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कश्मीर समस्या और पाकिस्तान

कश्मीर समस्या और पाकिस्तान
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भारत माता के मुकुट कश्मीर में स्थायी रुप से शांति स्थापित करने के लिए भारत की ओर से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान की ओर से हमेशा घुसपैठ की कोशिश से की जाती रही है। अब सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने एक ताजा बयान में कहा है कि इस समस्या के समाधान के लिए सैन्य कार्यवाही के साथ ही राजनीतिक स्तर के प्रयासों को भी बढ़ावा देना चाहिए। यह बात सही है कि केन्द्र में जब से मोदी सरकार आई है, तब से भारत की सेना ने पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब दिया है। इसी कारण देश में आतंकी हमले एक दम रुक गए हैं। इससे यह प्रमाणित हो जाता है कि पहले की सरकारें आतंकवाद के मुद्दे पर केवल दिखाने के लिए ही कठोरता करते थे, वास्तविकता में उन सरकारों की कार्यवाही से आतंकवादियों को मदद ही मिलती थी, नहीं तो देश में विस्फोट कैसे किए जाते। सेना प्रमुख के बयान का एक अर्थ यह भी निकाला जा सकता है कि वह सरकार से कह रहे हैं कि सीमा की सुरक्षा हम कर लेंगे, आप राजनीतिक स्तर के प्रयासों को और गति दीजिए। हालांकि ऐसी मांग पहले भी की जाती रही हैं, लेकिन सेना प्रमुख की ओर से बयान आना काफी मायने रखता है। इसे एक प्रकार से भारत की सफलता भी माना जा रहा है। उनके कहने का आशय यही हो सकता है कि सरकार बातचीत के जरिए पाकिस्तान की सरकार को आतंकवाद फैलाने और घुसपैठ सहित तमाम मसलों पर विचार करे।

हालांकि उन्होंने यह भी साफ शब्दों में कहा कि राजनीतिक प्रयासों के चलते सीमा पर सैनिक कार्यवाही में कोई कमी नहीं आएगी और आतंकवादियों के विरोध में आगे भी सख्त कार्यवाही करेगी। हम जानते हैं कि जनरल श्री रावत आतंकियों व पाक सेना की अनैतिक कार्रवाइयों के खिलाफ कड़े बर्ताव के लिए जाने जाते हैं। अभी हाल ही में सेना दिवस के दिन सोमवार को सीमा पर भारतीय सेना ने पाक सीमा में घुसकर एक मेजर समेत सात पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और घुसपैठ की कोशिश कर रहे छह आतंकियों को भी ढेर करने में कामयाबी हासिल की। नि:संदेह सीमा पर और घाटी में सेना अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रही है, लेकिन शायद उसे अब यह भी लग रहा है कि घाटी में शांति बहाली के लिए राजनीतिक प्रयासों की भी जरूरत है। सेना प्रमुख ही नहीं बल्कि सरकार भी राजनीतिक प्रयासों की अहमियत को अच्छी तरह से जानती है। इसके लिए सरकार की ओर से प्रयास भी हो रहे हैं, मोदी सरकार ने इसकी अहमियत के मद्देनजर ही पिछले साल अक्टूबर में आईबी के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को केन्द्र का विशेष प्रतिनिधि नियुक्त कर उन्हें जम्मू-कश्मीर से संबंध रखने वाले विभिन्न पक्षों या घटकों से बातचीत की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी है। इसके साथ ही सेना ने भी घाटी के लोगों को विश्वास में लेने के प्रयासों की पहल कर रखी है। सेना के प्रयासों का ही परिणाम है कि पिछले दिनों आतंकवादी गुटों के जाल में फंस जाने वाले कई युवक समाज की मुख्य धारा और अपने परिवार में लौट आए हैं।

इस तरह के प्रयास इसी तरफ संकेत करते हैं कि सेना आतंकियों से लोहा लेने के साथ-साथ लोगों का विश्वास जीतने में सफलता प्राप्त कर सकती है तो राजनीतिक प्रयासों से इसमें और तेजी लाई जा सकती है। वास्तव में यह सच है कि पहले देश की सरकारों ने कश्मीर की स्थिति को एक नियति ही मान लिया था, लेकिन कश्मीर की स्थिति को नियति नहीं माना जा सकता है। भारत सरकार की ओर से और कठोर रुख अपनाने की आवश्यकता है। क्योंकि पाकिस्तान एक प्रकार से लातों का ही भूत है, वह बातों से कतई नहीं मानने वाला। हम जानते हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की चेतावनी के बाद पाकिस्तान ने हो सकता है हाफिज सईद और उसके संगठनों के खिलाफ कुछ कदम उठाए हों, लेकिन सीमा पार से घुसपैठ और संघर्ष विराम समझौते के उल्लंघन का सिलसिला बराबर जारी है। भारतीय सेना की कठोर कार्यवाही के चलते अब पाकिस्तान घुसपैठ करने में सफल नहीं हो पा रहा है। जब पाकिस्तान को कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है तब ऐसी कारस्तानियों का कोई औचित्य भी नहीं बनता। पाकिस्तान से यही पूछा जाना चाहिए कि आखिर वह सीमा पर शांति चाहता है अथवा नहीं? यदि चाहता है तो उसे खुद घुसपैठ का सिलसिला बंद करना चाहिए।

Updated : 19 Jan 2018 12:00 AM GMT
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