घोटाले पर नीरव मोदी की सीनाजोरी
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एक तो चोरी, ऊपर से सीना जोरी। यह कहावत बैंक घोटाले के आरोपी नीरव मोदी और विक्रम कोठारी पर पूरी तरह से फिट बैठ रही है। नीरव मोदी ने तो अपने ऊपर हुई कार्यवाही के बाद बैंक को चेतावनी देते हुए कहा है कि बैंक ने मेरे मामले का खुलासा करके मेरा व्यवसाय चौपट कर दिया है, इसलिए मैं अब बैंक को पैसा वापस नहीं करुंगा। इसके विपरीत विक्रम कोठारी ने अपने बयानों में नरमी दिखाई है। यहां यह बात पूरी तरह से सच है कि वर्तमान केन्द्र सरकार ने देश के आर्थिक मामलों में बहुत सख्ती दिखाई है, इसी के चलते पंजाब नेशनल बैंक का यह घोटाला उजागर हुआ है। यह भी सबसे बड़ा सच है कि यह घोटाला वर्तमान सरकार के कार्यकाल का नहीं है। इस सरकार ने तो कठोर कार्यवाही की है। जबकि पिछली केन्द्र सरकार का संचालन करने वाली कांगे्रस अपने दामन से दाग छुड़ाने का प्रयास करते हुए इस बैंक घोटाले के बारे में नरेन्द्र मोदी की सरकार को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है।
यह कांगे्रस के नेता भी जानते हैं कि पहले बैंकों के ऋण कैसे दिए जाते रहे हैं। विजय माल्या का उदाहरण हम सभी के सामने है, इसी के साथ ललित मोदी का नाम भी लिया जा सकता है। वास्तव में इस सबकी जड़ में केवल भ्रष्टाचार का सहारा लिया गया है। अगर भ्रष्टाचार करने और करवाने में कांगे्रस का बहुत बड़ा योगदान कहा जा सकता है। हम यह भी भलीभांति जानते हैं कि पिछली सरकारों के समय में कितना भ्रष्टाचार छाया रहा। कहा जाता है कि राजनीतिक दलों को चंदे के रुप में बड़ी धन राशि देने वाले लोग आसानी से बैंक से ऋण प्राप्त कर लेते थे। बाद में इस ऋण का कैसे उपयोग किया जाता होगा, यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वर्तमान में जिस बैंक घोटाले की चर्चा की जा रही है, उसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि बैंक से ऋण लेते समय फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया गया। 2008 से कोठारी परिवार को दिए गए कर्जों में गड़बड़ियां चल रही हैं। पता चला है कि कर्ज कोई और वजह बताकर लिया गया और उसे कहीं और काम में खर्च कर दिया गया। घपला चाहे नीरव मोदी का हो या फिर कोठारी परिवार का, जाहिर होता है कि देश की बैंकिंग व्यवस्था नीचे से लेकर ऊपर तक मिलीभगत और रिश्वतखोरी में डूबी हुई है। बैंकों के खजाने जैसे घपलेबाजों के लिए पूरी तरह से खुले हुए हैं। कहने को तो कहा जा रहा है कि कोठारी परिवार का घोटाला लगभग 800 करोड़ का है, लेकिन लगता है कि यह हजारों करोड़ तक भी पहुंच सकता है। सरकार ने स्वयं माना है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को साल 2012 से धोखा देकर 22, 443 करोड़ का चूना लगाया गया है।
यह जानकारी पिछले दिनों संसद में प्रश्नकाल के दौरान स्वयं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दी थी। रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार हर चार घंटे में एक बैंक कर्मचारी फर्जी मामले में पकड़ा जा रहा है। छोटे से लेकर बड़े कारोबारी विजय माल्या और नीरव मोदी की राह पर चल रहे हैं। समझने लगे हैं कि बैंक जब मामूली लेन-देन के बाद बड़ी रकम का कर्ज आसानी से दे रहे हैं तो क्यों न इस बहती गंगा में हाथ धो लिए जाएं। कर्ज लो और विदेश भागकर वहां नया कारोबार खोल लो। अगर हालात ऐसे ही हैं तो फिर वह दिन दूर नहीं जब सारी बैंकिंग व्यवस्था चरमराकर धराशायी हो जाएगी और करदाताओं का पैसा बट्टे खाते में डूब जाएगा। सामने आ रहे घोटालों से तो वैसे भी अब बैंकिंग व्यवस्था की विश्वसनीयता को खतरा हो गया है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि बैंकों के एनपीए यानी फंसे कर्ज की समस्या का कोई ठोस समाधान होता न तो दिखाई दे रहा है और न ही कोई उम्मीद दिखाई दे रही है। बैंकिंग व्यवस्था का ध्वस्त होना देश की साख के लिए अच्छा नहीं है और रिजर्व बैंक यह बखूबी समझता है तो रिजर्व बैंक को ही कोई ठोस उपाय करने ही होंगे।