ज्ञानवापी केस में हिन्दू पक्ष ने रखी दलील, कहा - औरंगजेब ने मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश तो दिया लेकिन...
वाराणसी। ज्ञानवापी-शृंगार गौरी प्रकरण में बुधवार को भी जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में सुनवाई हुई। प्रतिवादी मुस्लिम पक्ष की दलीलें पूरी होने के बाद वादी पक्ष के अधिवक्ता ने जोरदार बहस करते हुए कहा कि ज्ञानवापी मामले में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (स्पेशल प्रॉविजंस), 1991 लागू नही होता। मुस्लिम पक्ष जिस जमीन पर अपना दावा कर रहा है ,वह जमीन आदि विश्वेश्वर महादेव की है। उसपर जबरदस्ती नमाज पढ़ी जा रही है। लगभग दो घंटे की अदालती कार्यवाही के बाद जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सुनवाई के लिए 14 जुलाई की तिथि निर्धारित की है। इस मामले में दलीलें व बहस पूरी होने के बाद जिला जज की अदालत में यह तय होगा कि यह याचिका सुनवाई योग्य है या नहीं।
मंदिर पक्ष की ओर से रिकॉर्ड और तथ्य पेश किए गए। कहा गया कि मध्यकाल में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्तीकरण का आदेश तो दिया था लेकिन वहां मस्जिद बनाने का कोई फरमान नहीं दिया था। इसलिए वहां मस्जिद बनाना गलत था।अधिवक्ता विष्णु जैन ने मीडिया कर्मियों को बताया कि गुरुवार को भी हिन्दू पक्ष की सुनवाई होगी। जैन ने बताया कि सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले और हिन्दू शास्त्रों का भी हवाला दिया गया। सुनवाई में न्यायालय को यह भी बताया गया कि इमेज,स्वयंभू और प्राण प्रतिष्ठा क्या होती है। काशी विश्वनाथ एक्ट में मंदिर की परिधि के साथ बताया गया कि आदि विश्वेश्वर अनंत काल से हिंदुओं की आस्था के केंद्र हैं।
इसके पहले मंगलवार को प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता ने दलील दिया था कि वादपत्र में श्रृृंगारगौरी सहित अन्य विग्रहों के पूजन का अधिकार मांगा गया है। यह मांग यह मौलिक अधिकार की श्रेणी में आती है, जिस पर सुनवाई का अधिकार सिविल कोर्ट के पास नहीं है। इसके लिए वादी को हाईकोर्ट में अपील करनी चाहिए। अधिवक्ता ने कहा कि यदि मस्जिद का सही या गलत होना स्वीकार है और मन्दिर तोड़कर बना है तब उसे हटाने के लिए मुकदमा नहीं किया गया, जबकि बेदखली कर कब्जा दिलाने का मुकदमा होना चाहिए। प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि ज्ञानवापी की पूरी सम्पति वक्फ बोर्ड की है। ऐसे में सिविल कोर्ट को नहीं, लखनऊ स्थित वक्फ बोर्ड को सुनवाई का अधिकार है। इस सम्बंध में कई मुकदमे विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। ऐसे में यह प्रकरण सुनवाई योग्य नहीं है। इस मुकदमे को खारिज किया जाना ही न्यायसंगत होगा।