बहराइच: नेपाली गैंडों को रास आ रहा कतर्नियाघाट का प्राकृतिक वास

बहराइच: नेपाली गैंडों को रास आ रहा कतर्नियाघाट का प्राकृतिक वास
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ये गैंडे नेपाल के रायल बर्दिया नेशनल पार्क से खाताकारी डोर के रास्ते कतर्नियाघाट आते हैं।

बहराइच (अतुल अवस्थी): कतर्नियाघाट सेंक्चुरी आने वाले पर्यटक अब गैंडे भी देखकर रोमांचित हो रहे हैं। ये गैंडे नेपाल के रायल बर्दिया नेशनल पार्क से खाताकारी डोर के रास्ते कतर्नियाघाट आते हैं।

अभी तक गैंडों का प्रवास स्थल गेरुआ पार का जंगल था। लेकिन बीते चार माह से एक गैंडे ने नदी के इस पार बंधे के निकट के जंगल को पहली बार अपना प्रवास स्थल बना लिया है़। वहीं नदी के उस पार के जंगल में भी निरंतर चार से पांच गैंडों का मूवमेंट ग्रास लैंड में निरंतर मिल रहा है़। इससे लग रहा है़ कि इन्हें अब कतर्नियाघाट जंगल की आबोहवा रास आ रही है। जिससे वे यहीं के होकर रहे गए हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो कतर्नियाघाट जंगल की आबोहवा गैंडों के बेहद अनुकूल है।

नेपाल सीमा से सटे कतर्नियाघाट संरक्षित वन क्षेत्र को बाघ, तेंदुओं तथा हाथियों के लिए जाना जाता है। लेकिन, यहां कुछ दिनों से गैंडों का मूवमेंट गेरुआ पार के जंगल में दिख रहा था। लेकिन गैंडे इस पार आने से परहेज करते थे। जिससे अधिकांश पर्यटकों को निराशा हाथ लगती थी।

अब पर्यटकों के लिए सुखद संदेश यह है़ कि नेपाल से खाता कारिडोर के रास्ते आये एक गैंडे ने गेरुआ नदी के इस पार कतर्नियाघाट रेंज में बंधे के निकट के जंगल को अपना प्राकृतिक वास बना लिया है़। यह गैंडा जंगल आने वाले पर्यटकों को भी निरंतर रोमांचित कर रहा है़। हरियाणा, दिल्ली, लखनऊ से हाल ही में जंगल भ्रमण पर आए पर्यटकों ने गैंडे को देखने की पुष्टि की है़।

उधर नदी के उस पार घने जंगल के बीच रहने वाले गैंडे ग्रासलैंडों में भी दिखाई पड़ रहे हैं। भ्रमण के लिए पहुंचे कई पर्यटकों ने जब नदी पार के ग्रासलैंड में गैंडे को विचरण करते देखा तो सभी रोमांचित हो उठे। पहली बार गैंडा सामान्य तरीके से ग्रासलैंड में दिखाई पड़ा। इसे वनाधिकारी भी काफी सुखद मान रहे हैं।

कतर्नियाघाट के वनाधिकारी बताते हैं कि एक साल पहले चार गैंडों का मूवमेंट मिलता था लेकिन इधर कुछ दिनों से पांच गैडे गेरुआ पार के चूही पाताल जंगल और उससे सटे ग्रासलैंडों में दिखायी पड़ रहे हैं।

वर्ष 2002 के बाद से रास आने लगा जंगल

नेपाली गैंडों को कतर्नियाघाट सेंक्चुरी वर्ष 1997 से रास आ रहा है। खाता कारीडोर के रास्ते गैंडों का झुंड अक्सर कतर्नियाघाट आता था और फिर वापस लौट जाता था लेकिन वर्ष 2002 के बाद से गैंडों का ठहराव भी होने लगा है। इस समय तीन वयस्क व दो शिशु गैंडे गेरुआ पार के कतर्निया जंगल में प्रवास कर रहे हैं।

गैंडों के अनुकूल है जंगल

कतर्नियाघाट फ्रेंड्स क्लब के अध्यक्ष भगवान दास लखमानी ने बताया कि गेरुआ के उसपार और इस पार घने जंगल के बीच छोटे-छोटे तालाब है, जिनमें शैवाल, कवक व मुलायम घासें हैं। गैंडा पूरी तरह शाकाहारी होता है। शैवाल उसकी विशेष पसंद होती है। जंगल की इस आबोहवा के चलते ही पहली बार नदी के इस पार के जंगल को गैंडे ने अपना प्राकृतिक वास बनाया है़। उस पार भी लगभग पांच गैंडों का ठहराव जंगल में बना हुआ है। यूं कहें कि वह कतर्नियाघाट के होकर रह गए हैं तो गलत नहीं होगा। उन्होने कहा कि वनविभाग के साथ साथ जंगल की सुरक्षा और संरक्षा के लिए कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओ की भी बड़ी भूमिका है़।



वातावरण की है अनुकूलता संख्या में और होगा इजाफा

कतर्नियाघाट रेंज के ट्रांसगेरुआ इलाके में गैंडे के प्रवास की सूचना मिली है। उसकी सुरक्षा के लिए विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों को अलर्ट किया गया है। वन्य जीव किसी एक देश के नहीं होते। वह प्रकृति की अनुकूलता के अनुरूप विचरण करते हैं। गैंडों को ग्रास लैंड अधिक पसंद है। कतर्नियाघाट में ग्रासलैंड की कमी नहीं है। गैंडों के अनुकूल अब हवा है ऐसे में गैंडो की संख्या में और वृद्धि होने के आसार हैं।-अनिल पटेल (डीएफओ नार्थ खीरी/प्रभारी डीएफओ कतर्नियाघाट बहराइच)


रेडियो टैग लगे गैंडे का हर दो-तीन महीने पर होता है मूवमेंट

कतर्नियाघाट के वनाधिकारी बताते हैं कि रॉयल नेशनल बर्दिया पार्क के एक गैंडे में रेडिया टैग लगा हुआ है। इसके जरिए जीपीएस सिस्टम के माध्यम से गैंडे के मूवमेंट पर वनकर्मियों की नजर रहती है। प्रत्येक दो से तीन महीने पर यह गैंडा रायल बर्दिया नेशनल पार्क से कतर्निया के जंगलों में पहुंचता है और फिर वापस चला जाता है।

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