बच्चों की खेल सामग्री का धन डकारने में लगे जिम्मेदार

बच्चों की खेल सामग्री का धन डकारने में लगे जिम्मेदार
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खेलों में प्रतिवर्ष खप रहे लाखों रुपये नहीं निकल रही प्रतिभाएं

बांदा। भ्रष्टाचार का मुंह छोटा-बड़ा नहीं देखता। अपराध और अपराधी की कोई जाति नहीं होती। भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराध के खेल को अंजाम देने वालों में जिले के प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में कार्यरत कुछ शिक्षकों की कार्यप्रणाली छन-छन कर प्रकाश में आयी तो पता चला उन्होंने बच्चों के लिए सरकार द्वारा दी जाने वाली खेल सुविधा को भी अपनी चतुर चाल के जरिए ऐसे डकारा कि डकार तक नहीं आयी।

प्राथमिक विद्यालय और जूनियर विद्यालयों में खेल प्रतिभा को उभारने के इरादे सहित खेल विधा में रुचि पैदा करने को लेकर सरकार द्वारा खेल के लिए कई प्रकार की खेल सामग्री खरीदने के लिए धन उपलब्ध कराने का प्राविधान है लेकिन जिले के अधिकांशतः विद्यालयों ने खेल सामग्री के नाम पर जिस तरीके के काले खेल को अंजाम दिए जाने का आरोप प्रकाश में आया है उसमें कुछ सामग्री खरीदने के बाद उसी को नया दिखाकर कागजी कोरम पूरा करके बच्चों के खेल के नाम का आया धन डकार लिया जाता है और कागज की बाजीगरी का खेल ऐसे अधिकारियों के सामने दिखा दिया जाता है कि उनकी भी आंखे काले खेल में रची गई बाजीगरी की ओर नजर नहीं जाती।

जिससे बच्चों के खेल खिलाड़ी के नाम पर आए धन के साथ लंबा वारा-न्यारा करके जिम्मेदारों द्वारा कमाई करने का आरोप जिले के हर ब्लाक की ओर से आ रहा है। जिले में कुल प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों की संख्या लगभग 1725 बताई जा रही है। बीएसए रामपाल कहते हैं कि प्राथमिक विद्यालयों के लिए पांच हजार रुपया और जूनियर विद्यालय के लिए दस हजार रुपया आता है।

परिषदीय विद्यालय से लगाकर किंडर गार्डन पद्धति, मांटेसरी व शिशु मंदिरों तक में बचपन से ही खेल प्रतिभा जागृत करने के लिए शैक्षणिक कैलेंडर में इसका स्थान दिया गया है। लेकिन खेलकूद की सामग्री प्रतिवर्ष क्रय की जाती है उसका लाभ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता संकुल से लेकर जिला स्तर तक में गिनती के विद्यालय प्रतिभाग करते हैं। इस ओर देखने की फुर्सत न अभिभावकों को है न ही शिक्षा समिति में स्थान पाए लोगों व जिम्मेदार अधिकारियों को। मंडलायुक्त दिनेश कुमार सिंह के निर्देश चंद विद्यालयों में ही कारगर हो पा रहे है।

खेलकूद प्रतिभा को जागृत करने के लिए परिषदीय विद्यालयों में अच्छा खासा बजट दिया जाता है। यह बजट एक वर्ष नही ंबल्कि हर नए शिक्षण सत्र पर शासन की ओर से मुहैया कराए जाने की जानकारी मिली है। लेकिन मार्च माह आते-आते यह खेल सामग्री क्रय की जाती है आरोपों में कहा गया है कि कई जगह तो बीते वर्ष की सामग्री को आधार मानकर कुछेक खेल सामग्री क्रय कर पूरे का बिल बनवाकर मामले की इतिश्री कर ली जाती है।

प्राथमिक विद्यालय में उपलब्ध खेल सामग्री पर नजर डाले तो प्राथमिक स्तर में फुटबाल, योग और जिमनास्टिक के लिए गद्दे, कोन, हवा भरने का पंप, स्टाप वाच, बैडमिंटन के रैकेट, शटल काक व नेट, क्रिकेट का सामान, कैरम बोर्ड, शतरंज बोर्ड, रस्सी, बास्केटबाल के गोल पोस्ट, पीटी के लिए डंबल लकड़ी के, पीटी के लिए लेजियम, मेडिसिन बाल एक किलो की, बास्केटबाल, डिस व रिंग का क्रय किया जाना निर्देशित है।

वहीं उच्च प्राथमिक विद्यालयों जूनियर स्तर के लिए प्राथमिक विद्यालयों के लिए निर्धारित सामग्री के साथ बालीवाल का नेट, हैंडबाल, हाकी स्टिक व बाल, शॉट पुट, डिस्कस, हाई जंप स्टैंड, हार्डिल्स, जैवलिन प्रमुख है। कई जगह यह सामग्री खरीदी जाती है बाद में उसी आधार पर कई वर्ष तक केवल नई-नई रसीद बनवाकर धन का बंदरबाट के आरोप जिम्मेदारों पर कई जगह लगते रहते हैं। यदि इस सामग्री का भरपूर उपयोग किया जाता तो वार्षिक खेलकूद में प्रतिभाओं की कमी नहीं होती। चित्रकूटधाम मंडलायुक्त दिनेश कुमार सिंह ने बीते काल खेल प्रतिभा उभारने के लिए विद्यालयों में प्रतिदिन खेलकूद कराने और प्रतियोगिताएं कराने के निर्देश भी दिए थे लेकिन उनके निर्देशों के बाद भी विद्यालयों में खेल जगत को लेकर कम रुचि ली जाती है और तो और निर्धारित सामग्री तक का अभाव है। कमाने के खेल के प्रेम में बच्चों के खेल की सामग्री के साथ भी कमाने-खाने का गोरखधंधा चलाया जा रहा है। जिले के प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों सहित गांव के लोगों ने ब्लाकवार विद्यालयों की खेल सामग्री की जांच कराने की आवाज उठाई है।

अभी ऐसा कोई मामला कोई मेरे संज्ञान में नहीं आया। यदि शिकायत मिलती है तो मामले की जांच कराकर दोषीजनों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाएगी।

-रामपाल सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी

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