बलिया के माँ भवानी का मंदिर का इतिहास का दुर्गा सप्तशती से है कनेक्शन, प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किए थे दर्शन

बलिया के माँ भवानी का मंदिर का इतिहास का दुर्गा सप्तशती से है कनेक्शन, प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी किए थे दर्शन
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बलिया। शारदीय नवरात्र का दूसरा दिन है। देवी मंदिरों पर आस्था उमड़ रही है। लोग जिले के प्रसिद्ध मंदिरों पर मत्था टेकने हजारों की संख्या में जुट रहे हैं। उन्हीं में से एक है शंकरपुर स्थित मां भवानी मंदिर, जिसका उल्लेख दुर्गा सप्तशती में भी है।

दुर्गा सप्तशती में राजा सुरथ की कथा मिलती है। कवच प्रकरण में कर्णमूले तू शांकरी का जिक्र है। शास्त्रों में उल्लेख है कि जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर बलिया-बांसडीह मुख्य मार्ग के किनारे अवस्थित मां भवानी के इस मंदिर में देवी प्रतिमा की स्थापना राजा सुरथ द्वारा की गई है जो चैत्र वंश में उत्पन्न हुए थे। यह उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है। कहते हैं कि राजा सुरथ का समस्त भूमंडल पर अधिकार था। उनका शत्रुओं के साथ संग्राम हुआ, जिसमें राजा सुरथ परास्त हो गए। शत्रुओं ने उनके साम्राज्य पर अधिकार कर लिया। पराजित राजा राजमहल छोड़ वन में निकल पड़े।

वहां उन्होंने मेधा ऋषि का आश्रम देखा जहां हिंसक जीव भी शांति से रह रहे थे। राजा ने मुनि के दर्शन किए और उन्हें अपना कष्ट बताया। इस पर मुनि ने राजा को देवी की शरण में जाने को कहा। राजा सुरथ जगदंबा के दर्शन के लिए ताल तट पर रहकर तपस्या करने लगे। वर्षों बाद देवी ने राजा को दर्शन देकर उनकी अभिलाषा पूरी की। राजा को उनका राज्य वापस मिल गया। राजा ने जहां तपस्या की थी वह ताल उन्हीं के नाम से सुरहाताल के रूप में प्रसिद्ध हुआ। जहां हर साल प्रवासी साइबेरियन पक्षी आते हैं। इसी ताल के समीप राजा सुरथ ने पांच मंदिरों की स्थापना की जिनमें शंकरपुर का भवानी मंदिर, ब्रह्माइन का ब्रह्माणी देवी मंदिर, असेगा का शोकहरण नाथ मंदिर, अवनिनाथ का मंदिर और बाबा बालखंडी नाथ का मंदिर शामिल है।

छठी शताब्दी ईसा पूर्व प्रथम चीनी यात्री ह्वेनसांग पाटलिपुत्र जाते समय इस रास्ते जा रहा था। इस जगह पर उस समय जंगल था। जब चीनी यात्री यहां पहुंचा तो देखा की यहां एक झाड़ में मुर्ति पड़ी हुई है। तब ह्वेनसांग ने उस जगह सफाई कर पुजा किया और अपनी यात्रा आरम्भ की।

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