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इलाहाबाद शहर पश्चिमी सीट पर दो दशक बाद खत्म हुआ माफिया राज, भाजपा-सपा में टक्कर
इलाहाबाद। शहर पश्चिम विधानसभा सीट पर दो दशक माफिया अतीक व उसके भाई का कब्जा रहा है। पहली बार विधानसभा चुनाव में 2004 में राजू पाल ने बसपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। जबकि 1967 से अब तक हुए 16 विधानसभा चुनाव में पहले सबसे अधिक 85 हजार से अधिक मत पाने का रिकार्ड कैबिनेट मंत्री एवं भाजपा नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह का है। हालांकि इसी सीट से कांग्रेस व कांग्रेस आई के टिकट से 1967 और 1980 में सिद्धार्थ नाथ सिंह के ताऊजी चौधरी नौनिहाल सिंह चुनाव जीते हैं।
शहर पश्चिमी में कुल 418849 मतदाता हैं। वर्ष 2017 में कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह कुल 85518 मतदान पाकर जीत हासिल की थी। जबकि इनके प्रतिद्वन्दी रही ऋचा सिंह को 60182 मिला था। तीसरे नम्बर पर रही बसपा प्रत्याशी पूजा पाल को 40499 मत मिले थे।
जबकि इस बार सिद्धार्थ नाथ सिंह माफिया अतीक अहमद के खिलाफ की गई कार्रवाई और क्षेत्र में किये गए विकास कार्यों के आधार पर जनता के बीच वोट मांग रहें हैं। सबसे अहम बात है कि सपा ने ऋचा सिंह के नाम दांव खेला है। जबकि पूर्व पूजा पाल यहां से चुनाव मैदान में नहीं है। बसपा ने गुलाम कादिर को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने इस बार तस्लीमउद्दीन को चुनाव मैदान में उतारा है। वह पांच बार से पार्षद हैं और कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य हैं। आम आदमी पार्टी से अधिवक्ता श्रीमती रावत चुनाव मैदान में है। बसपा का प्रत्याशी का कोई राजनीतिक पृष्टभूमि नहीं है। इस तरह शहर पश्चिमी में भाजपा और सपा की सीधे टक्कर है।
गौरतलब है कि इलाहाबाद शहर पश्चिमी विधानसभा वर्ष 1967 और 1980 कुल 16 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। 1967 चौधरी नौनिहाल सिंह कांग्रेस ने जीत हासिल की। 1969 हबीब अहमद निर्दलीय, 1974 तीरथ राम कोहली भारतीय जनसंघ, 1977 हबीब अहमद जनता पार्टी, 1980 चैधरी नौनिहाल सिंह कांग्रेस (आई), 1985 गोपाल दास यादव लोकदल, 1989 अतीक अहमद निर्दलीय में पहली बार जीत हासिल की। अतीक 1993 तक निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी के टिकट से 1996 में अतीक अहमद का फिर कब्जा हो गया। वर्ष 2002 में अतीक अहमद अपना दल से चुनाव लड़कर फिर कब्जा करने में कामयाब हो गए।
बसपा ने वर्ष 2004 में दबंग प्रत्याशी राजू पाल को मैदान में उतारा वह चुनाव जीतने में कामयाब हो गए। उस चुनाव में वर्तमान डिप्टी सीएम केशव प्रसाद भी चुनाव लड़े थे। लेकिन राजू पाल की हत्या कर दी गई। जिसके बाद हुए उपचुनाव में सपा के टिकट पर वर्ष 2004 में अतीक का भाई खालिद अजीम अशरफ विधायक बने। इस तरह दो दशक तक इस सीट पर माफिया अतीक कब्जा बना रहा। हालांकि बसपा ने स्वर्गीय विधायक राजू पाल की विधवा पत्नी पूजा पाल को मैदान में उतारा। वह तीन बार विधायक विधायक रही। वर्ष 2017 में सपा, बसपा, कांग्रेस एवं भाजपा ने अपने-अपने प्रत्याशी उतारा और भाजपा के टिकट पर सिद्धार्थ नार्थ सिंह चुनाव जीते। वह इस सीट से पहले ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके खाते में 85 हजार से ज्यादा वोट पड़े थे। वह फिर दूसरी बार चुनाव मैदान में है।
जनसंघ ने भी चखा है इस सीट से जीत का स्वाद -
पश्चिम विधानसभा सीट से भाजपा ने भले ही पहली बार 2017 के चुनाव में जीत हासिल की हो लेकिन इस सीट से 1974 में भारतीय जनसंघ भी जीत का स्वाद चख चुकी है। तब जनसंघ प्रत्याशी तीरथ राम कोहली ने भारतीय क्रांति दल के प्रत्याशी हबीब अहमद को महज 176 वोट से हराकर जीत हासिल की थी। विधानसभा चुनाव प्रचार के अन्तिम दिन भाजपा, सपा, कांग्रेस एवं बसपा समेत सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दिया है।