ज्ञानवापी केस में 125 मिनट चली बहस, हिन्दू पक्ष ने कहा 1993 जैसी पूजन व्यवस्था बहाल हो

ज्ञानवापी केस में 125 मिनट चली बहस, हिन्दू पक्ष ने कहा  1993 जैसी पूजन व्यवस्था बहाल हो
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वाराणसी। ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में गुरुवार को लगातार तीसरे दिन जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सुनवाई हुई। लगभग 125 मिनट तक वादी पक्ष की बहस को सुनने के बाद जिला जज ने सुनवाई के लिए 15 जुलाई की तिथि मुकर्रर कर दी। सुनवाई के दौरान वादी पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि उनकी याचिका सुनवाई योग्य है।

ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (स्पेशल प्रॉविजंस), 1991 लागू नही होता। मुस्लिम पक्ष की दलीलों को नकारते हुए अधिवक्ता ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर एक्ट को स्पष्ट कर कहा कि यहां की जमीन देवता में निहित है। इसके खिलाफ जो भी एक्ट या आदेश है वह शून्य है। जो मालिक होता है वही किसी संपत्ति का वक्फ कर सकता है। यहां की जमीन का कोई मालिक नहीं है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष देवता को लेकर भी जोरदार दलीलें पेश किया। वादी पक्ष के अधिवक्ता ने न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता, वेद-पुराणों, हिंदू लॉ, मुस्लिम लॉ के संदर्भ को सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णय का खास तौर पर उल्लेख किया। इसके पहले बुधवार को भी वादी पक्ष के अधिवक्ता ने जोरदार बहस की। अधिवक्ता ने कहा कि मुकदमा शृंगार गौरी के दर्शन-पूजन को लेकर है। मुकदमें में न तो कब्जे की बात है और न किसी को निकालने की बात है। ज्ञानवापी परिसर में वर्ष 1993 तक जैसे दर्शन-पूजन होता था। वैसे ही व्यवस्था फिर से लागू करने की मांग की गई है। अधिवक्ता ने कहा कि आराजी नंबर-9130 में मस्जिद बताई गई है। उस आराजी पर पहले से पूजा होती चली आ रही है। वर्ष 1993 में वहां बैरिकेडिंग लगाई गई। उसे फिर से खोल दिया जाए। स्वयंभू देवता की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं की जाती है।

डीके मुखर्जी की पुस्तक हिंदू लॉ और श्रीराम-जानकी मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी बताया। स्पष्ट किया कि स्वयंभू देवता कौन होते हैं। कितने प्रकार के होते हैं और उनकी पूजा कैसे की जाती है। धार्मिक अधिकार मौलिक अधिकार से परे हैं।हिंदू पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन ने पक्ष रखा। वादी पक्ष की दलीलें व बहस पूरी होने के बाद जिला जज की अदालत में यह तय होगा कि यह याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं।

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