मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने के बाद पूर्वांचल में ढहा बाहुबलियों का किला
वाराणसी। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की राजनीति में क्षेत्रीय दलों के उभार से ही बाहुबली नेताओं का दबदबा कायम हुआ है। पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित राजधानी लखनऊ, इलाहाबाद आदि मंडलों में इनकी भूमिका निर्णायक हो गई। इन्हें सपा-बसपा के शीर्ष नेताओं के साथ भाजपा, कांग्रेस, वामदल भी शह देने लगे। इन बाहुबलियों के आगे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल के दिग्गज नेताओं को भी अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए झोली फैलानी पड़ती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से फूलपुर के पूर्व सांसद और बाहुबली अतीक अहमद के चुनाव लड़ने की चर्चा रविवार को दिनभर सोशल मीडिया पर बनी रही। शहर में चाय-पान की दुकानों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर लोग बिना लाग लपेट के कहते रहे कि अगर अतीक बनारस से चुनाव लड़ते हैं तो मुस्लिम मतों के बिखराव से अतीक सहित कांग्रेस और गठबंधन के प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बचेगी। वर्ष 2014 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल मुस्लिम मतों के न बिखरने के चलते ही अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे थे। छात्रनेता रामेन्द्र मिश्र, अशोक तिवारी, हेमन्त सिंह ने कहा कि अतीक के राजनीतिक करियर के लिए वाराणसी कब्रगाह सरीखी होगी लेकिन प्रधानमंत्री के खिलाफ लड़कर पूरे देश में चर्चा में बने रहेंगे। अतीक के लड़ने से कांग्रेस के प्रत्याशी अजय राय, गठबंधन की शालिनी यादव का मुस्लिम वोटों का समीकरण बिखर जायेगा।
क्षेत्रीय दलों के उभार से ही पूर्वांचल सहित पूरे प्रदेश में बाहुबली नेताओं का दबदबा कायम हो गया। पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित राजधानी लखनऊ, इलाहाबाद आदि मंडलों में इनकी भूमिका निर्णायक हो गई। इन्हें सपा-बसपा के शीर्ष नेताओं के साथ भाजपा, कांग्रेस, वामदल भी शह देने लगे। नतीजन पूर्वांचल में बाहुबली मुख्तार अंसारी, बृजेश सिंह, धनंजय सिंह, सुशील सिंह, रमाकान्त यादव, उमाकान्त यादव, उदयभान सिंह डाक्टर, अतीक अहमद, राजा भैया, हरिशंकर तिवारी, अमरमणि त्रिपाठी, मित्रसेन यादव, डीपी यादव, रिजवान जहीर, बाल कुमार पटेल, विजय मिश्र, गुड्डू पंडित, अमनमणि त्रिपाठी, अजय राय जैसे नेताओं ने सियासी फलक पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली। इन बाहुबलियों के आगे क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल के दिग्गज नेताओं को भी अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए झोली फैलानी पड़ती थी।
वर्ष 2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर चली तो एक-एक कर बाहुबलियों का सियासी किला ढहने लगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने के बाद पूर्वांचल में इन नेताओं का सफाया हो गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व में भरोसा जताकर भाजपा ने वर्ष 2019 के चुनाव में दागी और बाहुबली नेताओं से किनारा करने की भरपूर कोशिश की लेकिन कांग्रेस पूर्वांचल में अपने अस्तित्व को बचाने के लिए समझौते के लिए बाध्य दिखी। यही कारण रहा कि कांग्रेस को वाराणसी से बाहुबली अजय राय और भदोही में रमाकांत यादव को चुनाव मैदान में उतारना पड़ा।