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28 से शुरू होगा नवदुर्गा महोत्सव

28 से शुरू होगा नवदुर्गा महोत्सव
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सकारात्मक ऊर्जा के लिए दुर्गा की करें नवरात्रों में उपासना

ग्वालियर। इस बार वासन्तीय चैत्र नवरात्र महोत्सव 28 मार्च मंगलवार से प्रारंभ होकर पांच अप्रैल तक रहेगा। नवरात्रों में मां दुर्गा के विभिन्न रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिरात्रि की पूजा की जाएगी। नवरात्रों में माता की होने वाली पूजा में कलश स्थापना, ज्वारों को बोना एवं माता को भोग लगाना जैसी क्रियाएं भक्तों के द्वारा की जाएंगी, लेकिन यह सभी क्रियाएं विधि विधान के साथ हों तो मां की भक्ति का विशेष ही प्रसाद मिलता है। सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने के लिए नवरात्रों में आदि शक्ति दुर्गा की उपासना करना सबसे बेहतर समय है। इस दौरान मां दुर्गा प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर विशेष कृपा करती हैं।

ऐसे करें कलश स्थापना:- ज्योतिषाचार्य पं. सतीश सोनी के अनुसार नवदुर्गों की शुरूआत मां की आराधना और कलश स्थापना से होती है। इन नवदुर्गों में कलश स्थापना का अपना विशेष महत्व होता है। इस वर्ष की नवदुर्गों में यह कलश स्थापना मंगलवार को होनी है। शास्त्रों के अनुसार कलश स्थापना के बाद किसी भी शुभ काम में सफलता की संभावना बढ़ जाती है। इसका मुख्य कारण यह होता है कि कलश स्थापना विशेष मंत्रों एवं विधियों से की जाती है। कलश में सभी ग्रह, नक्षत्रों एवं तीर्थों का वास हो जाता है। देवताओं एवं ग्रह नक्षत्रों के शुभ प्रभाव से अनुष्ठान संपन्न होता है।

घट स्थापना होगी अभिजीत मुहूर्त में:-
इस वर्ष अमावस्या युक्त प्रतिपदा 28 मार्च मंगलवार को सुबह 08.27 बजे तक है। तदुपरांत चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा है। शास्त्रों में सूर्योदय से दस घटी तक मध्यांह में अभिजीत मुहूर्त में घटस्थापना श्रेष्ठ रहेगा। इसी क्रम में दोपहर 12 बजकर एक मिनट से 12.49 मिनट तक भी उपयुक्त समय है। वहीं चौघड़िया मुहूर्र्त में भी घट की स्थापना की जा सकती है।

इस प्रकार हैं चौघड़िया मुहूर्
सुबह 09.30 से 10.30 चर का चोघड़िया फिर 10.30 से 12 बजे तक लाभ का चौघड़िया, 12 से 1.30 बजे तक अमृत का चौघड़िया, शाम 7.30 से 09 बजे तक रात्रि तक लाभ का चौघड़िया एवं रात्रि 10.30 से रात 12 बजे तक शुभ का चौघड़िया रहेगा।

ज्वारे से जानिए कैसा रहेगा आने वाला वर्ष
ज्योतिषाचार्य पं. सतीश सोनी के अनुसार नवरात्र में कलश की स्थापना और जौ बोने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों में भी इसका वर्णन मिलता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि नवरात्र के दौरान किसी प्रकार की विध्न बाधा नहीं आए। कलश स्थापना में बोई हुई जौ से अंकुरित होकर जयन्ती निकल आती है। जयन्ती देर से निकलने पर माना जाता है कि आने वाले वर्ष में काफी परिश्रम करना होगा। जयंती का रंग लाल होने पर माना जाता है कि रोग एवं शत्रुओं के कारण कष्ट हो सकता है। जयंती का रंग अगर नीचे पीला और ऊपर हरा हो तो वर्ष की श्ुारूआत अच्छी नहीं होगी। इसके विपरीत जयन्ती के नीचे हरा और ऊपर पीला रंग हो तो वर्ष की शुरूआत अच्छी होगी, लेकिन बाद में तकलीफ हो सकती है। जयन्ती पुष्ट, हरा या श्वेत रंग का होने पर वर्ष उत्तम होगा ऐसा माना जाता है।

गृहस्थ लोग ऐसे करें नवरात्र की पूजा
एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। दो मुख्य और दो गुप्त होते हैं। जिन लोगों को शक्ति की उपासना करनी हो तो उन्हें चैत्र व शारदीय नवरात्र में मां की पूजा अर्चना करनी चाहिए। नवरात्र में शक्ति संपन्न देवता जैसे हनुमान जी और भैरव जी की पूजा फलदायी होती है, क्योंकि ये देवता भी देवी के साथ-साथ शक्तिशाली माने गए हैं जो पूजा से जल्दी ही प्रसन्न होते हैं।

क्या होता है नव का अर्थ
नवरात्र में नव का अर्थ केवल नौ ही नहीं, वरन नवीन का भी हमें बोध कराता है। यह नव शब्द परिवर्तन का द्योतक है। इसके अनुसार हमें बाह्य परिवर्तन के साथ आंतरिक परिवर्तन को भी स्वीकार करना होगा। शरीर की नकारात्मक ऊर्जा के स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ही हम देवी की आराधना करते हैं एवं व्रत का अनुष्ठान करते हैं। यह भी सत्य है कि नवरात्र में सभी प्रकार के अनुष्ठान शरीर एवं मन की शुद्धि में सहायक होते हैं। शरीर में भौतिक ऊर्जा के साथ आध्यात्मिक ऊर्जा का भी विकास होता है।

ज्योतिष पक्ष
ज्योतिष की दृष्टि से नवरात्र का विशेष महत्व होता है क्योकि इस दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नितत्व वाले हैं, इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरूआत होती है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का एक कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में सदा खुशहाली रही।

Updated : 27 March 2017 12:00 AM GMT
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