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चार माह बीते परिषदीय स्कूलों में नहीं पहुंची किताबें, शैक्षिक गुणवत्ता महज कागजी
बांदा। एक अप्रैल 2022 से शुरू शिक्षा सत्र के चार माह गुजरने को हैं बेसिक और जूनियर शिक्षा के छात्राओं को पाठय पुस्तकें अभी तक हासिल नहीं हुई। केवल अगर कुछ हासिल हुआ है तो शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शासन से प्रशासन तक सक्रियता जिसमें सतत मूल्यांकन, विद्यालयों का जिले से लगाकर ब्लाक स्तर तक जरूरी है। बीएसए के अलावा गठित समितियां सुबह से लेकर स्कूल खुलने के समय तक कहीं न कहीं शैक्षिक गुणवत्ता को कायम रखने के इरादे से निरीक्षण-परीक्षण में दौड़-धूप कर रही हैं उधर अभिभावक कहते हैं कि शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर छात्रों को मिलने वाले पाठयपुस्तक रूपी हथियार जब नहीं मिले तो कैसे बढ़ेगी शैक्षिक गुणवत्ता?
शिक्षालयों में गुणवत्ता बढ़ाने के लिए शासन-प्रशासन द्वारा तरह-तरह के अभिनव प्रयोग किए जा रहे हैं। अधिकारी सुबह से लेकर स्कूल खुलने के समय तक जिले में स्कूलों के निरीक्षण में लगे रहते हैं उधर बतौर एक नमूना शैक्षिक गुणवत्ता बढ़ाने के नाम पर छात्रों को शिक्षण सत्र के चौथे माह पाठय-पुस्तकें नहीं उपलब्ध करायी। अभिभावक भी इस स्थिति से लगातार वाकिफ हो रहे हैं और तरह-तरह के सवाल उनकी जुबानी बन गए हैं। बिना पाठयपुस्तकों के शैक्षिक गुणवत्ता का स्वरूप क्या होगा इस सवाल के साथ अभिभावक यह भी कहने में संकोच नहीं करते कि एक ओर पढ़ाने वाले शिक्षकों को प्रति स्कूल डीबीटी का काम सौंप दिया गया है जो सुबह से मशीन के साथ बैठकर अपना कोरम पूरा करने में जुट जाते हैं। जिले में अनुमानतः 22सौ विद्यालय हैं जिनमें 16सौ के आसपास प्राइमरी और छह सौ जूनियर विद्यालय हैं। डीबीटी के काम पर बच्चों को शिक्षा देने वाले अध्यापकों को लेकर अभिभावक कहते हैं कि यदि यही काम बीआरसी में कुछ लोगों की डयूटी लगाकर कराना शुरू कर दिया जाए तो प्रति स्कूल में शिक्षकों का जाया होने वाला समय भी बचेगा और काम भी तमाम हो जाएगा। चार माह बीत चुके हैं लेकिन पाठय पुस्तकें अभी तक उपलब्ध न होने को लेकर अभिभावक चिंतित हैं।