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देर आऐ दुरुस्त आऐ
फोटो कैप्शन- योगी आदित्यनाथ।
विजय कुमार गुप्ता
मथुरा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लॉकडाउन सप्ताह में दो दिन के स्थान पर एक दिन करने का जो निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है। बल्कि यह कार्य तो काफी समय पहले ही हो जाना चाहिए था। किंतु देर आऐ दुरस्त आऐ वाली कहावत चरितार्थ हुई।
सप्ताह में पांच दिन के स्थान पर कार्य दिवस छ: दिन किए जाने के इस निर्णय से कोरोना को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, क्योंकि दो दिन के बाद भीड़ का दबाव ज्यादा हो जाता था जो अब एक दिन का होने से कम रहेगा। भले ही मुख्यमंत्री का यह कथन हो कि सप्ताह में छ: दिन खोलने का मंतव्य विकास कार्यों में गति लाना है किंतु वास्तविकता यह है कि विकास कार्यों से अधिक राजस्व की आमदनी की अधिक चिंता है।
पहले जब कोरोना महामारी का प्रकोप कम था तब तो देश को लगभग दो माह के लिए जेल बना दिया तथा मजदूरों की जो दुर्गति हुई वह किसी से छिपी नहीं है और अब जब इस महामारी का प्रकोप दिन दूना रात चौगुना बढ़ता चला जा रहा है तब छूट पर छूट दी जा रही है क्योंकि सरकारों ने देख लिया बगैर छूट दिए अब गुजारा नहीं है। आखिर राजस्व के बिना सरकारें चलेंगी कैसे? इसीलिए लॉकडाउन के समय गरीब और असहायों से ज्यादा पियक्कड़ों की सुध ली गई।
मोदी जी ने लम्बे लॉकडाउन का निर्णय तो जनता के भले की सोच कर लिया था किंतु यह निर्णय देशहित के बजाय देशवासियों के अहित वाला ज्यादा सिद्ध हुआ। इसके बावजूद आज भी महा विद्वान लोग यह कुतर्क करते हैं कि लॉकडाउन ने लोगों की मृतक संख्या को साधे रखा। कोरोना न हुआ पिंजरे के अंदर कैद तोता हो गया जैसे उसे लॉकडाउन लगाकर कैद कर लेंगे अगर ऐसा होता तो प्रणव मुखर्जी जैसी हस्ती क्यों हाथ से निकलती।
सच्चाई यह है कि इतने लम्बे लॉकडाउन ने देश की तिजोरी को तो खाली कर ही दिया बल्कि जनता को इस कदर तरसा तरसा कर मारा कि पूंछो मत। हजारों लोग आत्महत्या कर के मर गए यही नहीं पूरे परिवारों द्वारा सामूहिक आत्म हत्याऐं की गईं और लाखों नहीं करोड़ों लोग मानसिक रूप से प्रभावित हुए तथा शरीर एकदम बेकार हो गए और मानसिक विकृतियों का ऐसा तांडव मच रहा है कि मानो देश इंसानों का नहीं चाण्डालों का होकर रह गया है।
ऐसे घिनौने अपराध हो रहे हैं जो सोचा भी नहीं जा सकता। कभी-कभी इस विकृत सामाजिक स्थिति को देख कर तो ऐसा लगता है कि भगवान करें या तो इस दुनिया को एक ही धमाके में समाप्त कर दे या फिर कोरोना महामारी ऐसी फैले की पूरी पृथ्वी पर मानव जाति का वंश चलाए रखने को बीज के रूप में कुछ अच्छे इंसान बचें, और बाकी सब अपनी अपनी करनी के हिसाब से अपनी अपनी गति को प्राप्त हो।