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राष्ट्रपति के संदेश के 14 सूत्र

राष्ट्रपति के संदेश के 14 सूत्र
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भगवान शिव ने पाणिनी को 14 सूत्र दिए थे। उन्हीं सूत्रों का आधार पर पाणिनी के व्याकरण की रचना हुई। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश को 14 सूत्र दिए हैं। इन 14 संदेशों में परिवर्तन की पुकार समाहित है। लोकतंत्र कैसा हो, राष्ट्र का निर्माण कैसा हो और नया राष्ट्र बनाने में कौन-कौन उपयोगी हो सकता है, कैसे उपयोगी हो सकता है, इस पर रोशनी डालने का काम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने किया है। उनका संबोधन कई मायने में उल्लेखनीय रहा। इससे पता चला कि देश को आगे ले जाने की सरकार की दिशा क्या है? राष्ट्रपति का यह संदेश केवल बधाई संदेश भर नहीं है बल्कि इसमें राष्ट्र के प्रति सम्मान की उद्दाम भावना भी परिलक्षित होती है। सम्प्रभुता के उत्सव पर लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के महान प्रयासों और बलिदान को याद कर, उनके प्रति आभार व्यक्त कर देश के प्रथम नागरिक ने हर आम और खास को लोकतंत्र की अहमियत बताई है। उन्होंने देश के लोकतान्त्रिक मूल्यों को भी नमन किया है। उनके उद्बोधन में नागरिकों को देश से जोड़ने की सीधी कोशिश हुई है।

उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि लोकतंत्र का सीधा संबंध देश की जनता से है। देश के लोग केवल गणतंत्र के निर्माता और संरक्षक ही नहीं हैं, बल्कि वे इसके आधार स्तम्भ भी हैं। लोकतंत्र को ताकत मिलती है देश की जनता से। चाहे सैनिक हो या कि किसान, डाॅक्टर हो या सफाईकर्मी, सभी अपने-अपने स्तर पर देश और समाज की सेवा करते हैं। वैज्ञानिक अगर विज्ञान के क्षेत्र में देश को आगे ले जाते हैं तो प्रकृति का संरक्षण हमारे आदिवासी करते हैं। अपने संबोधन में अगर उन्होंने इंजीनियरों को याद किया तो कामगारों को याद करना भी वे नहीं भूले। उन्होंने युवाओं पर पूरे देश की आशाओं को केंद्रित बताया। उन्होंने बच्चों के स्वरूप में देश को इठलाते हुए देखने का भी यत्न किया। इस क्रम में राष्ट्रपति ने हर देशवासी को तहेदिल से याद किया और उन्हें गणतंत्र दिवस की बधाई दी।

अपने संबोधन में उन्होंने भारत के एक गणतंत्र के रूप में स्थापित होने को आजादी के बाद का दूसरा पड़ाव निरूपित किया। संविधान निर्माण से लेकर उसे क्रियान्वित करने, भारत के गणराज्य की स्थापना करने और सभी नागरिकों के बीच बराबरी का आदर्श स्थापित करने के सफर का भी उन्होंने शिद्दत के साथ जिक्र किया। उनका मानना है कि समता के इस आदर्श की बदौलत ही स्वतंत्रता के लक्ष्य पूरे हो सके। उन्होंने लोकतंत्र के निर्माण के सामूहिक प्रयासों को और सपनों के भारत को सार्थक बनाने वाली भाईचारे की भावना को आजादी का तीसरा आदर्श बताया। उन्होंने मिल-जुलकर रहने और काम करने पर भी जोर दिया। वे यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी हमारे महानायक रुके नहीं, उनके लिए हमारा संविधान एक बुनियादी कानून ही नहीं था, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक दस्तावेज भी था। संविधान निर्माता बहुत दूरदर्शी थे। वे ‘कानून का शासन’ और ‘कानून द्वारा शासन’ के महत्त्व और गरिमा को बखूबी समझते थे। हम सौभाग्यशाली हैं कि उस दौर ने हमें संविधान और गणतंत्र के रूप में अनमोल विरासत दी है।
उन्होंने राष्ट्र निर्माण को एक भव्य और विशाल अभियान करार दिया। नागरिकों के चरित्र का निर्माण करना, परिवारों द्वारा अच्छे संस्कारों की नींव डालना, गली- मुहल्ले - गांव और शहर में भाईचारे का माहौल बनाना, छोटे-बड़े कारोबारों की शुरुआत करना, संस्थाओं को सिद्धांतों और मूल्यों के आधार पर चलाना, और समाज से अंध-विश्वास तथा असमानता को मिटाना, ये सभी राष्ट्र-निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान हैं। उन्होंने कहा कि बेटियों को, बेटों की ही तरह, शिक्षा, स्वास्थ्य और आगे बढ़ने की सुविधाएं देने वाले परिवार और समाज ही एक खुशहाल राष्ट्र का निर्माण करते हैं। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए, सरकार कानून लागू कर सकती है और नीतियां भी बना सकती है लेकिन ये तभी कारगर होंगे जब परिवार और समाज, हमारी बेटियों की आवाज को सुनेंगे। हमें परिवर्तन की इस पुकार को सुनना ही होगा। आत्म-विश्वास से भरे हुए और आगे की सोच रखने वालों को उन्होंने प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण का कारक बताया। उन्होंने शिक्षा और ज्ञान के दायरे को और बढ़ाने, शिक्षा-प्रणाली में सुधार करने, इक्कीसवीं सदी की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जीनोमिक्स, रोबोटिक्स और ऑटोमेशन की चुनौतियों के लिए समर्थ बनने की भी बात कही।

उन्होंने कौशल विकास के जरिए अपने युवाओं को शिक्षा और कौशल प्रदान कर भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिए उपयोगी बनाने पर भी बल दिया। इनोवेटिव बच्चे ही एक इनोवेटिव राष्ट्र का निर्माण करते हैं। राष्ट्रपति रटने की बजाय, अनुभव से सीखने और बच्चों को सोचने तथा तरह-तरह के प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने की पक्षधरता पर जोर देते नजर आए। वे यह कहने से भी नहीं चूके कि हमने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता तो हासिल कर ली, काफी तरक्की भी कर ली लेकिन कुपोषण को दूर करने और प्रत्येक बच्चे की थाली में जरुरी पोषक तत्व उपलब्ध कराने की चुनौती बनी हुई है। यह हमारे बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए तथा हमारे देश के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। उनका मानना है कि मुहल्ले -गांव और शहर के स्तर पर सजग रहने वाले नागरिकों से ही, एक सजग राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने पड़ोसी के निजी मामलों और अधिकारों का सम्मान करते हैं। उन्होंने भाईचारे का मतलब भी बताया। उन्होंने नसीहत दी कि हम अपने ही जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले उन वंचित देशवासियों की ओर देखें, जो आज भी वहीं खड़े हैं, जहां से कभी हम सबने अपनी यात्रा शुरू की थी। हम सभी अपने-अपने मन में झांके, और खुद से यह सवाल करें कि क्या उसकी जरूरत, मेरी जरूरत से ज्यादा बड़ी है? परोपकार करने और दान देने की भावना को और भी मजबूत बनाने पर भी उनका जोर रहा।

उन्होंने यह भी माना कि सांस्कृतिक परंपराओं, कलाओं तथा हस्तशिल्प को संरक्षण और बढ़ावा देने के सामूहिक संकल्प से, एक जीवंत संस्कृति वाले राष्ट्र का निर्माण होता है। चाहे लोक रंगमंच के कलाकार हों, पारंपरिक संगीतकार हों, बुनकर और हथकरघा कारीगर हों या फिर वे परिवार हों जो सदियों से लकड़ी के बेहतरीन खिलौने या रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले बांस के सामान बनाते आ रहे हैं। इन सबके हुनर को जिन्दा रखने के लिए तथा उन्हें और आगे बढाने के लिए प्रभावी प्रयास करने होंगे।

अनुशासित और नैतिकतापूर्ण संस्थाओं से, एक अनुशासित और नैतिक राष्ट्र का निर्माण होता है। ऐसी संस्थाएं अन्य संस्थाओं के साथ अपने भाई-चारे का सम्मान करती हैं। भारत के राष्ट्र निर्माण के अभियान का एक अहम उद्देश्य एक बेहतर विश्व के निर्माण में योगदान देना भी है। ऐसा विश्व जो मेलजोल और आपसी सौहार्द से भरा हो तथा जिसका अपने साथ और प्रकृति के साथ शांतिपूर्ण सम्बन्ध हो। यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सही अर्थ है। उन्होंने कहा कि हमारे लोकतंत्र का निर्माण करने वाली पीढ़ी ने जिस भावना के साथ काम किया था, आज फिर उसी भावना के साथ काम करने की जरुरत है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2020, में हमारे गणतन्त्र को सत्तर वर्ष हो जाएंगे। 2022 में, हम अपनी स्वतंत्रता की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाएंगे। निकट भविष्य में आने वाले ये बहुत ही महत्वपूर्ण अवसर हैं। स्वतंत्रता सेनानियों और संविधान के निर्माताओं द्वारा दिखाए रास्तों पर चलते हुए हमें एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए प्रयास करना है। एक ऐसे भारत के निर्माण के लिए जो अपनी योग्यता के अनुरूप इक्कीसवीं सदी में विकास की नई ऊंचाइयों पर खड़ा होगा और जहां हर-एक नागरिक अपनी क्षमता का भरपूर उपयोग कर सकेगा।
उन्होंने किसानों और नौजवानों की बेहतरी की भी चिंता की, उनके जीवन में उल्लास लाने पर जोर दिया। गरीबी को समाप्त करने सभी के लिए उत्तम शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने और हमारी बेटियों को हर-एक क्षेत्र में समान अवसर दिलाने के लिए वचनबद्धता, स्वच्छ, हरित और सक्षम ऊर्जा कम दरों पर लोगों तक पहुंचाने की बात कही और सभी के लिए आवास के लक्ष्य को करोड़ों परिवारों तक पहुंचाने का अपना और अपनी सरकार का संकल्प दोहराया। उन्होंने एक ऐसे आधुनिक भारत की रचना करने की बात की जो प्रतिभावान लोगों का और उनकी प्रतिभा के उपयोग के लिए असीम अवसरों वाला देश हो। उन्होंने कहा कि आज भी बहुत सारे देशवासी, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। वे गरीबी में किसी तरह अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं। उनके जीवन को खुशहाल बनाना ही हमारे लोकतन्त्र की सफलता की कसौटी है। गरीबी के अभिशाप को कम-से-कम समय में जड़ से मिटा देना हमारा पुनीत कर्तव्य होना चाहिए।

भारत एक विकसित देश बने। उस सपने को पूरा करने के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि युवा अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के बल पर देश को आगे ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि देशवासी अपनी कल्पना, आकांक्षा और आदर्शों के लिए अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और भारत के प्राचीन आदर्शों से हमेशा प्रेरणा लेते रहेंगे। कुल मिलाकर राष्ट्रपति के संबोधन में सबका साथ सबका विकास की भावना तो है ही, देश को आगे ले जाने की भावना के साथ मोदी का वह नीति वाक्य भी है कि 130 करोड़ देशवासी एक साथ चलेंगे तो यह देश 130 करोड़ कदम आगे बढ़ जाएगा। इस संदेश का सारतत्व यही है कि एकजुटता से ही यह देश आगे बढ़ेगा।

Updated : 27 Jan 2018 12:00 AM GMT
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