जी से सेना के आधुनिकीकरण की बात करते तो नेहरु जी यह कह कर टाल देते कि हमारे देश को किसी से खतरा नहीं है।
सच मायने में तो नेहरु जी देश के दूरगामी हितों से ज्यादा अपने व्यक्तिगत संबंधों में उलझे रहते थे। उनकी रूचि तो लेडी माउंटबेटन, एलिजाबेथ आदि खूबसूरत महिलाओं में ज्यादा थी जो सर्व विदित है तथा नेहरू जी जिन्हें चाचा नेहरू कहते थे, द्वारा उक्त महिलाओं को लिखे प्रेम पत्र उसके गवाह हैं। इस मामले में आज से लगभग 5 दशक पूर्व ईओ मथाई ने इन सभी मामलों पर एक पुस्तक लिखी थी जिस पर देश-विदेश में काफी चर्चा भी हुई।
चाचा नेहरू के भी चाचा मोहनदास करमचंद गांधी थे जो सर्व विदित है। इस समय इस प्रसंग को बढ़ाना उचित नहीं है किन्तु यह तो मानना ही होगा कि मोहनदास करमचंद गांधी ने बजाय सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाने के जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनवा दिया जो उनकी भयंकर गलती थी। इसी का खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है। वे ही मोहनदास करमचंद गांधी आज देश का सिंबल बने हुए हैं जो देश का दुर्भाग्य है।
चीन को कौन नहीं जानता। यह देश बहुत धोखेबाज, मक्कार, चालबाज और खतरनाक है। लेकिन उसकी अच्छाई यह है कि वहां गद्दारों को तुरंत मौत के घाट उतार दिया जाता है और हमारे देश में गद्दारों को त्वमेव माता च पिता त्वमेव बनाकर रखा जाता है क्योंकि उनके वोट जो लेने हैं। सन 1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया था तब वामपंथी गद्दारों ने कहा था कि हमला चीन ने भारत पर नहीं बल्कि भारत ने चीन पर किया है। चीन की दूसरी अच्छी बात यह है कि वहां वोट तंत्र नहीं है और यही कारण है कि चीन पूरे विश्व पर हावी हो रहा है। हमें चीन को केवल कोसना ही नहीं चाहिए उससे सबक भी लेना चाहिए।
हमारे देश में लोकतंत्र नहीं है, हमारे देश में तो वोटतंत्र है और मेरी नजर में तो जैसा वोट तंत्र हमारे यहां चल रहा है वह तो कोढ़तंत्र है। भगवान कब इस कोढ तंत्र से निजात दिलाएगा। यदि यही हाल रहा तो मुगलों और अंग्रेजों के बाद कहीं चीनियों का नंबर न आ जाय? वह तो देश का बहुत बड़ा सौभाग्य है जो नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिल गया है, जिसकी वजह से आज पूरी दुनिया उसकी मुरीद है और भारत की लाज बची हुई है। यदि मोदी ना होते तो फिर क्या होता। उसकी कल्पना करके ही रूह कांप उठती है। ईश्वर मोदी जी को शतायु करें और धन्य है हीराबेन जिसने मोदी जैसा लाल जना। जय हिंद जय भारत।