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नीबू के बढ़े नखरे, भाव बढ़ने के कारण रसोइयों का रंग हुआ बदरंग
बांदा। आम रसोई का बजट इन दिनों सब्जियों के बढ़े भाव को लेकर गड़बड़ा रहा है। लौकी, कद्दू, आलू, टमाटर, प्याज, लहसुन, धनिया, करूकरेला, ककड़ी, खीरा जैसी खाद्य/सब्जी सामग्री के भाव एक माह में काफी इजाफे पर है। नीबू के नखरे तो इस कदर बढ़ गए हैं कि आम आदमी उसे रसोई तक लाने में माथे पसीना छोड़कर महंगाई डायन को याद करते हुए कई प्रकार के सवालों से अपनी जीभ को स्वाद बदल देता है।
शहर की सब्जी मंडी से लेकर फुटकर विक्रेताओं की दुकानों में जब कोई नीबू का शौकीन खरीदने जाता है तो रेट पूछने पर ही उसका मुंह खट्टा हो जाता है और वह मजबूरी में दुकान में रखी सस्ती सब्जी का भाव सुनकर बिना मन के उसे खरीद घर की ओर चल देता है। इन दिनों यहां की सब्जी मंडी से लगाकर फुटकर विक्रेताओं की दुकान में नीबू के भाव किलो के हिसाब से 280 रुपये से लगाकर तीन सौ रुपये किलो तक बताए जाते हैं और फुटकर लेने पर एक सिकुड़े नीबू की कीमत न्यूनतम दस रुपया और थोड़ा सा हरे-भरे नीबू की कीमत 15 रुपये तक बताई जाती है।
इधर एक माह से महंगाई डायन का राज कुछ ज्यादा ही थिरकता नजर आ रहा है। सबसे ज्यादा असर सब्जी पर साफ दिखाई पड़ता है। नीबू की कीमत जहां एक माह पहले सौ रुपये से 120 रुपये किलो तक और फुटकर में दस रुपये में तीन से पांच नीबू तक नीबू प्रेमियों को दुकानों से हासिल हो जाते थे उनको अब खरीदने में नीबू शौकीनों की हालत खराब हो रही है। भाव सुनकर ही उनके मुंह खट्टे हो जाते हैं। प्रतिकिलो में वर्तमान दर 280 रुपये से लगाकर तीन सौ रुपये किलो तक जहां बाजार में हो गई है वहीं फुटकर दुकानों में एक नीबू की कीमत कम से कम दस रुपया और 15 रुपया तक में खुल्लमखुल्ला बेचा जा रहा है।हालांकि नीबू के शौकीनों की दुकानदारों के मुताबिक संख्या घट रही है।
सब्जी के बढ़ते भावों को लेकर अन्य सब्जियों की दरों में भी एक माह के बाद भारी इजाफा हुआ है। पहले 70 रुपये तक में पांच किलो तक मिलने वाला आलू सौ रुपये में पांच किलो दुकानदार बेच रहे हैं। सब्जी संबंधी अन्य सब्जियों के बढ़े भावों के साथ सब्जी में पड़ने वाले सहायक सामग्रियों की भी दरें बढ़ गई हैं। लौकी 30 रुपये किलो, कद्दू 20 रुपये किलो, 40 रुपये किलो में बिकने वाली ककड़ी इन दिनों 80 रुपये किलो तक पहुंच गई है। 70 रुपये किलो बिकने वाली भिंडी डेढ़ सौ रुपये किलो की दरों को छू रही है। खीरा भी अपनी दरें बदलकर लोगों की रसोई में पहुंच रहा है। टमाटर की दरों में फिलहाल कम इजाफा हुआ है। प्याज की दरों में भी कम बढ़ोत्तरी हुई है। लहसुन जहां 80 रुपये किलो तक बिकने के लिए मजबूर है वहीं हरी धनिया की पत्ती की दरें 160 रुपये से दो सौ रुपये किलो तक पहुंच गई हैं। कुल मिलाकर बढ़ी हुई सब्जी की दरों को लेकर सब्जी फरोशों से लेकर सब्जी खाने के शौकीन अंदर खाने बेहद परेशान हैं। जहां कल तक आम आदमी की रसोईयों में रंग-बिरंगी सब्जी शोभा बढ़ाती थी अब बढ़े भाव के कारण रसोइयों का रंग बदरंग सा हो गया है। जब सब्जी के बढ़े भावों को लेकर सब्जी के थोक और फुटकर विक्रेताओं से बातचीत की गई तो उनका कहना है कि पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ने के कारण बाहर से आने वाले सब्जियों की दरें बढ़ना स्वाभाविक है। दूसरी ओर सब्जी के क्रेता कहते हैं कि अब जरूरत के हिसाब से सस्ती सब्जी लेकर स्वाद बदलना मजबूरी हो गया है क्योंकि बढ़ी दरों के कारण रसोई का बजट भी गड़बड़ा गया है। बढ़ी हुई सब्जी की दरों में नियंत्रण लगाने की अपेक्षा भी आम आदमी द्वारा की जा रही है।