रामजन्म भूमि और नदवी का फार्मूला
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आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मौलाना सैय्यद सलमान हुसैनी नदवी को संगठन से निकाल दिया है क्योंकि उन्होंने यह सुझाव दिया था कि अयोध्या रामजन्मभूमि विवाद का समाधान अदालत के बाहर आपसी समझौते से कर लिया जाय और मुसलमान विवादित स्थल पर अपना दावा खत्म कर फैजाबाद लखनऊ के बीच कहीं मस्जिद बनाने का उनका सुझाव स्वीकार कर लें। लखनऊ स्थित नदवा इस्लामी अध्ययन का एक बड़ा केंद्र है जिसके प्रमुख को कभी मक्का के इमाम के समान मान्यता मिली थी। स्वतंत्रता आंदोलन में अन्य इस्लामी संगठनों से अलग हटकर नदवा ने कांग्रेस का साथ दिया था और उसके राष्ट्रीय हितों को कभी संदेह की निगाह से नहीं देखा गया। विदेश राज्यमंत्री एम.जे. अकबर ने लोकसभा में लॉ बोर्ड को मुस्लिम समुदाय का प्रवक्ता माने जाने पर सवाल उठाते एक प्रकार से इस गिरोह में शामिल लोगों के प्रतिनिधित्व को चुनौती दी थी अब मौलाना नदवी ने कहा है कि वह ला ॅबोर्ड जो चरमपंथियों के कब्जे में चला गया है, के मुकाबले एक नया संगठन खड़ा करेंगे और तीन महीने में उनके सुझाव के अनुरूप रामजन्म भूमि का समाधान निकल आयेगा। श्री श्री रविशंकर ने अदालत के बाहर आपसी सहमति से समाधान का जो प्रयास प्रारंभ किया था, वह अब रंग लाने लगा है। अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने अयोध्या के निकट ही अड़गड़ा मोहल्ले में स्थित आलमगीर मस्जिद और उसके परिसर को मस्जिद के लिए देने का प्रस्ताव भी किया था। आलमगीर मस्जिद और उससे लगी भूमि अवध के नवाब सुजाउद्दौला ने लगभग 300 वर्ष हनुमानगढ़ी को दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने भूमि विवाद का ही निपटारा करने का फैसला लिया है। जहां हिन्दू रामजन्म भूमि के रूप में मान्यता प्राप्त स्थल पर मंदिर बनाने के लिए दृढ़ संकल्प है, वहीं मस्जिद के पुन: निर्माण आग्रही मुस्लिम समुदाय में इसके लिए समझौतावादी रूख अपनाने की भावना का प्रस्फुटन होने लगी है क्योंकि उसे इस बात का संज्ञान है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला यदि उनके पक्ष में हो भी जाता है-जैसा वाक्या वैसे की जमीन होने का दावा लॉ बोर्ड का है-तो भी वहां से न वे रामलला को हटाया जा सकता है, और न मस्जिद बन सकती है। टाट की जिस छाया में रामलला हैं उसकी यथास्थिति बनी रहे और हिन्दू मुसलमानों के बीच तनाव बनाए रखकर जो राजनीतिक या निजी हित साधने पर आरूढ़ हैं उनकी दूकानें चलती रहें। आम मुसलमान यह अनुभव करता है कि इस कलह से उसका बहुत नुकसान हो चुका है।
जो अतिवादी लॉ बोर्ड पर अब पूरी तरह काबिज हो चुके हैं, उनको हैदराबाद में मिलने की मेजबानी करने वाले आल इंडिया मजलिस-ए-इब्तेहादुल मुसलमीन के सांसद असादुद्दीन ओवैसी के उग्र आचरण, हैदराबाद के पूर्व निजाम शाही के भारत से अलग रहने के लिए सैनिक संघर्ष तक उतारू होने के बाद पाकिस्तान भाग जाने के पीछे जो मनोवृत्ति थी, उसके पोषण के अभियान को निरंतरता प्रदान तत्परता की छाया में भिन्न विचार सुनने की भी असहिष्णुता से स्पष्ट है कि जो लोग मुस्लिम समुदाय का नेतृत्व करते हैं वे उस दकियानूसी आचरण से समुदाय को निकलने देने के किसी भी प्रयास को सार्थक होते नहीं देखना चाहते। तीन तलाक के मामले में हलाल केंद्र हैदराबाद में बैठे पर्सनल ला बोर्ड किसी सहिष्णु आवाज को कैसे उभरने देती। फलत: देशव्यापी आकांक्षा के अनुरूप मौलाना नदवी के सुझाव को सुनने और विचार करने के बजाय उन्होंने उन्हें ही संगठन से बाहर कर दिया है। इस घटना को महज रामजन्मभूमि विवाद के हल होने या बाधक बनने के रूप में ही महत्व देना, उसके प्रभाव का समग्र आंकलन नहीं प्रस्तुत कर सकेगा। कोई दो दशक पूर्व लॉ बोर्ड के कानूनी सलाहकार स्व. अब्दुल मन्नान ने मुझसे एक साक्षात्कार में जो कहा था, मुसलमानों में उस भावना की पैठ मुखरित होने के रूप में देखना चाहिए। उन्होंने कहा था-बाबरी मस्जिद हमारे लिए कोई मक्का मदीना नहीं है। हिन्दुओं के लिए रामजन्मभूमि की वैसी आस्था हो सकती है जैसे तमाम मस्जिदें हैं वैसे बाबरी मस्जिद भी एक है। उस पर से हक छोड़ देना गैर इस्लामी नहीं होगा लेकिन हमें डर है कि इसको हासिल करने के बाद और तमाम जो इस तरह के विवाद हैं, उन स्थलों के लिए भी हिन्दू दावा करेंगे। उनकी यह आकांक्षा बेबुनियाद नहीं थी क्योंकि तब तक अयोध्या के साथ-साथ मथुरा और काशी को जोड़कर नारे लगाते थे।
इंदिरा गांधी के प्रधान मंत्रित्वकाल में ही संसद ने एक कानून पास किया था जिसमें यह प्रावधान है कि 15 अगस्त 1947 के पूर्व जो पूजा स्थल जिस स्वरूप में थे, वैसे ही वैध रहें। क्योंकि रामजन्मभूमि विवाद न्यायालय में लंबित था इसलिए उसे इस श्रेणी में नहीं रखा गया था। ध्यान दिलाने पर मन्नान ने इस तथ्य को स्वीकार किया था साथ ही इतने वर्षों से चल रहे उद्धार आंदोलन में अब रामजन्मभूमि के उद्धार का मुद्दा केंद्र बिन्दु रह गया है। मुस्लिम समुदाय में वास्तविक स्थिति का एहसास है, यह एहसास उन मुस्लिम नेताओं में भी जो पृथकतावादी भावना को जीवित रखकर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैं। यही कारण है कि जो पर्सनल ला बोर्ड हर मत पर बाबरी मस्जिद के लिए अड़ा हुआ था और ढांचा नहीं भूमि के लिए दावेदारी पर अड़ा है वह अब कहने लगा है कि उसे सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वीकार होगा। वह समझौता करने की मानसिकता तो रखता है लेकिन उसको पूर्व में किए गए प्रयास के संदर्भ में मुंह दिखाने लायक बने न रह पाने का भय सता रहा है।
रामजन्मभूमि विवाद का समाधान निकालने के लिए श्री श्री रविशंकर के प्रयास और मौलाना सलमान हुसैनी की सोच में समानता है। दोनों का प्रयास यह है कि विवाद के पक्षकार मसविदे पर सहमत होने का दस्तावेज सर्वोच्च न्यायालय में पेशकर स्थायी समाधान कर लें ताकि हिन्दू और मुसलमानों के बीच कटुता का एक स्थायी समाधान हो सके। बाबरी मस्जिद के पक्षकार स्व. हाशमी भी ऐसा ही चाहते थे। निधन के पूर्व तो उन्होंने यहां तक कहा था कि रामलला कब तक टाट में बैठे रहेंगे। अयोध्या और फैजाबाद में इस विवाद के कारण कोई तनाव नहीं है। दोनों पक्षों के लोग परस्पर औपचारिक अनौपचारिक रूप से मिलते भी रहते हैं। ओवैसी और उनके समान राजनीतिक लाभ के लिए मुसलमानों में पृथकता की भावना बनाए रखने के लिए विवाद को मुद्दा बनाए रखना चाहते हैं। चंद्रशेखर जब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने मक्का के इमाम का एक फतवा भी प्राप्त किया था जिसमें मस्जिद को हटाये जाने को गैर इस्लामी नहीं बताया गया था।
सऊदी अरब को इस्लामी विचारधारा का केंद्र माना जाता है, वहां अनेक मस्जिदें व कब्रिस्तान हटाकर होटल और सड़कें बनाई गईं हैं ताकि हज करने वालों को असुविधा न हो। जिस पाकिस्तानी भावना का प्रभाव दकियानूसी व्यक्तियों और संगठनों में प्रभावशाली है, उनको यह पता होना चाहिए कि पाकिस्तान में भी कुछ मस्जिदें नागरिक सुविधाओं के लिए हटाई गई है। इसलिए ला बोर्ड का यह मत कि इस्लाम में मस्जिद हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, केवल इस्लाम विरोधी आचरण का दुराग्रह मात्र है। मौलाना सैयद सलमान हुसैनी ने जिस सुझाव के साथ आम मुस्लिम भावना के अनुरूप कदम बढ़ाया है उसके तीन महीने में सफलता मिलने की जो उम्मीद जताई है, उससे सौदागीरी करने वालों को ठेस अवश्य लगी होग, लेकिन यह तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुरूप कानून बनाने का जो आग्रह समुदाय में पैठ बन चुका है, उनको सामंजस्य सहमति और समाज की मुख्यधारा में लाकर मुस्लिम समुदाय को समरस बनाने की दिशा एक और कदम है, इसी रूप में देखा जाना चाहिए। साथ ही उनके प्रयास की सफलता की कामना भी।
(लेखक पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं)