ज्ञानवापी में मस्जिद नहीं, तहखाने से ही मिलेंगे मंदिर के प्रमाण

ज्ञानवापी में मस्जिद नहीं, तहखाने से ही मिलेंगे मंदिर के प्रमाण
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  • ज्ञानवापी मस्जिद के तहखाने में ही मौजूद हैं 15वीं शताब्दी के मंदिर के अवशेष
  • मधुकर चतुर्वेदी

वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम सर्वे कर रही है। रविवार को तीसरे दिन एएसआई की 51 सदस्यीय टीम ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में वैज्ञानिक सर्वे के दौरान जीपीआर तकनीक का इस्तेमाल किया। सर्वे में एएसआई मौजूद तीनों गुंबदों के नीचे और तहखानों का भी सर्वे करेगी। सर्वे के बीच हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि तहखाने से 4 फीट की मूर्ति मिली है। मूर्ति के अलावा 2 फीट का त्रिशूल और 5 कलश और दीवारों पर कमल के निशान भी मिले हैं।

वहीं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व भूगोलवेत्ता और और प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक प्रो. राणा पीबी सिंह ने कहा है कि न्यायालय के आदेश पर ज्ञानवापी मस्जिद का वैज्ञानिक सर्वे आज हो रहा है लेकिन, वह कई बार ज्ञानवापी मस्जिद में जा चुके हैं। उनका कहना है कि केवल मस्जिद में मौजूद तहखाने को खोल कर उसे अच्छे से देख लिया जाए, तो मंदिर के प्रमाण स्वयं सामने आ जाएंगे। प्रो. राणा पीबी सिंह की काशी और ज्ञानवापी पर 11 पुस्तकें और 145 रिसर्च प्रकाशित हो चुकी हैं और कई व्याख्यानों में उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद को मंदिर तोड़कर बनाए जाने के प्रमाण भी प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने जानकारी दी कि ज्ञानवापी मस्जिद का पहले भी सर्वे हो चुका है। 1937 में दो इतिहासकारों ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के तहखाने और पश्चिमी दीवार का सर्वे किया था। उस समय भी यहां मंदिर के कई प्रमाण मिले थे। आखिरी बार मस्जिद का तहखाना 1952 में खुला था। मंदिर तोड़कर यहां पर मस्जिद बनायी गयी है, इसके सारे प्रमाण तहखाने में ही बंद है। प्रो. सिंह ने कहा कि वह 50 बार ज्ञानवापी मस्जिद में जा चुक हैं। आखिरी बार 1992 से पूर्व गए थे।

तहखाने में मौजूद हैं आधे मंदिर के प्रमाण



प्रो. राणा पीबी सिंह ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे तहखाने में आधे मंदिर के प्रमाण हैं। टूटे हुए शिवलिंग, लक्ष्मी प्रतिमा, घड़ियाल, मोरों की मूर्तियां, मगर, स्वास्तिक, त्रिशूल और भी देव प्रतिमाओं के अवशेष मौजूद हैं। तहखाने में ही हाथी की सूंड के कटे भाग बिखरे पड़े हैं। संभवतः यह गणेश जी की खंडित मूर्ति के अवशेष हो सकते हैं।

मस्जिद में मौजूद हैं दो तहखाने

मौजूदा ज्ञानवापी मस्जिद में दो तहखाने हैं। तहखाने के दो भाग अंग्रेजों ने किए थे। उत्तर की ओर तहखाने की चाबी अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी को दी तथा दक्षिण भाग की चाबी व्यास परिवार को दी थी। टूटे-फूटे जो अवशेष थे, वह व्यास परिवार के हिस्से में हैं। 1991 में पं. सोमनाथ व्यास ने एक मुकदमा किया था, इसमें उन्होंने यह दावा किया था कि यह जो मंदिर है, जिसे 1669 में तोड़ा गया था। उसमें उनके ही परिवार के लोग पूजा करते थे, इसलिए वह उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। अभी एसएसआई को मुस्लिम पक्ष के लोगों ने तहखाने की चाबी सौंप दी है और एएसआई उसका सर्वे कर रही है।

390 साल पहले ज्ञानवापी में मौजूद था शिवलिंग



390 वर्ष पूर्व ब्रिटिश यात्री पीटर मुंडी ने भी अपनी भारत यात्रा के संस्मरणों में उल्लेख किया था कि ज्ञानवापी में बिना किसी नक्काशी किए हुए पत्थर पर महिलाएं दूध, गंगाजल, पेड़ के पत्ते चढ़ा रहीं हैं। दीपक भी जलाए जा रहे हैं। यहां पानी को बाहार जाने का रास्ता भी बनाया हुआ है। पीटर मुंडी शाहजहां के शासनकाल में भारत आया था। उनसे 1630 में पड़े भीषण अकाल का भी वर्णन किया है।

विश्वेश्वर मंदिर पर बने थे आठ मंडप

प्रो. राना पीबी सिंह ने 1836 में जेम्स प्रिंसेप द्वारा बनाए गए विश्वेश्वर मंदिर के नक्शे को दिखाते हुए बताया कि प्राचीन मंदिर में आठ मंडप थे पश्चिम में गणेश मंडप, श्रंगार मंडप और दंडपाणी मंडप, उत्तर में ऐश्वर्य पंडप, भैरव मंडप, पूर्व में जन मंडप और तारकेश्वर मंडप और दक्षिण में मुक्ति मंडप। इन आठ मंडपों के बीच में श्री विश्वेश्वर प्रतिष्ठित थे। 1993 से पहले श्रंगार गौरी की नियमित पूजा होती रही है।

काशी का मूल तत्व है ज्ञानवापी

प्रो. राणा पीबी सिंह ने बताया कि जो स्थान शरीर में नाभि का है, वही काशी में ज्ञानवापी का है। स्कंदपुराण के काशी खंड के अनुसार ज्ञानवापी को केंद्र में रखकर एक योजन गोला खींचा जाए तो जो क्षेत्र उसमें समाहित होता है, उसे ही अविमुक्त क्षेत्र कहते हैं।

अमेरिकी खगोलशास्त्री ने किया था शोथ

प्रो. राणा बताते हैं कि 1993-94 में एक अमेरिकी खगोलशास्त्री जान किम मालविल भारत आए थे। वह भारत सरकार के कई प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे। वह भी उनके साथ सहयोगी के रूप में थे। उन्होंने जब खगोलशास्त्र की विधि से काशी की माप की तो यह तथ्य वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हुआ कि ज्ञानवापी ही काशी का केंद्र है और ज्ञानवापी पर ही सबसे अधिक मैननेटिक ऊर्जा पायी गयी।

एएसआई के एडीजी डाॅ. आलोक त्रिपाठी कर रहे हैं नेतृत्व

ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे का नेतृत्व एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक डाॅ. आलोक त्रिपाठी कर रहे हैं। वे अंडरवाटर आर्कियोलाॅजी सर्वे के विशेषज्ञ हैं। लक्षद्वीप के समुद्र में प्रिसेंस राॅयल जहाज के अवशेष ढूंढ़ने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। इसने काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है।

न्यायालय ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वे का निर्देश दिया है। एएसआई ग्राउंड पनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण के माध्यम से वर्तमान संरचना का पता लगाएगी। सर्वे से यह पता चलेगा कि वर्तमान संरचना का निर्माण हिंदू मंदिर की संरचना पर किया गया है या नहीं? वैज्ञानिक सर्वे में निर्माण की उम्र और प्रकृति का पता लगाने के लिए डेटिंग भी की जाती है। जमीन के नीचें क्या है, इससे यह भी पता चलेगा। मैनें भी ज्ञानवापी मस्जिद को देखा है। देखने से यह तो स्पष्ट है कि यह एक मंदिर की संरचना है। हालांकि पत्थर पर कार्बन डेटिंग मुश्किल होती है, लकड़ी पर कार्बन डेटिंग संभव है।

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