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गुजरात में उल्टा पड़ रहा है कांग्रेस का दांव

गुजरात में उल्टा पड़ रहा है कांग्रेस का दांव
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गुजरात में कांग्रेस ने बड़े जोर शोर से प्रचार शुरू किया था। बाइस वर्ष में पहली बार कांग्रेस ने यहां अपनी वैचारिक लाइन में बदलाव किया। इसके पहले कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति को तरजीह देती थी। इस राजनीति में वह अपने को अल्पसंख्यकों की हिमायती पार्टी के रूप में प्रस्तुत करती थी। भाजपा और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को साम्प्रदायिक घोषित किया जाता था। उन्हें मौत का सौदागर भी बताया गया।

चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के दिग्गज मंदिरों में जाने से परहेज करते थे। यूपीए सरकार के समय तो हिन्दू या भगवा आतंकवाद का जुमला चलाया गया। इसका उद्घोष करने वाले साधारण नेता नहीं थे। ये सत्तारूढ़ पार्टी और तत्कालीन सरकार के नीति निर्माता थे। भगवा आतंकवाद शब्द गढ़ने का श्रेय भी इन्ही को था। राहुल गांधी ने तो यहां तक कहा था कि भगवा आतंकवाद इस्लामिक आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है। सुशील कुमार शिंदे,पी चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह जैसे नेता विश्व को यही बताना चाहते थे कि भारत में हिन्दू आतंकवाद है। इस्लामी आतंकवाद के साथ हिन्दू आतंकवाद को जोड़ना वोट बैंक की सियासत का सबसे घृणित उदाहरण था। इसके चक्कर में पाकिस्तान को मौका दिया गया। जब भारत सीमापार के आतंकवाद को रोकने की बात करता था,तब पाकिस्तान हिन्दू आतंकवाद पर पलटवार करता था। विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों को इस मुद्दे ने नुकसान पहुंचाया था। जबकि हिन्दू आतंकवाद का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं था। मुद्दा उठाने के बाद कई वर्षों तक केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही । फिर भी वह किसी के खिलाफ ठीक से आरोप पत्र तक दाखिल नहीं कर सकी। सच तो यह है कि हिन्दू आतंकवाद के आरोप ही दुर्भावना से प्रेरित थे। अंततः कुछ समय पहले न्यायपालिका ने आठ वर्षों से जेल में बंद लोगों को रिहा किया। कांग्रेस ने इस रिहाई पर भी सवाल उठाए थे।

बिडम्बना देखिए कि वही कांग्रेस अब अपने को हिंदुओं के प्रति सॉफ्ट दिखने की पुरजोर कोशिश में लगी है। धार्मिक स्थलों पर जाने पर कोई सवाल नहीं था। लेकिन राहुल का गुजरात में आचरण अप्रत्याशित और असहज था। चुनाव प्रचार के सिलसिले में वह मंदिरों में जानें का अभियान चलाते दिखाई दिए। गुजरात में पहले किसी चुनाव में उनका ऐसा भक्ति भाव दिखाई नहीं दिया था । इसलिए जिज्ञाषा होना स्वभाविक था।। इसके पहले तो मौत के सौदागर, अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी,गोधरा पर मौन और उसके बाद हुए दंगों पर मुखरता तक कांग्रेस की चुनावी रणनीति सीमित रहती थी। इस बार रणनीति में बड़ा बदलाव हुआ । पार्टी को हिंदुओं के ज्यादा करीब बताने के उपक्रम होने लगे। गुजरात दंगों का जिक्र बन्द हुआ। राहुल पचीसों मंदिर में हो आये। लेकिन नेकनीयत न हो तो अक्सर दांव उल्टे पड़ते है। कांग्रेस के साथ यही हुआ। अनेक मंदिरों की यात्रा ने जितनी छवि बनाई उस पर सोमनाथ मंदिर प्रकरण ने प्रश्नचिह्न लगा दिया। यहां केवल गैर हिंदुओं के लिए रजिस्टर रखा है। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी ने इसमें अहमद पटेल और राहुल गांधी का नाम लिखा । राहुल के साथ गए अशोक गहलोत,भारत सिंह सोलंकी,आदि अनेक नेताओं में से किसी का नाम नहीं था । विवाद होना स्वभाविक था। प्रश्न उठा कि राहुल का नाम गैर हिंदुओं में कैसे आया । इसपर राहुल स्थिति स्पष्ट कर देते तो उसी समय प्रकरण समाप्त हो जाता। लेकिन राहुल कुछ नहीं बोले । उनके प्रवक्ता जनेऊ ,हिन्दू ,हिंदुत्व आदि की व्याख्या करने लगे। इन दलीलों ने पार्टी की असलियत उजागर कर दी। वह छवि बदलना चाहती थी। लेकिन इतनी भी नहीं। इस प्रकार अपने को उदार बताने के लिए जो प्रयास चल रहे थे ,वह कमजोर पड़ गए।

इसी प्रकार कांग्रेस ने हार्दिक पटेल,अल्पेश,जिग्नेश को लेकर भाजपा को कमजोर करने की रणनीति बनाई थी। यह दांव भी उल्टा पड़ा। इन तीनों जातिवादी नेताओं की असलियत सामने आ गई । अल्पेश कांग्रेस में शामिल हो गए और चुनाव लड़ रहे है। जिग्नेश कांग्रेस के समर्थन से चुनाव मैदान में हैं। चुनावी राजनीति में कुर्सी के लिए इनकी बेकरारी इनका समुदाय समझ रहा है। हार्दिक की सीडी इस समय चर्चा में है। संबंधित महिला से महिला आयोग जानकारी लेगा। हार्दिक की छवि दागदार हो रही है। जिस प्रकार इनकी हरकतों से पाटीदार,दलित और पिछड़ा समुदाय नाराज हो रहा है। कांग्रेस के करीब रहने का इनका फैसला अधिकांश लोगों को मंजूर नहीं है।

कांग्रेस ने हार्दिक से समझौत किया । आरक्षण का वादा किया । यह दांव भी उल्टा पड़ा। अब लोग आरक्षण का फार्मूला पूछ रहे हैं। कांग्रेस के पास कोई जबाब नहीं है। पिछड़ा वर्ग भी नाराज हुआ है। उसे लग रहा है कि कांग्रेस उनके हिस्से से पटीदारों को आरक्षण देगी। राहुल गांधी ने नोटबन्दी और जीएसटी पर सबसे तीखा हमला बोला था। इसे चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाया लेकिन उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव ने इसकी हवा निकाल दी । यह मुद्दा गुजरात में भी नाकाम होगा। जीएसटी दरों में सुधार ने व्यापारियों की नाराजगी दूर कर दी है। यह मुद्दा भी उल्टा प्रभाव देने लगा है। कांग्रेस ने बाइस वर्ष के विकास की बात की। यूपी में सत्ताइस साल बेहाल का मुद्दा उठा कर कांग्रेस बेहाल हो गई। गुजरात में तो बाइस वर्षों में खूब विकास हुआ है। इसी कारण लोग मोदी के मुरीद हैं। यह मुद्दा भी अब कांग्रेस के गले पड़ा है। उसे गुजरात की विकास योजनाओं में अड़ंगा लगाने का जबाब देना पड़ रहा है। जाहिर है कि गुजरात में मतदान से पहले ही कांग्रेस की रणनीति बेअसर होने लगी है। उसके सभी दांव उल्टे पड़ने लगे हैं।

Updated : 4 Dec 2017 12:00 AM GMT
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