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महंत स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती ब्रह्मलीन, भक्तों में शोक की लहर
वृंदावन। मोतीझील स्थित स्वामी अखंडानंद आश्रम के महंत स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती महाराज ने 92 वर्ष की उम्र में लंबी बीमारी के बाद मंगलवार सुबह अंतिम सांस ली। उनके ब्रह्मलीन होने की खबर लगते ही भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई एवं अंतिम दर्शनों के लिए आश्रम में भक्तों की भीड़ जुटने लगी और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। बता दें कि स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती विश्व की महान विभूति भक्ति वैराग्य के साक्षात स्वरूप उड़िया बाबा महाराज की परंपरा के वीतरागी संत स्वामी अखंडानंद सरस्वती महाराज के मुंबई में दर्शन और सत्संग से प्रभावित होकर उनके साथ श्रीधाम वृंदावन आ गए। उन्होंने 1966 में महाराजश्री से सन्यास दीक्षा ली और सत्संग साधना व सेवा में अपने को समर्पित कर दिया। आश्रम के पूर्व अध्यक्ष ओंकारानंद सरस्वती महाराज ने 2006 में उन्हें महंत व अध्यक्ष पद पर आसीन किया। स्वामी सच्चिदानंद सरस्वती ने 2011 में अपने योग्य शिष्य आचार्य श्रवणानंद सरस्वती को महंत व उत्तराधिकारी बना दिया था। आचार्य महंत स्वामी श्रवणानंद सरस्वती ने बताया कि महाराजश्री 26 जून को प्रात: 2.15 बजे मोतीझील स्थित आश्रम में ब्रह्मलीन हो गए। बताया कि उनका अंतिम संस्कार बुधवार को रामघाट अलीगढ़ स्थित गंगा किनारे पूर्ण विधिविधान से जल समाधि देकर किया जाएगा।
आश्रम के संत डा. स्वामी गोविंदानंद सरस्वती, स्वामी महेशानंद सरस्वती, स्वामी आनंदानंद सरस्वती, स्वामी अभेदानंद सरस्वती, रामचेतन ब्रह्मचारी स्वामी सेवानंद, स्वामी शारदानंद, स्वामी गणेशानंद, स्वामी प्रीतमानंद, विजय दीक्षित, रामावतार पारीक, मनोज शुक्ला, विद्याधर तिवारी, दिवाकर मिश्रा, माधव दुबे, कुलदीप दुबे, हरीश अग्रवाल, आशीष गुप्ता, श्याम रामानी आदि ने महाराजश्री को श्रद्धांजलि अर्पित की।