डाकुओं की वेशभूषा, गोला-बारूद से धमाके और लूटपाट की अनाोखी परंपरा

डाकुओं की वेशभूषा, गोला-बारूद से धमाके और लूटपाट की अनाोखी परंपरा
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डाकुओं की याद में रचते हैं स्वांग, नजारा देखकर लोग समझते हैं असली डाकू

झांसी। काले कपड़े, मुंह पर नकाब और हाथों में हथियार। डाकुओं जैसी वेशभूषा में लोग गोला-बारुद से धमाके करते हुए अचानक सड़क पर आकर वाहनों को रोक लेते हैं। और फिर वाहनों में सवार लोगों पर हथियार तान देते हैं। यह नजारा देख पहले तो लोग डर जाते हैं, लेकिन बाद में उन्हें पता चलता है कि ये कोई डाकू नहीं है और न ही उनके हथियार असली है। बल्कि वे डाकुओं की याद में स्वांग रच रहे हैं। लोग मुस्कराते हुए उनको चंदे के रूप में रुपए देकर आगे बढ़ जाते हैं।

झांसी के एरच कस्बे यह अनूठी परंपरा को लोग निभाते हैं। स्थानीय लोग डाकू मुस्तकीम, डाकू फूलन देवी और अन्य डाकुओं की याद में स्वांग रचते हैं। ये लोग समूह में एकजुट होकर डाकुओं की तरह कपड़े पहनकर, हाथों में नकली बन्दूक थाम कर सड़क पर गुजरने वाले राहगीरों को रोक लेते हैं और उनसे डाकुओं के अंदाज में चंदा मांगते हैं। हर साल दीपावली से कुछ दिन पहले इस तरह का स्वांग कर स्थानीय लोग इस परंपरा को निभाते हैं और डाकुओं को याद करते हैं। ये नकली डाकू सड़क पर उतरकर इस तरह लूट करने का स्वांग करते नजर आए।

नकली डाकुओं को देखकर देते हैं पैसे

एरच क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर लोग इस परम्परा को जानते हैं। इन नकली डाकुओं को देखकर मुस्कुराते हुए अपनी जेब से निकालकर चंदे के रूप में कुछ रुपए इन्हें दे देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। नए लोग देखकर डर जाते हैं। तब डाकू बने लोग उन्हें परंपरा की जानकारी देते हैं। इनमें से स्वांग करने वाला कोई दल डाकू मुस्तकीन को याद करता है तो कोई डाकू फूलन देवी को और कोई किसी और को। सड़क पर चंदा वसूलने के दौरान स्वांग करने वाला यह दल बम की तरह सड़क पर पटाखे फोड़ता है। नकली बंदूक दिखाकर गाड़ी को घेरकर चालक से पैसे वसूलने की कोशिश करता है। स्थानीय लोगों के लिए यह परंपरा और स्वांग किसी मनोरंजन की तरह है। डाकुओं का रूप धरकर स्वांग की यह परंपरा बताती है कि इस क्षेत्र में डाकुओं की काफी लोकप्रियता थी।

पुरखों से चली आ रही है परंपरा

स्वांग दल में शामिल स्थानीय निवासी मोहम्मद आजाद ने बताया, ये परंपरा पुरखों से चली आ रही है और गांव के लोग पूर्वजों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इसमें पूरे गांव के लोग भाग लेते हैं। यहां के लोग डाकुओं का रूप धारण करके सड़कों पर इस तरह का स्वांग करते हैं। सभी लोग अलग-अलग तरह का भेष धारण करते हैं। कुछ लोग डाकू बनते हैं तो कुछ लोग मौनिया का रूप धारण करके डांस करते हैं। कुछ लोग भगवान शिव का भी रूप धारण कर लेते हैं। यह परंपरा हर साल निभाई जाती है। एरच के ही बाबूलाल बताते हैं, डाकू मुस्तकीम बाबा की याद में स्थानीय लोग इस तरह का स्वांग करते हैं। यहां डाकू मुस्तकीन का दल स्वांग कर रहा है तो दूसरी जगहों पर इसी तरह डाकू फूलन देवी का दल बनाकर भी लोग स्वांग कर रहे हैं। यह परंपरा क्षेत्र में काफी लोकप्रिय है।

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