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स्टार्ट अप और जिम्मेदारी से ही मिटेगी बेरोजगारी

स्टार्ट अप और जिम्मेदारी से ही मिटेगी बेरोजगारी
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-सियाराम पांडेय

pic credit -iamwire

आचार्य बिनोवा भावे ने कहा था कि राष्ट्रीय योजना आरंभ करने की पहली शर्त यही है कि इससे देश के हर युवा को रोजगार मिले और अगर ऐसा नहीं हो पाता तो योजना की सफलता में संदेह है। देश में हर हाथ को काम देने के लिहाज से वर्ष 1951-52 में पंचवर्षीय योजना शुरू की गई थीं लेकिन आज तक न तो देश के हर युवा के हाथ में रोजगार आया और न ही गरीबी मिटी। यह अलग बात है कि पंचवर्षीय योजनाओं पर पानी की तरह पैसे खर्च किए गए गए। हर चुनाव में सत्तारूढ़ दल और विपक्ष हर हाथ को काम देने की बात करते हैं, गरीबी मिटाने की बात करते हैं लेकिन कभी भी इस दिशा में वैज्ञानिक और सुसंगठित तरीके से काम नहीं किया गया। सन् 2014 में केंद्र में सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लघु एवं कुटीर उद्योगों की हालत सुधारने की बात की और इस बात पर मंथन किया कि हर हाथ को काम देने के लिए जरूरी है कि जो जहां रह रहा है, उसे वहीं आजीविका के साधन मिलें। खेती-किसानी इस देश के बड़े भूभाग को रोजगार देती रही है। छोटे-छोटे कुटीर उद्योग इस देश को सोने की चिड़िया बनाए हुए थे।

महाकवि घाघ ने तो यहां तक लिख दिया था कि ‘उत्तम खेती मध्यम बान। निषिध चाकरी भीख निदान।’ आज चाकरी उत्तम हो गई है और खेती निषिद्ध। इस बदलाव के लिए देश की सामाजिक और राजनीतिक सोच ही बहुत हद तक उत्तरदायी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लग रहा है कि अगर आज समाज में अपने पेशे के लिए सम्मान होता तो देश के युवाओं को रोजगार के लिए इधर-उधर धक्के न खाने पड़ते। उन्होंने सबसे बड़ा मोची बाटा और सबसे बड़ा लुहार टाटा को बताकर कुटीर उद्योग और जन सामान्य के पेशे को ही अहमियत दी है। संभव है, उनकी यह टिप्पणी टाटा और बाटा को नागवार गुजरे लेकिन सच को नकारा तो नहीं जा सकता। योगी आदित्यनाथ ने यह बात उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में यूपी स्टार्ट-अप बस यात्रा को हरी झंडी दिखाते हुए कही है। यह यात्रा दस अक्टूबर तक चलेगी। इस दौरान स्टार्ट-अप बस प्रदेश भर के 350 महाविद्यालयों में जाएगी और लगभग 40 हजार युवाओं को स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित करेगी। उत्तर प्रदेश में यह यात्रा केंद्र सरकार की स्टार्ट अप योजना के तहत आरंभ की गई है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ के साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि देश तभी आगे बढ़ेगा जब उत्तर प्रदेश आगे बढ़ेगा। अगर टीम भावना से काम किया जाए तो उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। युवाओं को टीम भावना के साथ प्रदेश को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए। उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी का दंश झेल रहे युवा उम्मीदों से भरे हैं। उन्हें लग रहा है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार उन्हें बेरोजगार नहीं रहने देगी। इस सरकार ने जगह-जगह कौशल विकास केंद्र खोल रखे हैं। युवाओं को कुशल बनाने के सतत प्रयास हो रहे हैं। सरकार का मानना है कि ‘गुण के ग्राहक सकल नर बिन गुन लहै न कोय।’ प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से दो साल पहले ही यह बात कह दी थी कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। हम अपने युवाओं को तकनीकी क्षमता और अनुभवों से लैस करेंगे जिससे वे जिस मोर्चे पर भी लगें, सफलता उनके कदम चूमे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेशवासियों को कुछ नसीहतें भी दी हैं। लोगों को अपनी जिम्मेदारी के प्रति सचेत भी किया है लेकिन उन्हें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राजतंत्र में राजा का एक नाम भूपाल भी होता था। भूपाल अर्थात धरती को पालने वाला। लोकतंत्र में मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को इस तरह के संबोधन से आज तक अभिहित नहीं किया गया लेकिन इससे उनकी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती। योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि लोग जिस तरह अपनी जिम्मेदारी का पालन कर रहे हैं, उससे मुझे तो लगता है कि कहीं ऐसा न हो कि लोग अपने दो-तीन साल के बच्चों को छोड़ दें कि उन्हें सरकार पाले। हालांकि उनकी इस राय की विपक्ष आलोचना भी कर रहा है और इसे गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल काॅलेज में हुई बच्चों की मौत की घटना से जोड़कर देख रहा है। सरकार पर अपनी जिम्मेदारियों से भागने का आरोप लगा रहा है। प्रख्यात राजनीति शास्त्री और दार्शनिक चिंतक प्लेटो ने कभी कहा था कि बच्चे राज्य की संपत्ति होंगे। उनका पालन-पोषण राज्य की जिम्मेदारी होगी। चीन दुनिया का पहला देश था जिसने प्लेटो के इस सिद्धांत पर काम भी किया। यह अलग बात है कि वह व्यवहार में उतना सफल नहीं हो सका जितना कि प्लेटो चाहते थे। मेरा ख्याल है कि इस तरह के सामाजिक विषयों पर बयान देने और कटु सत्य संभाषण करने से सरकार को बचना चाहिए।

वैसे मुख्यमंत्री ने कूड़े की बावत गलत तो कुछ भी नहीं कहा है कि गाय-भैंस का दूध कुछ लोग पीएं और गोबर सरकार उठाए, यह तो उचित नहीं है। यह सच है कि सड़कों पर गंदगी न हो, यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन जनता की भी तो कुछ जिम्मेदारी है। जनता का काम क्या अपने घर का कूड़ा सड़कों पर डाल देने का है। यह बेहद गंभीर सवाल है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि जब हम अपने पालित श्वान को सड़क पर टहलाने ले जाते हैं और वह सड़क पर गंदगी करता है तो हम किस मुंह से गंदगी के खिलापफ आवाज उठा सकते हैं। गंदगी दरअसल सामाजिक समस्या है। सामुदायिक समस्या है लेकिन दुर्भाग्य यह है कि लोग दूसरों के दोष तो खूब गिनाते हैं लेकिन अपने दोषों और कमियों पर ध्यान भी नहीं देते। योगी आदित्यनाथ गलत क्या कह रहे हैं? हरेक व्यक्ति के अंदर अलग-अलग गुण होते हैं। क्रिकेट के खेल में अगर सभी बल्लेबाजी करने लगेंगे तो फिर टीम कैसे जीत पाएगी? टीम को जीत दिलाने के लिए गेंदबाज भी जरूरी होता है। हमारे अंदर टीम भावना हो तभी तो हम आगे बढ़ेंगे। रहीम ने लिखा है कि ‘रहिमन देख बड़ेन को लघु न दीजिए डार। जहां काम अवै सुई कहा करै तलवार।’ स्टार्टअप में भी हमेशा ही इसी भावभूमि को जिंदा रखने की जरूरत रही है। मुख्यमंत्री हर किसी को स्टार्ट अप से जोड़ने की बात कर रहे हैं। राजनीति का व्यवासीकरण खत्म करने की बात कर रहे हैं। भाजपा की कोशिश सभी को साथ लेकर चलने की है। उत्तर प्रदेश सरकार स्टार्ट अप योजना के लिए एक हजार करोड़ का फंड बना रही है। स्टार्टअप में काम करने वाले युवाओं को इसी 15 सितंबर से 15 हजार रुपये महीने की मदद देने पर विचार कर रही है। योगी सरकार की इस बात में दम है कि हमने किसी धर्म, जाति के लिए काम नहीं किया है। गरीबों, बेरोजगारों, किसानों और महिलाओं के लिए काम किया है। हर व्यक्ति की प्रतिभा को निखारना चाहा है। यह काम बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था लेकिन जब जागे तभी सबेरा। सरकार स्टार्ट अप ऐप भी ला रही है। स्टार्ट अप की समस्याओं के लिए कॉल सेंटर बनाने जा रही है। यह पहला मौका है जब स्टार्ट अप बस पूरे प्रदेश में घूमेगी और युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की प्रेरणा देगी। यह बेहद अच्छी पहल है, इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। कूड़े का प्रबंधन कैसे हो। विचार तो इस पर होना चाहिए। प्रदूषण भी कम हो और उससे ऊर्जा भी बनाई जा सके। मंथन तो इस पर होना चाहिए। इसके लिए तकनीक जरूरी है। लोग आज कूड़े से सड़क बना रहे हैं। अगर प्लास्टिक से बनेगी तो कभी खराब नहीं होगी। हमेशा के लिए गड्ढामुक्त हो जाएगी।

गौरतलब है कि 21 करोड़ से अधिक की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में इस समय पांच करोड़ से अधिक युवा बेरोजगार हैं। इसकी एक वजह कृषि क्षेत्र में घटती जोत और उस पर बढ़ता आबादी का दबाव भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। कृषि क्षेत्र में 2004-05 में 403 लाख कृषि श्रमिक थे जो 2009-10 में 369 लाख हो गई थी। 2011-12 में यह संख्या 354 लाख हो गई थी। साल दर-साल इस तादाद में घटोत्तरी ही हो रही है। उत्तर प्रदेश में मौजूदा दौर में 5 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। यूपी में बेरोजगारी दर प्रति एक हजार पीछे 39 है जबकि देश में यह दर प्रति एक हजार पीछे पचास है। इस समस्या से जूझना तभी मुमकिन है जब या तो बड़े उद्योगों में निवेश हो या फिर लघु एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहन मिले। कुछेक साल पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में चपरासी के महज तीन सौ अड़सठ पदों के लिए तेईस लाख आवेदन प्राप्त हुए। औसतन एक पद के लिए छह हजार अर्जियां! इस सच्चाई को अगर नजरअंदाज किया गया तो अराजकता के हालात बनने में देर नहीं लगेगी। किसी भी विकासशील देश के लिए यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि उसकी युवा पीढ़ी उच्च शिक्षित होने के बावजूद आत्मनिर्भरता के लिए चपरासी जैसी सबसे छोटी नौकरी के लिए लालायित है। इक्कीस करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में चपरासी के लिए जो तेईस लाख अर्जियां आई थीं, उनमें चाही गई न्यूनतम शैक्षिक योग्यता पांचवीं पास तो केवल 53,426 उम्मीदवार थे, लेकिन छठी से बारहवीं पास उम्मीदवारों की संख्या बीस लाख के ऊपर रही। लघु एवं मध्यम उद्योग तभी आगे बढ़ सकते हैं जब सैकड़ों कुटीर उद्योगों के तहत बनने वाले उत्पादों को बनाने से बड़े उद्योगों को रोका जाए। वैसे स्टार्ट अप विकसित करने की पहल अच्छी है। यह सफल हो, इसकी कामना तो की ही जा सकती है।

Updated : 3 Sep 2017 12:00 AM GMT
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