चतुर राजा और लालची बालक

चतुर राजा और लालची बालक
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दिवंगत राजा बच्चू सिंह 

पुरानी यादों के झरोखे से

विजय कुमार गुप्ता

मथुरा। बात लगभग पचपन छप्पन साल पुरानी है। भरतपुर के राजा बच्चू सिंह मथुरा से लोकसभा का चुनाव लड़े थे। चुनाव से पूर्व जनसम्पर्क के दौरान खुली कार में होली गेट से विश्राम घाट की ओर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए जा रहे थे।

कुछ बच्चे कार के पायदान पर खड़े होकर धीरे-धीरे चलती कार की सवारी और चुनावी माहौल का मजा ले रहे थे। पुराने जमाने की कारों में पायदान हुआ करते थे। एक बच्चा लगभग 10-12 वर्ष का होगा, इस तमाशे को गाड़ी के पायदान पर खड़े-खड़े देख रहा था। अचानक उस बच्चे को क्या सूझा कि जेब से अधन्ना निकाला और राजा बच्चू सिंह को दे दिया। पुराने समय में दो पैसे का अधन्ना हुआ करता था तथा चार पैसे की इकन्नी होती थी।

राजा बच्चू सिंह ने बच्चे से अधन्ना लेकर उसे शाबासी दी तथा अपने साथ बैठे लोगों से कहा कि देखो इस बच्चे को। मेरे चुनाव प्रचार में सहयोग करने की इसकी भावना कितनी अच्छी है। इसके बाद राजा बच्चू सिंह ने जेब से दो रुपए का नोट निकाला और इनाम स्वरूप बच्चे को दे दिया। बच्चे ने कई बार मना किया किन्तु राजा बच्चू सिंह ने जबरदस्ती उसकी जेब में दो रुपए रखकर कहा कि बेटे मेरी ओर से तुम्हें इनाम है। इनाम के लिए मना नहीं करते। खैर बच्चा राजी हो गया और दो रुपए का नोट लेकर आ गया। इसके बाद उसने घर और स्कूल में सभी को नोट दिखाया तथा पूरा किस्सा सुनाया। यह बात तो यहीं समाप्त हो गई लेकिन असली बात आगे शुरू होती है।

अब बच्चे के सर पर लालच सवार हो गया। बच्चा वैसे तो गणित में एकदम फिसड्डी था किन्तु लालच ने उसका दिमागी गणित तेज कर दिया। उसने हिसाब लगाया कि जब अधन्ना दिया तो दो रुपए मिले और राजा बच्चू सिंह के जीतने पर 11 रुपए की माला पहनाऊंगा तो कम से कम सौ रुपए का नोट तो मिलेगा ही।

बस फिर क्या था, फिर तो उसने अपने जोड़े हुए पैसे एकत्र करके गिने जो ग्यारह रुपए में काफी कम बैठे। उसने अपने भाई बहनों से कुछ पैसे उधार लिए और एक-एक रुपए के नए नोटों की माला बनाकर रख ली तथा राजा बच्चू सिंह के जीतने के दिन का इंतजार बेसब्री से करने लगा। वह दिन भी आ गया, राजा बच्चू सिंह प्रचंड बहुमत से जीते और उनके विजय जलूस की तैयारी असकुण्डा बाजार स्थित उनकी भरतपुर वाली हवेली में होने लगी। वह बालक उस माला को लेकर वहां पहुंच गया। जैसे ही राजा बच्चू सिंह हवेली से निकलने लगे बालक ने तुरन्त माला निकाली और राजा साहब के गले में डाल दी। चतुर राजा बच्चू सिंह ने माला उतारी और अपने चेले चपाटों में से किसी एक को दे दी तथा बालक की तरफ देखा भी नहीं और आगे बढ़ गए।

अब क्या गुजरी होगी उस बालक के ऊपर इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। उसकी तो एकदम जान सी निकल गई कि पूछो मत। ऐसा सदमा लगा कि घर आकर घंटों चुपचाप बैठ अपने किए पर पछताता रहा।

राजा बच्चू सिंह मथुरा के एकमात्र ऐसे सांसद हुए जो जीतने के बाद फिर कभी लौटकर मथुरा नहीं आऐ। या तो भरतपुर या फिर दिल्ली उनका ठिकाना रहा। वे पियक्कड़ बहुत ज्यादा थे। एक बार गोवर्धन में गर्की (जल प्लावन) हो गई तथा चारों और वर्षा का पानी भर गया। वहां के लोगों का एक दल उनसे मिलने दिल्ली गया तथा अपनी व्यथा सुनाई और कहा कि राजा साहब कैसे भी इस पानी को निकलवाओ और हमें बचाओ। राजा बच्चू सिंह उस समय भी नशे में धुत्त थे और उन्होंने जवाब दिया कि 'का मैं जाय पी जाऊं' वे बेचारे सभी लोग अपना सा मुंह लेकर लौट आऐ।

राजा बच्चू सिंह बड़े ठसक मिजाज भी थे उन्होंने अपने चुनाव में किसी से वोटों की भीख नहीं मांगी। सिर्फ हाथ उठाकर या हिलाकर लोगों का अभिवादन करते थे हाथ जोड़ते नहीं थे। उन्होंने हेलीकाॅप्टर से जगह-जगह पर्चे गिरवाऐ तथा उन पर्चों में लिखा था राजा बच्चू सिंह का चुनाव चिन्ह उगता हुआ सूरज। कहीं भी किसी भी पोस्टर या पर्चे में यह नहीं लिखा कि राजा बच्चू सिंह को वोट दो। उन्होंने चुनाव प्रचार में ज्यादा मशक्कत भी नहीं की। सिर्फ कुछ ही घंटे खुली कार में हाथ हिलाते हुए घूमा करते थे। वे निर्दलीय चुनाव लड़े। उनकी ऐसी रौ चली कि पूरे जिले में राजा बच्चू सिंह का डंका बजने लगा और बहुत बड़े अन्तराल से जीते।

इसका मुख्य कारण यह था कि एक बार किसी बात पर हिन्दू और मुसलमानों में ठन गई तथा राजस्थान के मेवाती क्षेत्रों के दबंग मेवों ने ऐलान कर दिया कि हम फलां दिन फलां समय मथुरा के विश्राम घाट पर अपने घोड़ों को यमुना जी में पानी पिलाने आएंगे, कोई रोक सके तो रोक ले। यह बात राजा बच्चू सिंह को बड़ी नागवार गुजरी और उन्होंने भी चैलेंज कर दिया कि मैं भी देखता हूं कि कौन माई का लाल आता है। फिर क्या था उस दिन राजा बच्चू सिंह अपने किले की सेना को लेकर घोड़ों पर बैठकर हथियारों के साथ पहले से ही आ डटे और मेवों को विश्राम घाट आने से पहले ही खदेड़ दिया। मथुरा की जनता ने बच्चू सिंह को प्रचंड बहुमत से जिता कर उनका एहसान उतारा था।

राजा बच्चू सिंह कट्टर हिन्दूवादी थे। भरतपुर राज परिवार में गिरिराज जी की अटूट मानता है। राजा बच्चू सिंह के चुनाव में उनकी जय नहीं बोली जाती थी, सिर्फ एक ही जय घोष होता था 'बोल गिर्राज महाराज की जय'। भरतपुर राज परिवार में अपनी आन-बान-शान की जबरदस्त महत्ता है। इसका जीता जागता उदाहरण है बच्चू सिंह के भाई राजा मानसिंह जिन्होंने अपने झंडे की आन बनाए रखने की खातिर जान भी दे दी। उन्होंने खुद अपने जौंगे (खुली जीप) से राजस्थान के मुख्यमंत्री के हेलीकाॅप्टर को चकनाचूर कर दिया। वह मामला आज भी मानसिंह हत्याकांड के नाम से अदालत में चल रहा है।

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