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192 कट ऑफ, 276 लाने वाले को प्रवेश के लिए दायर करना पड़ रही याचिका

इंदौर। एमबीबीएस काउंसलिंग मजाक बनकर रह गई। जिस श्रेणी में कट ऑफ 192 है उसी के छात्र को 276 नंबर लाने के बावजूद प्रवेश के लिए याचिका दायर करना पड़ रही है। डीएमई ने सुनवाई का मौका दिए बगैर उसका प्रवेश निरस्त कर दिया। सरकार यह तो स्वीकार रही कि मानवीय भूल के चलते निजी मेडिकल कॉलेज में तय सीटों से ज्यादा पर प्रवेश हुए थे, लेकिन इन्हें किस आधार पर खारिज किया, यह किसी को नहीं मालूम। सरकार की भूल का खामियाजा छात्रों से नहीं वसूला जा सकता।

यह बात डीएमई के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में दायर याचिका में याचिकाकर्ता छात्रों के वकील ने कही। सरकार ने अदालत में दिए जवाब में स्वीकारा कि एमबीबीएस काउंसलिंग में मानवीय भूल के चलते निजी मेडिकल कॉलेजों में तय सीट से ज्यादा पर प्रवेश हुए थे। अदालत में करीब एक घंटा बहस चली। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आदित्य सांघी ने पैरवी की। उन्होंने कहा कि एमबीबीएस में प्रवेश के लिए छात्र दो-तीन साल कड़ी मेहनत करते हैं, लेकिन सरकार मानवीय भूल का बहाना बनाकर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। सिर्फ एक हस्ताक्षर से उनके भविष्य का फैसला कर लिया गया। उन्हें सुनवाई का मौका भी नहीं दिया।

कम नंबर लाने वाले 51 छात्रों को दिया प्रवेश
सांघी ने अदालत को बताया कि सरकार ने 51 ऐसे छात्रों को निजी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश दिया जिनके नंबर याचिकाकर्ताओं से कम हैं। अमलतास मेडिकल कॉलेज के जिन 28 छात्रों के प्रवेश निरस्त किए गए, उनके पास दूसरे कॉलेजों में प्रवेश का विकल्प भी उपलब्ध था।
आरक्षित रखी जाएं सीट, दिलवाया जाए 20 लाख हर्जाना
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि शासन की मानवीय भूल का खामियाजा उनसे नहीं वसूला जा सकता। गलती शासन की है हर्जाना भी उसे ही भुगतना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने मांग की कि उनके लिए अगले सत्र में निजी मेडिकल कॉलेज की सीट आरक्षित रखी जाए। शासन की गलती की वजह से उन्हें एक साल का नुकसान हुआ है इसलिए उन्हें 20 लाख रुपए हर्जाना दिलाया जाए। इसकी वसूली उन अधिकारियों से की जाए जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।
मामला लंबित तो प्रवेश निरस्त क्यों किये
बहस में सरकारी वकील ने अदालत को बताया कि मामले में सर्वोच्च न्यायालय में भी याचिका लंबित है। वहां 9 नवंबर को सुनवाई होगी। इस पर अदालत ने नाराजगी जताई और पूछा कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है तो छात्रों के प्रवेश निरस्त क्यों किए। शासन इसका कोई जवाब नहीं दे सका।

इस तरह चली बहस
याचिकाकर्ता के वकील:छात्रों के प्रवेश बगैर किसी सूचना के निरस्त किए गए हैं। कम नंबर वाले छात्र मेडिकल कॉलेजों में पढ़ रहे हैं और ज्यादा वालों को सडक़ पर कर दिया गया।
अदालत: ऐसे कितने छात्र हैं ?
वकील: अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में कट ऑफ 192 है। याचिकाकर्ता 276 नंबर लाया लेकिन उसका प्रवेश निरस्त कर दिया। सरकार निजी मेडिकल कॉलेजों के साथ मिलकर काम कर रही है। ऐसे 51 छात्र हैं जिनके नंबर हमारे नंबर से कम हैं। सरकारी वकील: हम जवाब में कह चुके हैं कि मानवीय भूल की वजह से ज्यादा प्रवेश हुए थे।
वकील:मानवीय भूल सरकार ने की थी इसके लिए छात्रों के भविष्य से नहीं खेला जा सकता। सरकार छात्रों का करियर खत्म कर रही है।

Updated : 5 Nov 2016 12:00 AM GMT
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