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जब मेरा अयोध्या से हुआ आत्म साक्षात्कार
वेबडेस्क। ये कहानी श्री राम आगमन पर मेरे अयोध्या यात्रा की है । वैसे तो एक पत्रकार होने के नाते मेरा अयोध्या आना कई बार हुआ और प्रभु राम की नगरी अयोध्यामें अंतरंगता के साथ वहाँ की मिट्टी से आत्मसात भी हुआ । लेकिन अयोध्या के साथ हुए हर साक्षात्कार में यही प्रतीत हुआ कि अयोध्या की आँखें एक शाश्वत प्रतीक्षा में है कि “कब पधारेंगे मेरे राम” ? 9 नवंबर 2019 को जब उच्चतम न्यायालय से फैसला आया था तब भी मेरा अयोध्या जाना हुआ था और उस बार भी मैंने पाया कि राम कि अयोध्या की वो अनंत प्रतीक्षा भले खत्म हो गई थी। आंतरिक कोलाहल से मुक्त अयोध्या भले उस समय भारतवर्ष के भविष्य में राम के पदार्पण को लेकर झूम रही थी लेकिन पलक पांवड़े बिछाए वो अपने श्रीराम का बाट अभी भी जोह रही थी कि कब आएंगे मेरे प्रभु राम ? फिर 5 अगस्त 2020 का वो दिन भी आ गया जब अभिजीत मुहूर्त में श्री राम मंदिर के लिए भूमि पूजन सम्पन्न हुआ । अयोध्या इस बार खुशी से झूम-झूम कर नाच-गा रही थी । अयोध्या के कण-कण में राम गुंजायमान हो रहे थे । वह पूरी तरह से आश्वस्त और विश्वस्त थी कि अब मेरे प्रभु राम बस आने ही वाले हैं। लेकिन राम दर्शन के लिए राह अभी भी निहार रही थी । मैंने पाया कि अयोध्या के प्रतीक्षा के पल जैसे-जैसे छोटे होते जा रहे थे वैसे-वैसे अयोध्या की व्याकुलता भी बढ़ती जा रही थी । वो कहते हैं न प्रेम में जब प्रेयसी अपने प्रेमी का इंतजार करती है तो कभी नहीं खतम होने वाला असीम बेचैनी का पल अभी-अभी खत्म होने वाला वो अंतिम पहर ही होता है जिसमें उमंग अनंत होता है और धड़कन बेहिसाब और जिसके तुरंत बाद प्रिय से मिलन होता है ।
जी हां ! अयोध्या का हाल भी कुछ ऐसा ही है,प्रतीक्षा के पल छोटे अवश्य होते जा रहे हैं मगर आंखे अभी भी बड़ी व्यग्रता के साथ श्री राम की राह देख रही हैं ।
मेरी इस बार की यात्रा में अयोध्या व्याकुल तो थी लेकिन उसके व्याकुलता में विश्वास था, अनंत उत्साह था । अब भला हो भी क्यों नहीं बस कुछ ही दिन तो रह गए हैं श्री राम के राज्याभिषेक के । श्री राम जन्मभूमि पर भव्य महल रूपी मंदिर लगभग तैयार है, जिसे अयोध्या दिन रात निहारती रहती है । विक्रम संवत 2080 के हेमन्त ऋतु के पौस माह के शुक्ल पक्ष के कूर्म द्वादशी तिथि के सोमवार को जब श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी तब आयोध्या की प्रतीक्षा पर पूर्ण रूप से विराम लग जाएगा । 22 जनवरी 2024 को 500 सालों से चल रहा धर्मयुद्ध समाप्त हो जाएगा । श्री राम का वनवास खत्म हो जाएगा । रामभक्तों का बालिदान सार्थक होगा । मृगशीर्ष नक्षत्र के अभिजीत मुहूर्त की शुभ घड़ी में प्रभु राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी और राम लला चारों भईया के साथ महल में विराजमान होंगे ।
इस बार की यात्रा में जब अयोध्या के साथ मेरा आत्मसाक्षतकार हुआ तो मैंने महसूस किया कि अयोध्या कह रही “आए गए रघुनंदन सजवा दो द्वार-द्वार , स्वर्ण कलश रखवा दो बँधवा दो बंधनवार” क्योंकि अयोध्या में खुशहाली और संपन्नता के रामराज्य के कुछ ही दिन रह गए हैं । माता सीता का वनवास समाप्त होने वाला है,सिया-राम अपनी प्रजा के साथ मोक्षदायनी अयोध्या में ही निवास करेंगे । अयोध्या की वन-वाटिकाएं और नदियां सभी श्राप मुक्त होने वाली हैं। अयोध्या ने तो मुझे फिर से आयोध्यधाम आने का निमंत्रण भी दे डाला है कि आना 22 तारीख के बाद अयोध्या के बढ़ते वैभव की साक्षी बनने के लिए। वैसे बेचैनी आयोधी के श्रीराम में भी कुछ काम नहीं हैं जिसे अयोध्या की हर सांस महसूस कर रही है कि राम जी कह रहे हैं ,”मुझे प्राणों से भी प्यारी है अवधपुरी”सुनो जामवंत,बजरंगबली, मुझे प्राणों से भी प्यारी है अवधपुरी!राम आगमन पर श्रीराम दर्शन के लिए अयोध्या पूरे विश्व को निमंत्रण भेज रही है । अयोध्या के निमंत्रण पर156 देश श्री राम के स्वागत के लिए सौगात रूप में मिट्टी और जल भेज रहे हैं ताकि उनकी मिट्टी भी राममय हो जाए । रामजी के ससुराल जनकपुरवासी पूरे गाजे-बाजे के साथ रामजी के लिए सौगात लेकर आयोध्यधाम पहुंचे चुके हैं । रामजी और किशोरी जी के गृहप्रवेश के लिए समस्त मिथिलावासी जब अपने-अपने घरों से 'भार-सनेश' लेकर अयोध्याधाम पहुंचे तब इस अद्भुत और अनुपम दृश्य के साक्षी अयोध्या और मै दोनों बने । अविषमरणीय था वो पल जब सीता जी की सखियाँ प्रभु राम से साली-सरहज का नाता जोड़ मैथली मंगल गीत गा रही थी “रामजी के अँखि भर देख लेहु न, जईसन पहुना हमार वईसन कतहु केहु न” और अयोध्याझूम रही थी । कलयुग मेंये रामराज के नए युग कीशुरुआतहै जब माता सीता के मायके जनकपुरधाम से बेटी विवाह परंपरा को निभाते हुए प्रभु राम के लिए भार-सनेश आया है।
अनायास ही मैं अयोध्या से पूछ बैठी, कैसा लग रहा है अयोध्या ? अयोध्या का मुझ पर तंज था , ये जानने के लिए तुम्हें अयोध्या के कण-कण से बात करनी पड़ेगी मगर “तुम तो घोड़े पर सवार होकर आती हो और हवा की तरह फुर्र हो जाती हो,कभी तो प्रभु राम की तरह धीर बन कर अयोध्या के इस राममय हवा का अनुभव करो । मैंने पूछा वहीं चले अयोध्या जहां हम पहले भी एकडूसए से आत्मसात हुआ करते थे,जहां कोई कोलाहल नहीं है और असीम शांति है,आसमान से लेकर पाताल में सिर्फ राम हैं, वही माता सरयू का तट,“गुप्तार घाट”।
मैं और अयोध्या अब सरयू के घाट पर थे । सरयू की हर धारा में बसते हैं राम । प्रभु राम ने सरयू की धार में ही तो लिया था अंतिम विश्राम । राम के पैड़ी घाट अब सज-संवार कर दुलहन की तरह दिख रहा है था । राम के आने की खुशी में माता सरयू की धारा भी बिल्कुल स्वच्छ , अविरल और निर्मल थी । कहते हैं ब्रमहचारिणी है सरयू नदी इसीलिए इसमें स्नान का विशेष महत्व है । इसीलिए तो हमारे प्रभु राम की दिनचर्या सरयू स्नान के साथ शुरू हुई थी और प्रभु ने सरयू के घाट पर ही एक महीने का कल्पवास किया था और फिर इसकी धारा में विलीन होकर इस धरा के हों गए । हम और अयोध्या शांत भाव से सरयू की धारा में 500 वर्षों का धर्म युद्धह काल और प्रभु राम की लीला समझने की कोशिश रहे थे । अयोध्या ने अचानक ध्यान को तोड़ते हुए मुझसे कहा कि जिसे तुम समझने की कोशिश कर रही हो उसे समझने के लिए पहले उसकी लीला को समझना होगा । जो अयोध्या के कान कण में बस है और उसके पल-पल की साक्षी सरयू की ये धारा है ।
रामचरितमानस में सरयू की महिमा का बखान करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है “अवधपुरी मम पुरी सुहावनि। उत्तर दिश बह सरयू पावनि।।“कहते हैं भगवान श्रीराम की लीला दर्शन करने के लिए ही श्री सरयू का आगमन इस धरती पर त्रेतायुग में श्रीराम के अवतार के पहले हुआ। प्रभु राम के दर्शन के लिए अयोध्या की यात्रा सरयू दर्शन के साथ ही शुरु होती है। ऋषि पाणिनि ने अपनी पुस्तक अष्टाध्यायी में सरयू का उल्लेख किया है। लोकभाषा में कहा जाता है कि सरयू में नित दूध बहत है मूरख जाने पानी। अर्थात पावन सलिला सरयू में निरंतर दूध जैसा लाभदायक अमृत बहता है लेकी अज्ञानी इसे पानी समझते हैं।
वशिष्ठ की पुत्री होने नाते भगवान राम सरयू को अपनी बहन मानते हैं। भगवान राम के जन्म से लेकर उनके वनवास और अयोध्या वापसी भगवान राम के जन्म से लेकर उनके वनवास और अयोध्या वापसी तक यह नदी सारी घटनाओं की साक्षी बनी रही है । एक बार फिर भगवान का वनवास खत्म हुआ है साथ में सरयू का राम दर्शन का इंतजार भी । सरयू एक बार फिर उस काल की साक्षी बनी है जब प्रभु कृपा से भारत खंड पर धर्म विजयी हुआ है और प्रभु का अयोध्या आगमन हुआ है । हम और अयोध्या सरयू के सभी 51 घाटों से होते हुए अब गुपतार घाट पर थे । वही गुपतार घाट जो भगवान राम के अंतिम लीला का साक्षी है ।माता सीता जब धरती में समा गईं तो प्रभु राम ने यहीं महाप्रयाण किया था । कैसे और क्यों किया महाप्रयाण ये फिर और कभी । शांत , सलिल गुपतार घाट पर श्रीराम के धीर शरीर को साफ महसूस किया जा सकता है। यहाँ सरयू की धारा भी रामजी की तरह ही गहरी और शांत मिलती है और जहां हर पल अपने राम के साथ सिद्ध संतों का समागम होता है ।
शाम ढल चुकी थी , रात्री होने को थी हम और अयोध्या चलते हुए अब कनक महल पहुँच चुके थे । पता है न जग के कार्य से प्रभु श्रीराम चाहे कहीं भी रहें मगर रात्री विश्राम वो यहीं कनक महल में करते हैं । अयोध्या अब मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी । अयोध्या को मुसकुराता देख मैं भी अनायास ही मुस्कुरा उठी ये सोच कर कि रामजी का गृह प्रवेश हो गया है। जन्मस्थान पर एक बार फिर इतना बड़ा महल बन कर तैयार है लेकिन मेरे राम का रात्री विश्राम कहाँ होगा ? यहीं कनक महल में, अयोध्या का सहज भाव से ये जवाब था ।
अयोध्या मेरे कानों में बोल रही थी सुनो पत्रकार महोदया अगर चाहती हो कि बिल्कुल सटीक पते पर रामजी तक तुम्हारी चिट्ठी पहुंचे तो अपने लिफ़ाफ़े पर लिख देना “जानकी महल मंदिर , आयोध्यधाम, अवधपुरी ,उत्तरप्रदेश।“ क्योंकि चाहे कहीं भी हों मेरे राम रात्री विश्राम के लिए पाताल हनुमान पर सवार हो कर यहीं आते हैं कनक महल , मेरी सीता मइया के पास । ये माता सीता को रामजी कि दिया हुआ वचन है । पता है न “रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई” फिर ये तो सियाजी को दिया हुआ प्रभु राम का वचन है ।
क्या खूब है कनक महल भी जनकनंदनी की तरह ही शांत और शील । पता है न माता कैकई ने सीताजी को ये मुंह दिखाई में उपहार स्वरूप दिया था । कहते हैं रामजी जब शादी के लिए जनकपुर पहुंचे तो जनकपुर का वैभव देख कर अचंभित रह गए । ये बात उन्होंने अपनी माँ कैकई को बताई । कैकई को सपने में विश्वकर्मा जी दर्शन दिए और विश्वकर्मा जी के दिशानिर्देश पर कनक भवन तैयार हुआ । महल तैयार होने तक रामजी 6 महीने तक पूरे बारात के साथ वहीं जनकपुर में सीताजी के साथ वास किये । 14 कोस में फैला हुआ ये अयोध्या का सबसे भव्य और रामजी और सीताजी का निजी महल है । तब इस महल में रामजी के अलावा किसी और पुरुष को जाने की अनुमति नहीं थी । रामजी के अलावा अगर कोई पुरुष वहाँ जा सकता था तो वो थे रामभक्त हनुमान लेकिन उन्हें भी सिर्फ आँगन तक जाने की अनुमति थी । आज तो इस प्रांगण में सभी भक्तों का तांता लगा रहता है । एक और खास बात है इस महल की सीताजी की सखियाँ आज भी इसके अंगना में बधाइयाँ गाती हैं । कहते हैं जनकपुर में सीता मइया की आठ सखियाँ थीं जिनमें से चार जानकी जी के साथ शादी के बाद आयोध्य आ गईं थी । सखियाँ संप्रदाय की किन्नर समाज अपने आप को उन्हीं की वंशज मानती है और आज भी माता सीता के अंगना में निकालने का इंतजार करती हैं और सीता जी के लाड़ में उनके और रामजी के लिए बधाइयाँ गाती रहती हैं । इस ऑरणगं में हमेशा एक मधुर संगीत चलता रहता ‘सीता मइया अंगना विराजे मैं पईयां लागू । ये लोग आज भी अयोध्या के संतों का जूठन खा कर अपना गुजरा करती हैं । आज भीरामजी को कनक महल पहुंचा कर अयोध्या की सुरक्षा में हनुमान जी हनुमानगढ़ी में वास कर जाते हैं । अयोध्या में रामजी का मंदिर क बस पूर्णउद्धार हो रहा बाकी अयोध्या में आज भी नियम किशोरी जी के ही चलते हैं जिसे हनुमान दूत बन कर जन-जन तक पहुंचाते हैं ।
मंदिर निर्माण के साथ ही अयोध्या में अब हर दिन दीपोत्सव है और अयोध्या इस पुनर्जागरण से झूम रही है नाच रही है कि धर्म की इस युद्ध में एक बार फिर जीत श्रीराम कि हुई है ।