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उन्नीसवीं सदी का सबसे भयानक हत्याकांड
विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। घटना लगभग छः दशक पुरानी है। अवसर था मुड़िया पूनों का। समय लगभग चार बजे प्रातः काल का था। मथुरा में यमुना नदी पर बने रेल के पुल पर बड़ी तेजी के साथ एक सवारी गाड़ी गुजरी और देखते ही देखते सैकड़ों लोग जो रेलगाड़ी की छत पर बैठे थे, भयानक चीत्कार और करुड़ क्रंदन के साथ काल के गाल में समा गऐ तथा सैकड़ों जीवन भर के लिए अंग भंग हो गऐ। यह एक दुर्घटना नहीं थी बल्कि शैतानियत से भरे एक मुस्लिम ड्राइवर द्वारा जानबूझकर किया गया हत्याकांड था जिसकी कल्पना करते ही आज भी मेरा दिल दहल उठता है। मैं उस समय लगभग सात-आठ वर्ष का था तथा मेरे घर के निकट ही वह पुल है। मैंने अपनी आंखों से ट्रकों में भर भर कर कटी फटी लाशें जाती देखीं थीं।
घटनाक्रम के अनुसार गोवर्धन की परिक्रमा करने के लिए हजारों लोग रेलगाड़ी के डिब्बों की छतों पर बैठकर आ रहे थे। पिछले राया स्टेशन पर गाड़ी रुकी तो ड्राइवर व अन्य रेलवे कर्मचारियों ने छतों पर बैठे परिक्रमार्थियों से कहा कि नीचे उतर जाओ, वर्ना मथुरा में यमुना पर बने पुल के ऊपर लगी कैंचियों से कट कर मर जाओगे लेकिन किसी ने उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि अक्सर हर मुड़िया पूनों पर सभी रेलगाड़ियों की छतों पर बैठकर यात्री आते थे और पुल से पहले ड्राइवर गाड़ी रोक देता था तथा यात्री उतर कर गोवर्धन जाने के लिए बस अड्डे की ओर बढ़ जाते थे।
यात्रियों के न उतरने से रेलगाड़ी का ड्राइवर जो कट्टरपंथी मुसलमान था, एकदम भड़क गया और उसके ऊपर खून सवार हो उठा। उसने मन ही मन उन्हें तड़फा-तड़फा कर मारने की ठान ली। राया स्टेशन पार करते ही उसने रेलगाड़ी की रफ्तार एकदम तेज कर दी तथा बहुत तेज गति से पुल के अंदर गाड़ी को घुसा दिया।
बस फिर क्या था! एकदम प्रातः के सन्नाटे में भयंकर चीत्कार मच गया। सैकड़ों लोग काल के गाल में समा गऐ और सैकड़ों जीवन भर के लिए अंग भंग हो गऐ। चारों ओर खून ही खून बिखर गया। पूरी गाड़ी के डिब्बों की छतें यहां तक कि खिड़की-दरवाजे खून से लाल हो गये। जो लोग खिड़की के सहारे बैठे थे या दरवाजे पर खड़े थे उनके ऊपर भी खून की बौछारें आईं। पुल की सड़क भी खून से लाल हो गई। चारों तरफ शरीरों के चिथड़ौं व खून से सड़क पट गई और यमुना का पानी भी कुछ देर के लिये लाल हो गया। उल्लेखनीय है कि पहले इस पुल पर सड़क थी और सड़क के ऊपर से बस, कार, ट्रक, तांगा, इक्का आदि सभी वाहन गुजरते थे और कोई पुल यमुना पर था भी नहीं। जब रेल आती तब पुल के दोनों ओर फाटक लगाकर रास्ता बन्द कर दिया जाता था।
उस नर पिशाच ड्राइवर ने पुल पार करके भी गाड़ी को नहीं रोका और सीधा मथुरा कैंट स्टेशन पर ही लाकर दम लिया। उसके सहायक ड्राइवर ने उसे ऐसा करने से बहुत रोका किन्तु उस नराधम ने उसकी एक नहीं सुनी। उसके ऊपर तो शैतान सवार था। इस भयानक हादसे के बाद पूरे देश में शोक की लहर व्याप्त हो गई तथा न सिर्फ मथुरा के इस पुल की कैंचियों को ऊपर किया गया, बल्कि पूरे देश में जहां-जहां भी पुलों की कैंचियां नीचे थी सभी को ऊपर किया गया। इस दुखद हत्याकांड की याद करके आज भी बुजुर्ग लोग सिहर उठते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस हादसे में मृतकों की संख्या लगभग ढाई सौ आंकी गई किन्तु वास्तविकता में यह संख्या बहुत ज्यादा थी, क्योंकि उस समय यमुना उफान पर थी और काफी लोग यमुना में भी गिर गऐ। उसी रेल से यात्रा कर रहे चश्मदीद सेठ बाड़ा निवासी मास्टर रामबाबू शर्मा बताते हैं कि वह हाथरस अपनी बहन के यहां गए हुऐ थे। उनके बहनोई उन्हें बड़ी मुश्किल से डिब्बे के अंदर ठूंस कर बिठा गऐ थे। रामबाबू शर्मा कहते हैं कि अनेक मृतकों की जेब से पैसे निकाल-निकाल कर पुलिस वालों ने उनके शवों को यमुना में फेंक दिया तथा कुछ स्थानीय लोग भी बजाय मदद करने के मृतकों व घायलों की जेब टटोलते देखे गऐ। इस हृदय विदारक हादसे की याद करके शर्मा जी कहते हैं कि जिस मुस्लिम ड्राइवर ने यह हत्याकांड किया। ईश्वर ने उसे अपने किये की सजा कुछ समय बाद ही दे दी यानीं कि एक वाहन दुर्घटना में घायल होकर उसकी बड़ी दर्दनाक मौत हुई। यही नहीं उस दुर्घटना में उसके कुछ अन्य परिजन भी मारे गऐ। ऊपर वाले के यहां देर है अंधेर नहीं।