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शिवरात्रि विशेष : वृंदावन में भगवान शंकर गोपी स्वरूप में देते हैं दर्शन
वृंदावन। मन में भगवान शंकर का नाम आते ही चिता भस्म लिपेटे डमरु बजाकर तांडव करते संहारकारी शंकर का स्वरूप आता है । लेकिन आप कल्पना कर सकते है । ऐसे भगवान शंकर का ह्दय इतना भी कोमल हो सकता है कि वह नारी की भांति ममतामयी स्वरूप मे भक्तो को दर्शन दे ।
ऐसा ही एक मंदिर वृंदावन मे गोपीश्वर महादेव का है इसका वर्णन श्री मद्भागवत के रासपंचांध्याय में आता है जब योगेश्वर कृष्ण ने गोपीओ के साथ शरद पुर्णिमा की धवल चांदनी मे वासना रहित महारास किया तो भोले शंकर भी अपने आप को इन दर्शन के योग को नही रोक पाये ओर वृंदावन आकर रास का दर्शन करने के लिए प्रवेश करने लगे किन्तु कृष्ण के अतिरिक्त महारास मे किसी पुरुष का प्रवेश नही था ।
शंकर के दुखी होने पर यमुना जी ने भगवान शंकर को गोपी रूप में परिवर्तित कर दिया जिसके फलस्वरूप भगवान शंकर ने गोपी रूप में अपने उपास्य के दर्शन किए पहली बार महारास में कृष्ण ने भगवान शंकर को गोपीश्वर कह कर उनका स्वागत किया तभी से भगवान शंकर गोपी रूप में गोपीश्वर महादेव के रूप में वृंदावन में दर्शन देते हैं ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान विग्रह गोपीश्वर महादेव की विग्रह कृष्ण के प्रपौत्र ब्रजनाभ द्वारा स्थापित की गई है जो भारत की सर्वाधिक प्राचीन शिवलिंग के रूप में जानी जाती है जहां प्रतिदिन भगवान शंकर की प्रातः काल शंकर के रूप में पूजा होती है। तथा सांयकाल मैं गोपी रूप में नारी के सिंगार में दर्शन होते हैं पूरे भारत में एकमात्र यही शिवलिंग ऐसा है जिनकी गोपी के रूप में पूजा सेवा होती है।
भगवान शंकर के शिवरात्रि में रोली क्यों लगाई जाती है -
भगवान शंकर के पूजन में मलयागिरि चंदन का प्रयोग किया जाता है किंतु मात्र शिवरात्रि की वेला: मैं भगवान शंकर का रोली से टीका किया जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान शंकर पार्वती विवाह की रात्री मे मां पार्वती जी की माता जी ने द्वारचार की रस्मों मे भगवान शंकर का रोली से टीका किया था । उसी परंपरा का निर्वहन करने मे सिर्फ शिवरात्रि को भगवान शंकर को रोली से टीका किया जाता है।
पंo जगदीश ( गुरूजी )