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दहेज प्रथा को समाज से दूर करने के लिए स्वयं आगे आएं: अर्चना

दहेज प्रथा को समाज से दूर करने के लिए स्वयं आगे आएं: अर्चना
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-अरुण शर्मा/रुकमणि पाल

आज समाज के निर्माण में कई महिलाएं बड़ी भूमिका निभा रही हैं। चाहे बात घर परिवार की जिम्मेदारियों की हो या समाज के प्रति सेवा भाव की। ये वे महिलाएं हैं जो स्वयं जागरूक होकर समाज की दूसरी महिलाओं को भी समाज के प्रति जागरूक होने का संदेश दे रही हैं। आज हम आपको ऐसी ही महिला से परिचित करा रहे हैं जो कोई खास व्यक्तित्व तो नहीं रखती, लेकिन समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रयासरत हैं। ऐसी ही एक महिला हैं अर्चना शर्मा, जो समाज में महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। बचपन से ही अपने मन में समाज सेवा का भाव रखने वाली अर्चना शर्मा ने अपने जीवन के बीस साल अपने घर परिवार के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित किए, लेकिन जैसे ही उन्हें अपने मित्रों के सहयोग से समाज से पुन: जुड़ने का मौका मिला वह बिना क्षण गवाएं समाज से जुड़ गई। अर्चना शर्मा का कहना है कि आज दहेज प्रथा समाज के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं, यदि हम इस प्रथा को अपने समाज से दूर करना चाहते हैं तो हमें दूसरों से पहले स्वयं को आगे आना होगा, साथ ही लोगों कोे भी इसके प्रति जागरूक करना होगा ताकि यह प्रथा हमारे समाज से पूर्णरूप से समाप्त हो सके। वर्तमान में श्रीमती अर्चना शर्मा जेसीआई मेट्रो की सदस्य एवं ग्लोबल जैन एण्ड वैश्य आॅर्गनाईजेशन की कोषाध्यक्ष हैं। इनके पति का नाम अजय शर्मा हैं जो सरकारी विभाग में कार्यरत हैं। आपका बेटा शरद और बेटी आशी है। अर्चना की एक खास बात है जो उन्हें दूसरों से अलग करती हैं वह हमेशा सभी की सहायता के लिए तत्पर रहती हैं व किसी भी बात का बुरा नहीं मानती हैं। अर्चना सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अपनी भूमिका को समय-समय पर बखूबी निभाती रहती हैं। एम. ए. तक पढ़ाई करने वाली अर्चना को बहुत ही कम समय में किए गए अच्छे कार्यों के लिए जेसीआई मेट्रो से राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। वहीं अर्चना के कार्यों से उनके बच्चे भी बहुत प्रभावित हैं उनकी बेटी और बेटा आगे जाकर अपनी मां की तरह समाज की सेवा करना चाहते हैं।

मेरा सिद्धांत सभी की मदद करना है

मेरा सिद्धांत जरा हटकर है। मैं नहीं चाहती कि मेरे किसी भी काम से कोई दुखी हो। मुझसे जहां तक हो सकता है दूसरो की मदद ही करती हूँ। जब हम दूसरों को खुशियां देंगे तभी हमें खुशी मिलेंगी। देखने में आ रहा है कि इस भागदौड़ की दुनियां में हर कोई दुखी और परेशान है। ऐसे में हम किसी के दुख को बांट सकें और उसको खुशियां दे सकें तो इससे दूसरा पुनीत कार्य कोई और दूसरा नहीं होगा। आपने एक वाक्या सुनाते हुए बताया कि कुछ समय पहले की बात है कि हम ट्रेन में बडौदा से ग्वालियर के लिए बैठे। रास्ते में हमारी मुलाकात एक महिला से हुई जिसकी एक छोटी सी गोद की बेटी भी थी। अचानक उस अकेली महिला की तबीयत ज्यादा खराब हो गई। उसकी छोटी से बच्ची को लगातार मैंने पांच घण्टे तक संभाला और उस महिला की मदद भी की। यह मेरे जीवन का अद्भुत पल था। यह कार्य करने से मेरे मन को खुशी का अहसास हुआ। आज भी वह महिला मुझे फोन करती है और बातचीत करती है। वह मेरी एक अच्छी दोस्त भी बन गई है।

समाज सेवा करना मेरा सपना है

समाज सेवा करना मेरा पुराना सपना है जो शादी के 20 वर्ष बाद अब पुन: सफल होता हुआ दिखाई दे रहा है। इस सपने को मैं बचपन से बुनती चली आ रही हूँ और विवाह के पहले इस सपने को निर्धन और असहाय बच्चों को पढ़ाकर और उनकी जरूरतों को पूरा कर के साकार भी कर चुकी हूँ लेकिन जल्दी विवाह होने के कारण इस सपने को बीच में ही रोकना पड़ा। स्थितियां और परिस्थितियां फिर बदलीं, मेरी पती अजय शर्मा और ससुर पूर्णानंद शर्मा के भरपूर सहयोग से आज मुझे अपना सपना एक बार फिर साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है। आज मैं जिस मुकाम पर खड़ी हूँ उसके पीछे मेरे पति का योगदान है। आज में जेसीआई मेट्रो और ग्लोबल जैन एण्ड वैश्य आॅर्गनाईजेशन के प्लेटफार्म से इस सपने को साकार कर रही हूँ। मेरा यह सपना मेरी जिंदगी का अहम पहलू भी है।

मुझे राजनीति कम पसंद है

राजनीति में आना और राजनीति करना मुझे पसंद नहीं है। लोगों को चाहिए कि राजनीति एक दायरे में करें। राजनीति देश और समाज के विकास में होनी चाहिए न कि अपने और परिवार के विकास में या दूसरे को नीचा दिखाने के मामले में। रही बात राजनीति में आने की तो इसके बारे में मैंने अभी सोचा नहीं है। फिलहाल तो मैं समाजसेवा करके ही खुश हूँ। भविष्य में अगर मैं राजनीति में आई भी तो उन कामों को प्राथमिकता दूंगी जो लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर सके। लोगों के विकास से समाज और देश का विकास होता है।

महिलाआें के लिए काम करना चाहती है अर्चना

अर्चना ने समाज के लिए अपनी इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि वह समाज में महिलाओं के लिए काम करना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि एक ऐसा मंच तैयार किया जाए जहां सिर्फ उन महिलाओं के लिए काम किया जाए जो किसी न किसी रूप से परेशान हैं। उन्हें उनकी समस्या का समाधान मिल सके। अर्चना का कहना हैं कि समाज में ऐसी बहुत सी महिलाएं हैं जो उन पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती हैं और यदि ऐसे में उन्हें हम एक ऐसा मंच दें, जहां उनकी समस्याओं का समाधान किया जा सके तो हम कुछ हद हम तक उनकी समस्या का निर्वारण कर सकते हैं। मैं इसके लिए प्रयासरत हूं। उदाहरण के लिए आप मान लीजिए कि किसी महिला का पति शराब का सेवन करता है ऐसे में उसे बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ऐसे में यदि उसे एक ऐसा मंच मिल जाएं यहां उसकी इस समास्या का सामाधान उसे मिल सके तो यह कदम उस महिला के लिए और हमारे समाज के लिए एक हितकारी सिद्ध हो सकता है।

ना दहेज देंगे और न ही दहेज लेंगे

मैं इस प्रथा के बिलकुल खिलाफ हूँ। मेरे दो बच्चे शरद और आशी हंै। मैं जब भी इनका विवाह करूंगी तो न तो दहेज लूंगी और न ही दहेज दूंगी। दहेज लेना और देना समाज के लिए किसी कलंक से कम नहीं है। बच्चों को शिक्षा का इतना दान दो कि लोग उन्हें आपसे मांगकर ले जाएं। आप सोचो कि एक मध्यम परिवार अपने कलेजे के टुकड़े अपनी बेटी को आपको किस प्रकार से दे रहा है। पैसा आज नहीं कल खत्म हो जाएगा, लेकिन स्त्री धन सदा ही आपके पास बना रहेगा। जो लोग समाज में दहेज के लिए बहू बेटियों को मार रहे हैं उन्हें अपनी सोच को बदलना चाहिए। मेरे हिसाब दहेज प्रथा पूर्ण रूप से समाप्त होनी चाहिए। दहेज प्रथा समाप्त करने में समाज की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

घर बैठकर भी समाज सेवा कर सकते हैं

समाज सेवा के लिए जरूरी नहीं है कि आपको अपना घर द्वार ही छोड़ना पड़े। समाजसेवा आप अपने घर बैठकर ही कर सकते हैं। समाजसेवा के लिए आपको अवसर पहचानने की आवश्यकता है। हम घर पर बैठकर ही गरीब बच्चों को पढ़ाकर और जरूरतमंद को छोटा रोजगार देकर समाज सेवा में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।

शिक्षा से मेरा लगाव है

शिक्षा का दान एक महादान है। यह वह धन है जो बांटने से बढ़ता है। मेरा प्रयास यह है कि इस धन को जितना हो उतना बांटा जाए। मेरा मानना है कि समाज सेवा की प्रथम नींव शिक्षा ही है। हम इस शिक्षा के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को उसके पैरों पर खड़ा कर सकते हैं। शिक्षा से मेरा बेहद लगाव है। अगर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो मैं बच्चों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में एक छोटा सा स्कूल खोलने का भी प्रयास करूंगी।

बुजुर्ग ही हमारे घर की नींव हैं

हमारे बुजुर्ग ही हमारे घर की नींव हैं। हमें अपने बुजुर्गों से ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए कि उनको सड़क पर भीख मांगकर भोजन खाना पड़े। अगर भगवान ने मौका दिया और सभी का सहयोग रहा तो मैं बुजुर्गों के लिए कुछ ऐसी व्यवस्था जरूर करूंगी जहां उन्हे पेट भरने के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़े।

Updated : 29 Aug 2017 12:00 AM GMT
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