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दूध और पनीर का सेवन क्यों करते हैं हम?

एक दशक से अधिक पहले जब सरकार शाकाहारी और मांसाहारी भोजनों पर हरे और लाल बिंदु लगाने की व्यवस्था कर रही थी, दूध उद्योग और सैकड़ों निरक्षर लोगों ने इस पर जोर दिया कि दूध शाकाहारी है (भले ही यह पशुओं से आता हो) और दूध उत्पादों को हरे बिंदु के साथ ही सूचीबद्ध किया जाना चाहिए। हमने अपने हथियार डाल दिए।

पौधा आधारित भोजन खाने वाले लोग भी मानेंगे कि चीज़ उनकी कमजोरी है। यह मानने के बावजूद कि इसमें गंदी जुराबों जैसी बदबू आती है, फिर भी ऐसा क्यों है? चीज़ एक उच्च कैलोरी उत्पाद है जिसमें वसा, सोडियम और कोलेस्ट्रोल भरा होता है। आम चीज़ में 70 प्रतिशत वसा होता है। और उनमें शामिल होने वाले वसा का प्रकार मुख्यत: सेचुरेटिड (खराब) वसा होता है, जो हृदय रोग तथा मधुमेह के जोखिम को बढ़ाता है। चीज़ पश्चिमी भोजन में सेचुरेटिड वसा का नम्बर एक स्रोत है। अमेरिका में लगभग एक-तिहाई वयस्क लोग और 12.5 मिलियन बच्चे और किशोर मोटापे से ग्रसित हंै। हमें बहुत पीछे होना चाहिए था -अधिकांशत: शाकाहारी भोजन और घर में बने स्वस्थकारी भोजनों के प्रति रूचि के बावजूद हम भी मोटापे वाले देशों में शामिल हो गए हैं और मोटापा, हृदय रोग, कैंसर तथा मधुमेह के द्वारा मृत्यु होने का एक प्रमुख कारण है। इन तीनों रोगों में हम शीर्ष स्थान के निकट हैं।
एक औसत 12 इंच के चीज़ पिज्जा में लगभग 13 ग्राम वसा होता है, जिसमें 6 ग्राम सेचुरेटिड वसा और 27 मिलिग्राम कोलेस्ट्रोल होता है। चीज़ के 25 ग्राम में 9 ग्राम वसा और 6 ग्राम सेचुरेटिड वसा होता है। चीज़ के आंशिक रूप से स्किम्ड दूध में थोड़ी कम मात्रा में वसा होता है।

पर हम दूध पीना और चीज़/पनीर को खाना जारी रखेंगे।
अब कई वर्षों पश्चात मैंने जाना है कि लोग क्यों दूध पीते हैं तथा पनीर और चीज़ क्यों खाते हैं। इसलिए नहीं क्योंकि यह आपके लिए आवश्यक है अथवा कृष्ण ने यह पिया था (वास्तव में उन्होंने नहीं पिया था)। लोगों द्वारा इसे पीने पर बल दिए जाने का कारण इसका नशा है।
आप चीज़ के आदी हो सकते हंै। इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। जैसे-जैसे दूध पचता है, यह कैसोमोरफीन नामक मादक द्रव्य उत्पन्न करता है। वर्ष 1981 में एली हजूम और उनके सहयोगियों ने वेलकम रिसर्च लेबोरेट्रीज में दूध में मारफीन नामक रसायन के अंश पाए थे जो एक व्यसन वाला मादक द्रव्य है।
कैसोमोरफीन दूध प्रोटीन कैसीन से निकाला गया एक प्रोटीन खंड है। कैसीन सभी स्तनधारियों के दूध में पाया जाने वाला एक प्रमुख प्रोटीन है।
कैसोमोरफीन की विशिष्ट विशेषता यह है कि उनमें मादक प्रभाव होता है। ओपियॉइड (नशीले पदार्थों का मिश्रण) विश्व की सबसे पुरानी ज्ञात दवाओं में से एक है। ओपियॉइड को अच्छा, शांत, आनंद की गहन भावनाओं और उसके बाद एक सुस्ती वाली अनुभूति उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है। ओपियॉइड व्यसन वाले हैं। उन पर निर्भरता को यदि आप एकाएक छोड़ दें तो इससे नशे को छोडऩे जैसे लक्षण दिख सकते हैं।
चीज, आइसक्रीम, और मिल्क चॉकलेट जैसे संकेन्द्रित दूध उत्पादों में इन व्यसन वाले मादक पदार्थों की संकेन्द्रित मात्राएं होती हैं।(प्रसंगवश कैसीन को कभी-कभी कुछ डेयरी मुक्त और वेगन चीज़ तक में भी मिलाया जाता है)। 1 किलो चीज़ बनाने के लिए 10 किलो दूध लगता है। जब दूध को चीज़ में बदला जाता है, तो इसके अधिकांश पानी को हटा दिया जाता है और केवल संकेन्द्रित कैसीन और वसा ही बचता है। इस प्रकार, चीज़ जैसे संकेन्द्रित डेयरी उत्पादों में ओपियॉइड के उच्च स्तर होते हैं ताकि आनंद का प्रभाव अधिक हो। इसीलिए कई लोग रात को दूध पीकर सोते हैं।

स्तनधारी अपने दूध में ओपियॉइड क्यों विकसित करते हैं? फिजिशियन्स कमेटी फॉर रिसपॉन्सिबल मेडीसिन के संस्थापक और अध्यक्ष डा.नील बर्नाड बताते हैं कि ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि मां के दूध से उत्पन्न ओपियॉइड का शिशुओं को शांत कर देने वाला प्रभाव होता है और वस्तुत: यह मां-शिशु के मध्य संबंध के लिए काफी हद तक उत्तरदायी होता है। मनोवैज्ञानिक संबंधों में हमेशा ही एक शारीरिक आधार होता है। आप मानें या न मानें, मां के दूध का बच्चे के मस्तिष्क पर नशीली दवा जैसा प्रभाव होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे का मां के साथ लगाव बना रहेगा और बच्चे का पालन होता रहेगा और उसे आवश्यक होने वाले सभी पोषक तत्व भी मिलते रहेंगे। हेरोइन अथवा कोडीन जैसे कैसोमोरफीन आंतडिय़ों की गतिविधियों को मंद कर दते हंै और उनका निर्णायक डायरिया-रोधी प्रभाव होता है। ओपियॉइड प्रभाव के चलते ही अक्सर चीज़ कब्ज करने वाली होती है, जैसे कि ओपियॉइड दर्दनिवारकों में होती है।’’
यूरोपियाई खाद्य सुरक्षा एजेंसी ने अध्ययन और लोक स्वास्थ्य चिंताओं के प्रतिउत्तर में वर्ष 2009 में एक वैज्ञानिक सामग्री समीक्षा का आयोजन यह आकलन करने के लिए किया था कि कैसोमोरफिन से कितना व्यसन होता है और क्या यह कैसोमोरफिन आंतों की दीवार को पार करने तथा रक्त प्रवाह में आने और अंतत: रक्त-मस्तिष्क की सीमा आदि तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। क्या कैसोमोरफिन की ऑटिज्म आदि में कोई भूमिका होती है। वे अभी भी मामले का अध्ययन कर रहे है क्योंकि वे इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकें है कि मानव के शरीर के लिए कितना ठीक है।

तथापि, हम इतना जानते हैं कि ओपियॉइड दवाओं पर भिन्न लोगों की भिन्न प्रतिक्रिया होती है और भिन्न मात्रा का लोगों पर अलग-अलग असर होता है। इसके अलावा, आमतौर पर यह माना जाता है कि दैनिक आधार पर दवाओं का सेवन हमारे लिए खराब होता है चाहे बहुत थोड़ी मात्राओं में ही क्यों न हो। फ्लोरिडा के वैज्ञानिक डा.राबर्ट केड ने कैसोमोरफिन को ध्यान में कमी के विकार का एक संभावित कारण माना है। डा.केड ने शिजोफेरनिया या ऑटिज्म वाले रोगियों के रक्त तथा मूत्र में उच्च मात्राओं में बीटा-कैसोमोरफिन-7 पाया था। नार्वे में डा.कार्ल रीचेल्ट द्वारा किए गए अध्ययन ऑटिस्टिक व्यवहार, सेलियैक रोग, शिजोफेरनिया और डेयरी के पाचन के मध्य एक मजबूत संबंध दर्शाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ इलियानॉस का एक अनुसंधान पेपर बताता है कि ‘‘कैसोमोरफिन में ओपियॉइड विशेषताएं होती हंै। ओपियॉइड का अर्थ मोरफिन जैसे प्रभाव है जिसमें बेहोशी, धैर्य, निंद्रा लाने और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिखते है।’’
जर्नल ऑफ पीडीयेट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी एण्ड न्यूट्रीशियन में प्रकाशित ’’काओस मिल्क इन्ड्यूस्ड इन्फेंट एपनिया विद इन्क्रीस्ड सीरम कंटेट ऑफ बोवाइन बीटा कैसोमोरफिन 5’’ शीर्षक वाली हाल की एक मामला रिपोर्ट में इन्फेंट एपनिया का संदर्भ किसी बच्चे द्वारा सांस लेना रूकने को बताया गया है। अनुसंधानकर्ता ‘‘बार-बार एपनिया की घटना होने वाले एक स्तनपान करने वाले शिशु का मामला बताते हैं, जो हमेशा उसकी मां के गाय का ताजा दूध पीने के पश्चात होता था।’’ प्रयोगशाला के परीक्षणों ने बच्चे के रक्त में कैसोमोरफिन के उच्च स्तरों को दर्शाया जिससे अनुसंधानकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि ‘‘सेन्ट्रल नर्वस प्रणाली में ओपियॉइड क्रिया का डिप्रेशन करने वाला प्रभाव होता है और यह दूध एपनिया नामक एक क्रिया को बढ़ावा देता है।’’ पेपर यह निष्कर्ष निकालता है कि ‘‘वर्तमान रिपोर्ट का उद्देश्य गाय के दूध के प्रोटीन के प्रति शिशु के संपर्क में आने पर एपनिया के हमले के साथ एक प्रणालीगत अभिक्रिया होने की संभावना को रोकना है। हमारा विश्वास है कि ऐसी क्लीनिकल स्थिति विरले ही सामने आती है; तथापि, इसके साथ शिशु के जीवन को वास्तव में खतरा होता है जिससे एक साधारण तथा अधिक महंगे न होने वाले भोजन हस्तक्षेप अर्थात डेयरी उत्पाद रहित भोजन को अपना कर बचा जा सकता है।’’ बार-बार एपनिक दौरे आने वाले प्रत्येक 10 शिशुओं में से 1 को बचाया नहीं जा सकता और उसकी मृत्यु एसआईडीएस, सडन इन्फेंट डेथ सिन्ड्रोम से हो जाती है (जिसे पालना मृत्यु भी कहा जाता है)। प्रत्येक दो हजार बच्चों में से एक की मृत्यु इस तरीके से होती है। अनुसंधानकर्ता निष्कर्ष निकालते हंै कि ‘‘शिशु की अपरिपक्व सेन्टल नर्वस प्रणाली में बीटा-कैसोमोरफीन का प्रवेश मस्तिष्क में श्वसन केन्द्र को बाधित कर सकता है जो असामान्य वायु संचार में परिणत होता है, हाइपरकैपनिया (अत्यधिक कार्बनडाइऑक्साड), हाइपोक्सिया (पर्याप्त ऑक्सीजन न होना), एपनिया और मृत्यु हो सकती है।’’
कैसोमोरफिन के प्रकार-1 मधुमेह, पोस्टपार्टम साइकोसिस, सर्कुलेटरी विकार, भोजन एलर्जियों तथा ऑटिस्म सहित कई अन्य स्थितियों को करने वाला भी पाया गया है।
बेवरली हिल्स, कैलिफोर्निया में इम्यूनोसाइन्सेस लैब इंक के सीईओ अरीस्टो वोजदानी, पीएच.डी., एम.एससी., एमटी और इम्यूनोलॉजिस्ट तथा अनुसंधानकर्ता कहते हैं कि ‘‘ग्लूटन तथा डेयरी कई लोगों के लिए दवा के रूप में कार्य करते हंै। जैसा कि हेरोइन तथा दर्द की दवा के व्यसनी के साथ होता है, ग्लूटन या कसीन को छोडऩा तत्काल किसी अन्य व्यसन को छोडऩे से होने वाली बीमारी के लक्षण ला सकता है।’’ छोड़े जाने वाले लक्षणों में गुस्सा और डिप्रेशन शामिल हैं।

Updated : 3 Nov 2016 12:00 AM GMT
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