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क्या-क्या नजारे दिखाती हैं नदियां, किनारों की कटान और मानक विपरीत गहरे गड्ढ़े कर निकाली जा रही बालू
बांदा। जिन देखा तिन पाइयां के मुताबिक अब जिले में बहने वाली खासकर केन नदी के नजारे बदले-बदले नजर आने लगे हैं। क्या-क्या नजारे दिखाती हैं अंखियां जैसे गाने की तर्ज पर अब लोग क्या-क्या नजारे दिखाती हैं नदियां जैसी लाइन भी गुनगुनाने लगी हैं। वह ऐसे कि जिस केन नदी से सरकारी तौर पर बालू की खदानें संचालित हैं उस नदी की खदान संचालकों की बदौलत नदी की चौड़ाई और गहराई बढ़ती चली जा रही है। सीमांकन से ज्यादा क्षेत्रफल में निकाली जा रही बालू को लेकर जहां नदी के किनारों की कटानें काट कर उसकी चौड़ाई को बढ़ाकर बालू निकालने के वास्ते गोरखधंधा को अंजाम दिया जा रहा है। वहीं अधिकृत मानक से अधिक गहरा करके निकाली जाने वाली बालू के कारण नदी की गहराई में इजाफा हो रहा है।
नदिया के पेट में खड़े और पड़े बड़े-बड़े ढेर के नजारे साफ तौर पर दर्शाते हैं कि यह बालू के ढेर यूं ही बड़े ढेर में तब्दील नहीं हुए बल्कि मानक से ज्यादा खोदाई करके मशीनों के जरिए नदी का पेट फाड़कर बालू निकाली जा रही है। लगातार कई खदानों में इस तरह के कारोबार से जहां खदान नियमों को धता बताकर कारोबार को अंजाम दिया जा रहा है उसमें इन दिनों सबसे ज्यादा हालत पैलानी तहसील अंतर्गत केन नदी में संचालित रेहुंटा खदान की देखी जा रही है। क्षेत्र के लोग नदी की बदलती शक्ल देखकर जहां आहें भर रहे हैं वहीं जांच पड़ताल और कार्यवाही के इंतजार का सपना देख रहे हैं। लेकिन लगभग दो माह से उपर गुजर जाने के बाद भी कोई भी जांच करने वाला परिंदा खदान की बदलती शक्ल को देखने नहीं पहुंचा। देखने वालों में सबसे ज्यादा क्षेत्र के वह लोग हैं जो प्रतिदिन खदानों की रातभर में बदलती शक्ल और ओवरलोड की धमाचौकड़ी सड़कों पर देखकर लूट के इस खेल को काला खेल बताते हुए सफेद राह में लाने की फिराक का इंतजार कर रहे हैं।
वैसे तो जिले में केन, बागेन और यमुना नदी में सरकारी तौर पर खदानें संचालित हैं। लेकिन जिस तरीके से इन दिनों क्षेत्र की जीवनदायिनी केन के साथ खनिज कारोबारी पैसा कमाने के वास्ते मनमानी तरीके से कार्यवाहियों को अंजाम देकर अपनी-अपनी तिजोरियां भरने पर अमादा हैं उससे नदी का असली स्वरूप धीरे-धीरे तब्दील हो रहा है। केन में संचालित कई खदानों की खनिज कारोबारियों की वजह से जहां चौड़ाई बढ़ गई है वहीं केन की गहराई भी इजाफे पर है। केन में चलने वाली रेहुंटा की खदान को उदाहरण बताते हुए इलाकाई लोगों का कहना है कि प्रतिदिन देखने में खदान की शक्ल खनिज कारोबारियों की कारगुजारी के चलते बदल जाती है। रा
रातभर में केन के किनारे मशीनों द्वारा काटकर जहां बालू का ढेर बड़ा करके पैसा कमाने का तरीका अपनाया जाता है वहीं मानक विपरीत गहराई से मशीनों के द्वारा बालू निकालकर वाहनों में भर के आपूर्ति की जाती है। मजे की बात यह है कि हर खदान में धर्मकांटा और सीसीटीवी कैमरे लगे हैं ताकि ओवरलोड पर अंकुश लगाया जा सके लेकिन ऐसा कम देखने को मिल रहा है। पैलानी तहसील अंतर्गत केन से संचालित रेहुंटा खदान में संचालित मशीनों की मनमानी चाल से केन के किनारे काटकर जहां कच्चा माल बालू निकालकर कारोबार को अंजाम दिया जा रहा है। वहीं क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि रात के केन के पेट से मानक से ज्यादा गहराई करके बालू निकालकर नदी को गहरा बनाकर पैसा कमाने का गोरखधंधा जारी है। क्षेत्रीय लोग प्रकृति प्रदत्त केन की बदलती तस्वीर को देखकर आहत होते हैं। राहत के नाम पर शिकायतें भी करते हैं लेकिन जिम्मेदार खनिज अधिकारी से लगाकर अन्य अधिकारी जनता की आवाज को कोई तवज्जो नहीं देते। जिसके कारण नदियां अंतःरूप में आहत हैं।
क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि नदियों के बालू कारोबार में अंजाम देने वाले दलाल किस्म के लोग यह कहकर आगे बढ़ते हैं कि कोई कुछ भी गीत गाता रहे चिल्लाता रहे हमारा कुछ होने वाला नहीं है क्योंकि नीचे से लेकर उपर तक की कृपा के हम पात्र हैं। हमारा चढ़ौना इस कदर जिम्मेदारों को प्रभावित करता है कि उनका पेट भर जाता है और वह अपना मुंह बंद करने को जहां मजबूर हो जाते हैं वहीं हाथ पांव चलाने को भी उनका मन नहीं होता। रोज रात के वक्त हो रहे खनन के कारण नदी की जलधारा भी प्रभावित हो रही है। रेहुंटा खदान में बड़े-बड़े बालू के ढेरों को लेकर लोगों का कहना है कि यह ढेर कोई जादुई करिश्मे से नहीं तैयार होते बल्कि रात के मशीनों के जरिए मानक के हाथ पांव काटकर के ढेरों को बड़ा किया जाता है और वाहनों में लादकर आगे आपूर्ति के जरिए पैसा बढ़ाया जाता है। ओवरलोड को लेकर यह दलाल यह भी अपनी जुबानी कह डालते हैं कि यदि ओवरलोड बालू आपूर्ति नहीं करेंगे तो क्या खाएंगे क्या खिलाएंगे? क्षेत्रीय लोगों ने मंडल और जिला स्तरीय उच्चाधिकारियों का ध्यानाकृष्ट कराते हुए नदियों की बदलती शक्ल और मानक विपरीत किए जा रहे खनिज कारोबार के काले खेल को बंद कराने की अपेक्षा की है?