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एक नई सोच.....

एक नई सोच.....
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अर्चना, श्रीमती अर्चना तोमर। जी हाँ, आज ग्वालियर अंचल के शिक्षा जगत में ही नहीं अपितु ग्वालियर की सीमाओं से भी बाहर एक जाना पहचाना प्रतिष्ठित नाम हैं। सामान्यतः उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद खासकर प्रबंधन के क्षेत्र में योग्यता हासिल करने के बाद सहज सरल एवं तेजी से कामयाबी के शिखर पर पहुँचने का रास्ता हैं, आप किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम शुरू करें या फिर स्वयं का कोई उद्योग प्रारंभ करें। श्रीमती अर्चना तोमर जिस पृष्ठभूमि से हैं उनके लिए दोनों ही सहज थे। वे आज जिस परिवार की बहु हैं उनके ससुर श्री प्रताप सिंह तोमर अंचल के प्रतिष्ठित व्यवसायी हैं और उनके बेटे श्री राघवेंद्र सिंह तोमर भी पिता की तरह ही अपना नाम स्थापित कर चुके हैं। अर्चना तोमर ने कुछ नया सोचा और इस नई सोच को जमीन पर लाने के लिए परिवार ने सहयोग दिया स्वयं श्रीमती अर्चना तोमर उत्साही भी हैं और एक स्पष्ट एवं सकारात्मक सोच की धनी भी आपने ग्वालियर में एक नए विद्यालय की नीव रखी परिणाम सामने हैं। ग्वालियर में शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत श्रीमती अर्चना तोमर एक गृहणी के साथ – साथ ग्वालियर शहर के प्रतिष्ठित माउंट लिट्रा जी स्कूल (ब्रिटिश काउंसिल द्वारा इंटरनेशनल स्कूल अवार्ड 2016-2019 से सम्मानित) की डायरेक्टर हैं, अर्चना जी ने अहमदाबाद के एसएलआईएमएस कॉलेज से MBA की शिक्षा ली हैं और स्कूल में उच्च स्तर की प्रोद्योगिकी का इस्तमाल करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव करने का प्रयास किया हैं। तो आईये जाने अर्चना ने कैसे नए विचार, नयीं सोच, सकारत्मक परिवर्तनों, उद्यमिता, मेहनत और काबिलियत के बल पर कामयाबी की गाथा लिखी.....

प्रश्न 1 : आपने स्कूल खोलने ली कल्पना कैसे की और प्रेरणा कहाँ से मिली ?

उत्तर : मैं और मेरे पति श्री राघवेंद्र तोमर जी हमेशा समाज के लिए कुछ करने के बारें में सोचते थे और समयानुरूप सामजिक कार्यो में सहभागिता करते भी थे लेकिन कुछ बड़ा करने का मन हमेशा रहता था, जब मेरा बेटा स्कूल जाने लायक हो गया तो हमने बेटे को अच्छे से स्कूल में भर्ती कराने के लिए स्कूल सर्च किया जैसा हम चाहते थे वैसा स्कूल नहीं मिल पा रहा था उसी दौरान हमारी फैमिली का मुंबई जाना हुआ वहाँ देखा की महानगरों में पढाई का स्तर ही अलग हैं बेटे को महानगर में पढ़ाने की इच्छा थी फिर आईडिया आया की क्यों ना शिक्षा के क्षेत्र में आकर एक अच्छा विद्यालय खोला जाए क्योंकि शिक्षा ही ऐसा माध्यम हैं जिससे हम आने वाली पीढ़ी जो की देश का भविष्य हैं उसको उचित मार्गदर्शन देने के साथ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, इसलिए विद्यालय खोलने का आईडिया आया ।

प्रश्न 2 : आपके विचारों को मूर्तरूप देने के लिए किसने प्रेरित किया ?

उत्तर : मेरे पति श्री राघवेंद्र सिंह तोमर जी ने ही आईडिया को मूर्तरूप देने के लिए प्रेरित किया, उनके सहयोग के बिना यह कार्य मेरे लिए मुश्किल था।

प्रश्न 3 : आपके सामने विद्यालय खोलने के दौरान सबसे बड़ी चुनौती क्या थी ?

उत्तर : विद्यालय के स्थापना से लेकर यहाँ तक के सफ़र में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन सबसे बड़ी चुनौती थी की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु महानगरों के विद्यालयों के पैटर्न को यहाँ कैसे अपनाएं, इस चुनौती का हल निकालने के लिए महानगरों के विद्यालय का भ्रमण किया उस दौरान ज़ी स्कूल की शिक्षा पध्दति काफी पसंद आई फिर हमने ज़ी स्कूल के साथ टाई- उप किया और फिर दूसरी समस्या थी की ज़ी स्कूल की शिक्षा पध्दति का यहाँ क्रियान्वयन करने हेतु विद्यालय को अच्छे शिक्षक मिलना, लेकिन हम लोग बखूबी जानते थे की यह जटिल चुनौती हैं लेकिन हार नहीं मानी और हमको उच्च शिक्षित एवं अनुभवी शिक्षक मिलें. आज माउंट लिट्रा जी स्कूल ग्वालियरवासियों के नवांकुरों को उचित शिक्षा दे रहा हैं।

प्रश्न 4: विद्यालय के स्थापना के दौरान बाधाओं का सामना कैसे किया ?

उत्तर : कुछ फैसलों ने राह में बाधाएं खडी की, लेकिन उन्ही फैसलों से काफी सीखा और प्रयास जारी रखते हुए सफलता भी हासिल की।

प्रश्न 5 : क्या आपके पास कोई व्यावसायिक अनुभव हैं ?

उत्तर : व्यवसाय से मेरा सीधा कोई सम्बन्ध नहीं हैं, स्कूल हेतु व्यावसायिक दृष्टिकोण भी नहीं हैं. लेकिन स्कूल को चलाने के लिए मेरी मदद श्री राघवेंद्र तोमर जी करते हैं।

प्रश्न 6 : विद्यालय को चलाने में आपके सामने सबसे बड़ी चुनौती क्या हैं ?

उत्तर : विद्यालय को चलाने के लिए जो सिस्टम बनाया हैं वो सुचारू रूप से चलें यह सबसे बड़ी चुनौती हैं लेकिन विद्यालय में सभी को काम करने की पूरी आज़ादी प्रदान की हैं और इस आज़ादी के साथ आने वाली जिम्मेदारियों को उनमे समझने की क्षमता भी हैं।

प्रश्न 7 : आप एक गृहणी भी हैं, तो कैसे घर और विद्यालय में सामंजस्य बनाती हों ?

उत्तर : मैं प्रतिदिन दैनंदिनी (to do list) के अनुरूप अपने कार्य को करती हूँ, सुबह स्कूल आने से पहले तक घर के सभी कार्य कर लेती हूँ जो रह जाता हैं उसको तुरंत डायरी में लिख लेती हूँ विद्यालय से आकर फिर रिव्यु करती हूँ ऐसे ही विद्यालय के कार्य भी दैनंदिनी (to do list) के अनुरूप करती हूँ इससे मुझे फायदा यह होता हैं की कार्य एक निश्चित अवधि में पूर्ण हो जाता हैं, विलम्ब नहीं होता दोनों में सामंजस्य बना रहता हैं।

प्रश्न 8 : विद्यालय के भविष्य के लिए क्या प्लान हैं ?

उत्तर : हम अपने विज़न को ध्यान में रखते हुए आगे बड़ रहें हैं, उसी के अनुरूप समय-समय पर प्लान बनाते रहते हैं।

प्रश्न 9 : देश की 65% आबादी युवा हैं जो की देश का भविष्य हैं और आप अपने अनुभवों के आधार पर क्या सन्देश देना चाहेंगी ?

उत्तर : प्राय देखा गया हैं की युवा थोड़ी सी कठिनाई आने पर खुद को निराश पाते है जबकि ऐसे में हमारे अंदर बहुत सारी काबिलियत होती है जिसका हमे पूर्ण रूप से अंदाज़ा भी नहीं होता। यदि हम अपनी पिछली गलतियों से सीखे और हालातों को पॉजिटिव ले हम चाहे कितनी भी मुश्किलों में क्यों नहीं हो हमारे सामने हमेशा एक दरवाजा हमारे लिए खुला होता है जरुरत है उसको पहचानने की , जबकि निराश होकर हम खुद उसे बंद कर लेते है ऐसे में जिन्दगी का दूसरा पहलू हम देख ही नहीं पाते, इसलिए आवश्यकता हैं की युवाओं को मुश्किलों से जूझना आना चाहिए क्योंकि उसकी यही मुश्किलें उसे आने वाली जिन्दगी की छोटी बड़ी परेशानियों का सामना करने की उसकी काबिलियत को बनाती है।

प्रश्न 10 : स्वदेश के बारें में आप क्या कहना चाहेंगी ?

उत्तर : स्वदेश को धन्यवाद की मुझे इंटरव्यू के लिए चुना, में पेपर तो प्रतिदिन ही पढ़ती हूँ और मुझे स्वदेश का "दीपावली विशेषांक 2016" एवं विशेष परिशिष्ट में प्रकाशित "वात्सल्य ग्राम" पर आलेख अच्छा लगा. में ईश्वर से कामना करती हूँ की स्वदेश निरंतर प्रगतिपथ पर आगे बढ़ता रहें ।

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Updated : 3 Jan 2017 12:00 AM GMT
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