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चित्रकूट में फूलों की खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे किसान
चित्रकूट। बदहाली,बेरोजगारी और दस्यु समस्या के लिए हमेशा सुर्खियों में रहने वाले बुंदेलखंड के सबसे पिछड़े जिले चित्रकूट की अब तस्वीर बदल रहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प का चित्रकूट के किसानों में व्यापक असर नजर आ रहा है।
परम्परागत गेंहू,चना और धान की खेत को छोड़कर किसानों ने उद्यानीकरण को अपना कर गुलाब-गेंदा आदि फूलों की खेती शुरू कर अपनी आय को दोगुना कर खुशहाल जीवन बिता रहे है। ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर बुंदेलखंड के अधिकांश जिलों में बड़ी संख्या में किसानों ने फूलों और सब्जियों की खेती शुरू कर आत्म निर्भरता की ओर कदम बढ़ाते नजर आ रहे है।
भगवान श्रीराम की तपोभूमि होने के कारण धार्मिक और आध्यामिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद बुंदेलखंड के अति पिछड़े जिले चित्रकूट का नाम आते ही लोगों के जेहन में बदहाली, बेरोजगारी और दुर्दांत डकैतों के आतंक की तस्वीर नाचने लगती है। ददुआ, ठोकिया, बबली कोल आदि दुर्दांत ईनामी डकैतों के आतंक के चलते कई दशकों तक पाठा के बीहड़ों से सटे सैकड़ों गांव में विकास की किरण नहीं पहुंच सकी थी। रोजगार की तलाश में क्षेत्र के हजारों परिवारों को गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली आदि प्रदेशों को पलायन करना पड़ता रहा है। सिंचाई आदि का पर्याप्त इंतजाम न होने के कारण चित्रकूट में खेती हमेशा घाटे का सौदा मानी जाती रहीं है। भगवान भरासे हो रहीं खेती में किसानों को लागत के बराबर भी आमदनी नहीं हो पा रहीं थी।
वहीं, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प ने बुंदेलखंड के अति पिछड़े जिले चित्रकूट के किसानों को नई राह दिखाई है। चित्रकूट जिले के तरौंहा, डिलौरा, सीतापुर, गढ़वा, पूरबपताई आदि गांवों के दर्जनों किसानोें ने परम्परागत गेंहू, चना, धान आदि की परम्परागत खेती को छोड़कर उद्यानीकरण को अपनाते हुए गुलाब, गेंदा आदि फूलों की खेती कर आत्मनिर्भता की ओर मजबूत कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। बुंदेलखंड की धरती में अब खेती करने के परंपरागत ढंग को छोड़ने वाले किसानों के घरों में आर्थिक समृद्धि ने बसेरा बना लिया है। डिलौरा-तरौंहा, रामबाग, सीतापुर, पहाड़ी के किसान महज बानगी हैं। इनसे सीख लेकर बुंदेलखंड के कई जिलों के अन्य किसानों की जिंदगी भी फूल की खेती ने महका दी है।
जिले के कर्वी ब्लॉक के डिलौरा गांव निवासी जगन्नाथ कुशवाहा व विनोद कुशवाहा ने परंपरागत गेहूं-धान से इतर गुलाब के फूलों की खेती शुरू की। पहले जहां परम्परागत फसल उगाने के लिए तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। वहीं अब चार से पांच सौ रुपये प्रतिदिन की आमदनी करते हैं। उनसे प्रेरणा लेकर कई किसान इस दिशा में आगे बढ़े हैं। इसी तरह तरौंहा गांव निवासी छोटेलाल ने गेंदा के फूल की खेती करीब दो साल से कर रहे हैं। खाद-बीज के लिए धनराशि को लेकर दिक्कत में फंसे रहने वाले छोटेलाल अब हर दिन दो से पांच सौ रुपये तक कमाई कर लेते हैं। उनकी आर्थिक हालत सुधर गई है। दोनों किसाना बताते है कि उनके फूलों की खासी डिमांड रहती है। शादी-विवाह के सीजन में पड़ोसी जिले सतना, प्रयागराज, बांदा आदि तक के लोग उनके फूल खरीदने आते है।
जिला उद्यान अधिकारी डा रमेश पाठक ने बताया कि फूलों की फसल महज दो-तीन माह में तैयार हो जाती है। इसके बाद पांच माह तक कमाई का जरिया बनती है। इस दौरान दो से तीन सिंचाई की जरूरत पड़ती है। किसान को प्रतिदिन नकद आमदनी होती है। एक एकड़ में साल भर में डेढ़ से दो लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं। जबकि सामान्य परम्परागत फसल में महज 50 से 70 हजार रुपये तक की आय हो पाती है, उसमें खर्चे अधिक होते हैं। वर्तमान में करीब 70 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती शुरू है। बताया कि फूल बिक्री का प्रमुख बाजार कर्वी, सीतापुर, चित्रकूट में लगता है। वहां कामतानाथ मंदिर, मंदाकिनी के रामघाट से लेकर बाकी प्राचीन मंदिरों, धार्मिक स्थलों पर प्रतिदिन हजारों क्विंटल फूल की खपत से बिक्री में आसानी रहती है। दुकानदार सुदामा प्रसाद कहते हैं कि आसपास के किसान सीधे फूल लाकर बिक्री करते हैं। श्रद्धालुओं को ताजे फूल मिल जाते हैं।
वहीं, जिलाधिकारी शेषमणि पांडेय का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा लगातार परंपरा से हटकर खेती के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है।जिसका खासा असर जिले के किसानों में दिखाई पड़ रहा है। अलग-अलग ब्लाक क्षेत्र में किसान फूलों की खेती से आय बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। धीरे-धीरे दूसरे किसानों को भी प्रेरित किया जाएगा।