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कसाई बाजार बनते किसान बाजार

कसाई बाजार बनते किसान बाजार
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मई को भारत सरकार ने मवेशी बाजार को नियंत्रित करने के संबंध में नियम जारी किए। केरल के लोग उग्र हो गए और किसी ने नियमों को पढ़े या समझे बिना भारत सरकार के खिलाफ चेतावनियां जारी करना शुरू कर दिया। कांग्रेस पार्टी के सदस्य तो इस हद तक चले गए कि उन्होंने गाय के बच्चे को खुले आम मारा और उसके मांस को इस घृणित क्रूरता के उतने ही दुष्ट दर्शकों के बीच बांटा। केरल में कोई मवेशी बाजार नहीं है इसलिए भगवान ही जानता है कि वे क्यों दुखी हो रहे हंै - सिवाय इसके कि केरल को किसी की हत्या करने के लिए कोई कारण नहीं चाहिए होता है - कुत्ते, गाय, महिला, बच्चे, तथा दूसरी पार्टी के सदस्य कोई भी हो।

पश्चिम बंगाल ने कम शोर मचाया और तमिलनाडु में भी थोड़ा-बहुत विरोध हुआ - क्योंकि उनके यहां भारत के सबसे ज्यादा अवैध मवेशी बाजार चलते हैं तथा वे केरल को गर्भवती, बीमार, रोगयुक्त तथा छोटे पशु भेजते हैं।
परंतु शेष भारत ने चैन की सांस ली। मैं आपको बताती हूं कि क्यों ये नियम काफी समय पहले बनाए जाने चाहिए थे। यदि पर्यावरण मंत्री दवे ने कोई विरासत छोड़ी है तो वह ये नियम हैं।

विभाजन के पश्चात, सरकार ने कई तरीकों से किसानों की सहायता करने का प्रयास किया। उनमें से एक सरकारी भूमि पर छोटे गांव बाजारों को स्थापित करना था ताकि किसान एक-दूसरे को मवेशी बेच या खरीद सकें। ये छोटे-छोटे बाजार चलने के लिए घरों पर निर्भर करते थे। कोई ग्रामवासी एक या दो पशु लेकर आता और अगले गांव का कोई किसान उसे खरीद लेता। पशु की कीमत कम थी और मोल-भाव में थोड़ा समय लगता था परंतु हर कोई खुशी-खुशी लौटता था। वहां पर पशुओं के लिए पानी की नांद तथा छाया के लिए वृक्षों की व्यवस्था थी। सप्ताह के बाकी दिन उसी स्थान पर अन्य बाजार लगते थे जहां गांववासी एक-दूसरे से सब्जियों, बर्तन तथा कपड़ों की बिक्री या खरीद करते थे। यह एक सुखद स्थान हुआ करता था।

पिछले कई वर्षों में यह एक खतरनाक हिंसक क्षेत्र बन गया है। यह अब सरकारी भूमि पर नहीं, बल्कि निजी लोगों द्वारा किराए पर दी गई जमीन पर होते हैं। यह अब किसानों के लिए नहीं है। अब वृक्ष, पानी की नांद नहीं है। पशुओं को वहां अक्सर घसीटा तथा घंटों धूप में बांध कर रखा जाता है। इसे खरीदने तथा बेचने वालों के माफिया द्वारा नियंत्रित किया जाता है तथा पुलिस के लोग अनौपचारिक रूप से गश्त लगाते हैं जिसे इस व्यापार में हफ्ता मिलता है। हर किसी के पास चाकू तथा बंदूक होती है। यहां लाई गई गाय तथा भैंस को कानूनन वध हेतु बेचने की अनुमति नहीं होती - वे या तो बच्चे होते हैं अथवा अपने जीवन के यौवनकाल में होते है। कई गर्भवती होती है। कुछ में कई प्रकार के रोग होते हैं जो फुट एण्ड माउथ डीसीस से लेकर ल्यूकेमिया तक हो सकता है। उनमें से कोई भी 16 वर्ष से अधिक उम्र का नहीं होता (भारत में इससे अधिक उम्र का कोई पशु बचा भी नहीं है) जोकि वध हेतु उनकी बिक्री के लिए कानूनी उम्र है।

पर मैं बार-बार वध ही क्यों कह रही हूं? क्योंकि ये किसान बाजार अब कसाई बाजार बन गए हैं। कानून कहता है कि केवल किसान ही खरीद या बिक्री कर सकते हैं। इन नरक जैसी जगहों के आस-पास कोई भी किसान नहीं पाया जाता। छोटे पशु व्यापारी कसाइयों को बेचते हैं। कानूनन किसी एक व्यक्ति को 2 से अधिक पशु नहीं बेचे जा सकते। विक्रेता एक ही खरीददार को 100 पशु तक बेच देता है जो किसान होने का दावा करता है और इसे सिद्ध करने के लिए नकली कागजात दिखाता है - भले ही उसके पास एक एकड़ भूमि भी न हो। वह 100 पशुओं के साथ क्या करेगा यह किसी को भी नहीं पता। विद्यमान कानून कहता है कि कोई भी ट्रक इन गांव के बाजारों के निकट नहीं आना चाहिए - इसके पीछे विचार यह था कि ये बाजार केवल स्थानीय व्यापार हेतु ही थे। पर अब इनमें से प्रत्येक पशु बाजार ट्रकों से घिरे हुए हैं और 30-60 मवेशियों को ट्रक में क्रूरतापूर्वक ठूस कर वध के लिए ले जाया जाता है - जबकि कानून में यह स्पष्ट है कि एक ट्रक में 6 से अधिक मवेशी नहीं हो सकते। जहां स्थानीय प्रशासन कड़ा होने का दावा करता है, वहां पर ट्रकों को लगभग 500 गज दूर खड़ा किया जाता है, इसलिए मवेशियों को ऐसे किसान द्वारा पैदल चला कर लाया और फिर ट्रकों में लोड किया जाता है। ये वधगृह स्थानीय नहीं हंै। कुछ तो कई जिले दूर होते है, कभी-कभी दूसरे राज्य में भी। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के कसाई राजस्थान आते हंै, बिहार के कसाई हरियाणा आते हैं। यह माफिया के कब्जे वाला एक स्थान बन गया है और जिला प्रशासन या तो अनदेखी करता है, अथवा फतेहाबाद हरियाणा के समान इस अवैध क्रूरता का हिस्सा बन जाता है। ये साप्ताहिक मामला नहीं है - इनमें से कई तो स्थायी बाजार बन गए है जैसे कि बरेली के नवाबगंज में - आपको अत्यधिक फैली हुई हिंसा से अपनी नजरें बचानी होती हैं तथा रक्त की दुर्गंध से बचने के लिए अपनी नाक को बंद करना पड़ता है।

इन बाजारों के खराब होने का परिणाम यह रहा है कि किसानों द्वारा खरीदने के लिए कोई पशु नहीं बचे हैं। कसाइयों द्वारा मूल्यों को अत्यधिक बढ़ा दिया गया है तथा जुताई के लिए आवश्यकता पड़ने वाला कोई भी वास्तविक किसान अब इसे खरीद नहीं सकता। अत: अधिकाधिक रूप से छोटे किसान दिवालियापन की ओर बढ़ रहे हंै क्योंकि वे अपनी छोटी जोतों पर मशीनीकृत वाहनों का खर्च वहन नहीं कर सकते।

बीमार, रोगी या चोटिल होने वाले किसी भी पशु का व्यापार नहीं किया जाएगा और प्रत्येक निरीक्षित पशुओं का रिकार्ड रखा जाएगा। यात्रा हेतु फिट न होने वाले सभी पशुओं के परिवहन की अनुमति नहीं दी जाएगी। प्रत्येक वाहन में कानून द्वारा अनुमेय पशुओं की संख्या ही रखी जाएगी।
तो इस नियम में क्या आपत्तिजनक है? कसाई अभी भी मारने के लिए पशुओं को खरीद सकते हंै - वे केवल ऐसा करने के लिए किसान के बाजार का उपयोग नहीं कर सकते। पशुओं के मूल्य में कमी आएगी और छोटे किसान उन्हें खरीदने में समर्थ होंगे तथा किसानों को फिर से कुछ संपत्ति मिल सकेगी। यह एक अच्छा नियम है और मैं इसे लाने के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को बधाई देती हूं। किसान पिछले 20 वर्षों से ऐसे किसी कानून की मांग कर रहे थे परंतु कांग्रेस पार्टी की इसमें कोई रूचि नहीं थी। आखिरकार उनके अपने मंत्रियों के खुद के मवेशी वधगृह है तथा यदि इसके विरोध में कोई अदालत जाएगा तो वह कोई कांग्रेसी वकील ही होगा।

Updated : 8 Jun 2017 12:00 AM GMT
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