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ट्रिपल तलाक - सुप्रीम कोर्ट - शाहबानो प्रकरण : 1986 में जब राजीव गांधी सरकार ने फैसले को पलट दिया ...

ट्रिपल तलाक - सुप्रीम कोर्ट - शाहबानो प्रकरण : 1986 में जब राजीव गांधी सरकार ने फैसले को पलट दिया ...
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ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शाहबानो प्रकरण की याद ताजा कर दी है। आइए एक नजर डालते हैं शाहबानो प्रकरण पर जिसने देश की राजनीति को बदलकर रख दिया था। मामला 1978 का है जब 62 वर्षीया इंदौर निवासी शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने तलाक दे दिया। पांच बच्चों की मां शाहबानो ने गुजारा भत्ता के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। निचली कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला दिया लेकिन उसके पति अहमद खान की अपील की वजह से ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल 1985 को शाहबानो के हक में फैसला सुनाया और मोहम्मद खान को अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पांच सौ रुपए हर महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

तत्कालीन चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि यह कानून का नैतिक आशय है और नैतिकता को धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। शाह बानो केस का फैसला करते समय सुप्रीम कोर्ट ने किसी पर्सनल लॉ का उपयोग न करते हुए अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 के तहत फैसला दिया था। अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 25 के मुताबिक पत्नी, बच्चे, माता या पिता अगर अपना गुजारा करने की स्थिति में नहीं हैं तो वे गुजारा भत्ता के हकदार हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का जबरदस्त विरोध किया ।

तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। इस कानून के मुताबिक कोई मुस्लिम महिला अपने पति से सिर्फ 90 दिनों तक ही गुजारा भत्ता पाने की हकदार है।

इस फैसले से राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान काफी नाराज थे और उन्होंने अपना मंत्री पद त्याग दिया। जब 1986 के कानून पर संसद में बहस चल रही थी तब आरिफ मोहम्मद खान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बचाव किया था। आपको बता दें कि ट्रिपल तलाक पर हो रही सुनवाई के दौरान आरिफ मोहम्मद खान ने भी सुप्रीम कोर्ट में जमकर विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के 16 साल बाद फिर सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2001 में डेनियल लतीफी का एक मामला आया। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में भी शाह बानो के केस को ही आधार मानते हुए मुस्लिम महिलाओं के लिए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। फैसला सुनने के लिए याचिकाकर्ता शायरा बानो भी मौजूद थीं। फैसला सुनाते समय चीफ जस्टिस का कोर्ट नंबर एक खचाखच भरा हुआ था।

Updated : 22 Aug 2017 12:00 AM GMT
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