रायबरेली: कोरोना से हो रहीं मौतें रोकना आसान नहीं, फ्रंट लाइन पर DM को संभालनी होगी कमान

रायबरेली: कोरोना से हो रहीं मौतें रोकना आसान नहीं, फ्रंट लाइन पर DM को संभालनी होगी कमान
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किसी तरह चौथे दर्जे के कर्मचारी भाग दौड़ दिखाकर तीमारदारों को कंट्रोल कर रहे हैं। जिससे काम के बढ़ते दबाव और जिले भर के मरीजों को एक स्थान पर देखते देखते स्वास्थ्य कर्मियों में भी मानसिक औसाद की स्थिति दिखने लगी है। ऐसी बदहाल व्यवस्था में नागरिकों की जान कैसे बचेगी यह एक बड़ा सवाल है?

रायबरेली: कोरोना वायरस से इस समय लगातार मौतें हो रही है। जिला अस्पताल से लेकर लालगंज के एल टू तक हर रोज़ अनगिनत मरीज दम तोड़ रहे हैं। जिनमें कुछ पाज़िटिव तो बड़ी संख्या में मरने वालों में वायरस के सारे लक्षण होने पर भी उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ रही है। इसलिए श्मसान में जल रही चिताएं और प्रशासन के सरकारी आंकड़ों में भारी मतभेद है। फिर भी जिस अनुपात में जिले में मौत हो रही हैं उससे एक बात तो स्पष्ट है कि जिले के हालात सामान्य नहीं हैं‌। जिसमें सबसे ज्यादा अहम यह है कि इन मरने वालों में अधिकतर मौतें आक्सीजन के अभाव में हो रही हैं।

पिछले कई दिनों से जिला अस्पताल के इमरजेंसी में घंटे दो घंटे के लिए ही किसी भी मरीज को आक्सीजन मिल पा रहा है। उसमें भी सिलेंडर से सप्लाई इतनी सुस्त रखी जाती है कि मरीज अपने आप दम तोड़ देता है। इस बीच जिनका आक्सीजन लेवल ज्यादा वीक नहीं होता वो बचकर जब लालगंज पहुंचते हैं तो वहां एल-2 की अव्यवस्था उन्हें मार देती है। लगातार लालगंज में आक्सीजन न मिलने और समय पर इलाज के अभाव में लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं। उसके बाद भी जिला प्रशासन आक्सीजन की कमी दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहा है। मजबूरन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी तीमारदारों को संतुष्ट करने के लिए झूठे दिलासे से काम चला रहे हैं।

इसके अलावा लगभग 15 दिन से कोरोना वायरस जिले में कहर बरपा रहा और मरीजों के इलाज पर भी कोई पुख्ता रणनीति नहीं बन पाई है। आम दिनों की तरह आपातकालीन समय में सिंगल डाक्टर के सहारे ही एमरजेंसी चल रही है। इसीलिए मरीजों की भरमार से उनका नाम चढ़ाते, फार्म भरते और मरीज भर्ती करने में ही डाक्टर का सारा समय बीत रहा है।

इस बीच लोगों का इलाज एवं मरीजों को देखने की फुर्सत उन्हें नहीं मिलती। किसी तरह चौथे दर्जे के कर्मचारी भाग दौड़ दिखाकर तीमारदारों को कंट्रोल कर रहे हैं। जिससे काम के बढ़ते दबाव और जिले भर के मरीजों को एक स्थान पर देखते देखते स्वास्थ्य कर्मियों में भी मानसिक औसाद की स्थिति दिखने लगी है। ऐसी बदहाल व्यवस्था में नागरिकों की जान कैसे बचेगी यह एक बड़ा सवाल है?

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