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हाईस्कूल की परीक्षा ढाई माह बाद, बच्चों को नहीं आते पहली प्रश्नावली के ही सवाल

हाईस्कूल की परीक्षा ढाई माह बाद, बच्चों को नहीं आते पहली प्रश्नावली के ही सवाल
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शिक्षकों की मुख्यमंत्री से एक के बाद एक बढ़ती हुई मांग ।


ग्वालियर । मध्य प्रदेश सहित ग्वालियर शहर में शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। सरकारी स्कूलोें में शिक्षा के इस गिरते स्तर को लेकर मध्य प्रदेश सरकार भी चिंतित है। हाई स्कूल की परीक्षा शुरू होने में मात्र ढाई माह का समय शेष बचा हुआ है। हालत यह है कि सरकारी स्कूल के बच्चों को गणित की प्रश्नावली एक तक के सवाल नहीं आते हैं अंग्रेजी की बात तो बहुत दूर की है। शिक्षा के इस गिरते स्तर के बीच बच्चों की तरफ ध्यान देने की अपेक्षा शिक्षकों की मुख्यमंत्री से एक के बाद एक मांग बढ़ती जा रही है।

शिक्षा के गिरते स्तर का एक नजारा मंगलवार को सराफा हायर सेकेण्ड्री स्कूल में देखने को मिला। इस स्कूल में एक तो कक्षा दस में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या न के बराबर देखने को मिली। दूसरी बात यहां यह देखने को मिली की इंगलिश में पाठ पांच का एक भी प्रश्न बच्चों को याद नहीं था। अन्य पाठों व अंग्रेजी व्याकरण की बात तो दूर की रही। स्कूल में अंग्रेजी का विषय पढ़ाने वाले अतिथि शिक्षक प्रदीप कुमार से पूछा कि आपकी कक्षा में बच्चों को कुछ भी याद नहीं है तो उनका कहना था कि बच्चे याद नहीं करते हैं। हमकों जो प्रश्न महत्वपूर्ण लगते हैं वहीं हम इन्हें याद करा देते हैं। इससे ज्यादा हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं। वहीं इस कक्षा के बच्चों का गणित में भी बहुत कमजोर स्तर देखने को मिला। हालत यह थी कि इस कक्षा के बच्चे गणित के सवाल तक हल नहीं कर पा रहे थे। ऐसी स्थिति में हाईस्कूल का परीक्षा परिणाम क्या रंग लेकर आएगा इसका अंदाजा लगाना बहुत कठिन है।

कक्षा नौ के बच्चों का भी डब्बा गोल

कक्षा दस की तरह कक्षा नौ की भी हालत खराब देखने को मिली। इसमें भी बच्चों का पढ़ाई का स्तर बहुत कमजोर था। स्कूल खुले होने के छह माह बाद भी बच्चे गणित की प्रश्नावली के सवाल तक हल नहीं कर पा रहे थे।

शिक्षा की अपेक्षा मांगों पर अधिक ध्यान

स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों का पढ़ाई की अपेक्षा मांगों पर अधिक ध्यान रहता है। मध्यप्रदेश सहित ग्वालियर में सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या लाखों में हैं। वर्तमान समय को देखते हुए इन शिक्षकों का वेतन 30 से 60 हजार रुपए के बीच है। इन सबके बावजूद यह शिक्षक प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपनी मांगों का रोना रोते रहते हैं। इन शिक्षकों का मन बच्चों को पढ़ाने की अपेक्षा अपनी मांगों पर अधिक रहता है। इसमें खास बात यह है कि अधिकांश शिक्षक बच्चों की पढ़ाने के अपेक्षा विभागीय नेतागिरी अधिक करते हैं और कक्षाओं को छोड़कर तक चले जाते हैं। ऐसे में बच्चों का भविष्य बनना और उनका स्तर सुधरना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं है।

इन बच्चों से हम बहुत दुखी हैं

सराफा स्कूल की अध्यापक साधना पुरोहित का कहना था कि हम इन बच्चों से बहुत दुखी हैं। इन बच्चों का प्रारंभिक स्तर बहुत कमजोर है। इनको अपना ढंग से नाम तक लिखना नहीं आता है। ऐसी स्थिति में जिन बच्चों को अपना नाम लिखना नहीं आता है, वह क्या पढ़ाई करेंगे। जो इनको याद करने के लिए कहते हैं उसे याद नहीं करते हैं।

इन्होंने कहा

‘हम बच्चों को अच्छे से अच्छा पढ़ाने का हर संभव प्रयास करते हैं। इनको पढ़ाई का सामान भी लाकर देते हैं, मगर यह पढ़ते ही नहीं हैं। हमारे साथ इनको भी मेहनत करनी होगी तभी उचित परिणाम देखने को मिलेगा। ’

श्रीमती विनीता रानी अत्री
प्राचार्य, सराफा स्कूल

Updated : 27 Dec 2017 12:00 AM GMT
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