बाराबंकी: शहर में अराजकता का पर्याय बने बेलगाम मुखबिर, गरीब और कमजोरों को पुलिस कर रही परेशान

बाराबंकी: शहर में अराजकता का पर्याय बने बेलगाम मुखबिर, गरीब और कमजोरों को पुलिस कर रही परेशान
X
पुलिस के मुखबिरों ने भी गरीबो का जीना मुहाल कर रखा है। कोरोना कर्फ्यू का समय मुखबिरों के लिये सुनहरा अवसर साबित हो रहा है।

बाराबंकी: भ्रष्टाचार, अराजकता और कालाबाजारी के खिलाफ कोई आगे आने को तैयार नहीं है। जबकि वर्तमान समय में लागू कोरोना कर्फ्यू के समय जरुरी वस्तुओ की क़ीमत दिन प्रतिदिन आसमान छू रही है। वही पुलिस को गुडवर्क देने वाले मुखबिरो की चांदी, तो क़ानून व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे है।

कोरोना कर्फ्यू के दौरान बहुत सी वस्तुओ की बिक्री पर छूट दी गयी, तो कई वस्तुये प्रतिबंधित है। लेकिन उनके मूल्यो में वृद्धि किसी से छुपी नहीं है। जबकि प्रशासन का दायित्व है की जरूरी वस्तुओ के मूल्यो पर अंकुश लगाये। लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि हो या जिम्मेदार कोई भी आगे आने को तैयार नही है। फलस्वरूप महंगी होती वस्तुओ की क़ीमत से लगातार ठगे जा रही जनता यह अन्याय सहने को मजबूर है।

कोरोना कर्फ्यू की वीकेण्ड घोषणा होते ही सरसो का तेल, रिफाइंड, शक्कर, दाले, गेहूं आदि की कीमतो में खासा उछाल देखने को मिला। बीती 14 अप्रैल से शुरू हुई दामो की बढ़ोत्तरी पर अंकुश लगेगा इसके कोई आसार नज़र नहीं आ रहे है। वही पुलिस के मुखबिरो ने भी गरीबो का जीना मुहाल कर रखा है। कोरोना कर्फ्यू का समय मुखबिरो के लिये सुनहरा अवसर साबित हो रहा है।

शहर के मुखबिरो को मिली पुलिस से छूट को वे अपनी ताकत मान चुके है। जिनके द्वारा कमजोर और असहाय नागरिको से वसूली और झूठे केस में फ़साने का कार्य चरम पर है। मुखबिरो की निजी दुश्मनी पुलिस के प्रसंशनीय कार्य का हिस्सा बन चुकी है।

वही पूँजीपतियों द्वारा की जा रही कालाबाज़ारी, मिलावट और जमाखोरी के मामले में मुखबिर पूरी तरह फेल है। क्योंकि कही ना कही इनकी सरपरस्ती है, या कहे की खौफ खाते है। कुल मिलाकर पुलिस के लिये गुडवर्क का सबसे आसान चारा गरीब और असहाय तबका ही है। क्योंकि नामी गिरामी लोगो को किसी ना किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त है जहाँ मुखबिरो की दाल गलने वाली नही, शहर की पुलिस की नाक के नीचे हो रही कालाबाजारी को सहना जनता जनार्दन के जीवनशैली बन चुकी है।

Tags

Next Story