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प्रशासन ने किया पूरे जिले के हथियार जमा करने का बेतुका फरमान

प्रशासन ने किया पूरे जिले के हथियार जमा करने का बेतुका फरमान
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लाइसेंसी शस्त्र बना अब आफत
अनिल शर्मा/भिण्ड|
आत्म रक्षा के लिए बनवाया गया शस्त्र लाईसेंस अब लोगों के लिए आफत बन गया है। या फिर इसे यूं भी कह सकते हैं कि शस्त्र लाईसेंसधारी व्यक्ति की सबसे कमजोर नस व शासन-प्रशासन के लिए यह सबसे बड़ा हथियार साबित हो रहा है। चाहे पंचायत, मण्डी, नगर पालिका, सिंचाई अथवा अन्य कोई चुनाव हो, पुलिस प्रशासन व्यवस्था को बनाने के नाम पर पहली कार्रवाई शस्त्र जमा कराने की होती है। यही नहीं किसी के पास शस्त्र लाइसेंस है तो सबसे पहले लाईसेंस निरस्त करने की कार्रवाई का फरमान जारी करने की परंपरा बन गई है।

अटेर विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ ही प्रशासन का जिले के समस्त लाईसेंसी शस्त्र थानों में जमा करने का आदेश जारी हो गया और अंतिम तिथि 13 थी, अब 17 मार्च है। भिण्ड में निश्चित रूप से मार्च माह सभी के लिए व्यस्ततम होता है। चाहे व्यापारी, कर्मचारी हो या फिर किसान। इस माह लोगों के पास काफी काम रहता है। ऐसे में उपचुनाव की घोषणा के साथ ही शस्त्र जमा करने की जिम्मेदारी को भी उसे ही निर्वहन करना है।

समूचे भिण्ड जिले में संबंधित थाना प्रभारियों ने शस्त्र जमा करने की मुनादी करा दी है। मालनपुर से लेकर आलमपुर तक के लोग बंदूक जमा करने के लिए थानों में लंबी कतारों में लगे हुए हैं। यही नहीं पुलिस विभाग के पास भी बंदूक जमा करने का काम बढ़ गया है। करीब आधा दर्जन पुलिस कर्मी सुबह से लेकर शाम तक शस्त्र जमा करने की व्यवस्था में जुटे रहते हैं।

निष्पक्ष व भयमुक्त चुनाव कराने के लिए यह जरूरी है कि शस्त्र लाईसेंस जमा कराए जाएं, लेकिन यह किस कानून में है कि चुनाव अटेर में हो रहा है और अटेर से 120 किमी की दूरी पर रह रहे व्यक्ति को शस्त्र जमा कराना पड़ रहा है। वहीं अटेर से महज पांच-दस किमी की दूरी पर पोरसा का व्यक्ति शस्त्र रखने के लिए पात्र है। निश्चित रूप से शस्त्र जमा करने का शस्त्र अधिनियम में क्या नियम है यह तो विधि विशेषज्ञ व जिला प्रशासन के आला अधिकारी जानते होंगे कि आत्म रक्षा के लिए बनाया गया हथियार किन परिस्थितियों में जमा किया जा सकता है। लेकिन इसमें जो विसंगतियां हंै, उस पर विचार की जरूरत है। क्या एक विधानसभा क्षेत्र के चुनाव के लिए समूचे जिले के शस्त्र धारकों के शस्त्र जमा कराया जाना उचित है।

उल्लेखनीय है कि शस्त्र जमा होने के बाद व्यक्ति स्वतंत्र हो जाता है। अभी तक के चुनाव के रिकार्ड को देखें तो चुनावी हिंसा में कभी लाईसेंसी हथियार का प्रयोग नहीं हुआ। अक्सर अवैध शस्त्र व कट्टों का चुनावी हिंसा में प्रयोग होता है। पुलिस प्रशासन को चाहिए कि अवैध हथियारों पर रोक लगाए, यदि शस्त्र लाइसेंसधारियों पर लगाम कसनी है तो उनके चुनाव अवधि में शस्त्र धारण पर रोक लगानी चाहिए। निश्चित रूप से जिस व्यक्ति के पास लाईसेंसी शस्त्र है वह सबसे कमजोर होता है। वह लड़ाई-झगड़ों से काफी दूर रहता है। क्योंकि यहां ऐसी परंपरा है कि शस्त्रधारी को पहले लपेटा जाता है। ताकि उसके शस्त्र लाईसेंस को निरस्त कराया जा सके। इस डर से शस्त्र लाईसेंसधारी व्यक्ति काफी दूरी बनाकर रखता है।

थाने में होती है हथियारों की दुर्दशा
लाइसेंसी शस्त्रों को थाने में जमा कराया जाता है, भारी संख्या में हथियार होने की वजह से हथियारों को कबाड़े की तरह फैंका जाता है। कई बार लोगों के हथियारों की बट टूट जाता है तो कई के हथियारों में खराबी आ जाती है, भिण्ड जिले में कई ऐसे थाने हैं जहां सुरक्षित माल गोदाम नहीं है। इस कारण काफी संख्या में जमा होने वाली बंदूकों को एक कमरे में कबाड़े की तरह फैंका जाता है। जो लोग सक्षम हैं और अपने हथियारों को सुरक्षित दुकान पर रखने की क्षमता रखते हैं उन्हें आर्म्स की दुकानों पर हथियार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपने हथियार को थाने में जमा कर रहा है तो कोई बात नहीं।

Updated : 16 March 2017 12:00 AM GMT
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