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हमारी कोशिश कला का जनतंत्र स्थापित करने की है: डॉ. सच्चिदानंद जोशी

हमारी कोशिश कला का जनतंत्र स्थापित करने की है: डॉ. सच्चिदानंद जोशी
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नई दिल्ली। कला किसी देश, समुदाय, विचारधारा के बंधनों में नहीं होती है| कला एक मुक्त विचार है| इसे जीवित रखने का एक ही तरीका है कि इसे लोकतांत्रिक स्वरूप में ही रखा जाए। आजादी के पिछले बरसों में कला को, खासकर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में, एक अभिजात्य वर्ग तक सीमित करने के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन हमने अपने कार्यकाल में कोशिश की है कि हम कलाओं का जनतंत्र स्थापित करें। यह बातें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य-सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कही

जोशी जी ने बताया कि संस्थान द्वारा पहली बार न केवल भारत, पूरी दुनिया के 30 से ज्यादा देशों के कलाकारों को एक जगह एकत्र करने की कोशिश इस प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कला मेला के जरिये की गई है। इसके पीछे हमारा उद्देश्य पूरी दुनिया के कलाकारों के बीच बेहतर संवाद स्थापित करना था। हम कला को किसी बंधन में बांधने पर विश्वास नहीं रखते| इसीलिए हमारी कोशिश है कि हम पूरी दुनिया के कलाकारों को एक ऐसा मंच प्रदान करें, जहां वे आपस में बेहतर संवाद स्थापित कर सकें। डॉ. जोशी ने कहा कि कला आम आदमी से जुड़ा विचार है। कला को पहले अभिजात्य वर्ग तक सीमित रखने की कोशिश की गई थी, लेकिन हमारा प्रयास है कि हम कला को उसके लोककला वाले रूप में ही न केवल जीवित रखें, उसे फलने-फूलने दें, उसे समृद्ध करें।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएसीए) में आयोजित प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कला मेला के पांचवें दिन भी देश-विदेश के कलाप्रेमियों की भीड़ कलाकारों के स्टॉलों पर दिखी। इस अंतर्राष्ट्रीय कला मेला में 200 से ज्यादा कलाकारों के स्टॉल लगे हैं, जिसमें 30 से ज्यादा देशों के स्टॉल भी शामिल हैं। इन देशों में चीन, वेनेजुएला, पेरू, पुर्तगाल, श्रीलंका, पौलेंड, ट्यूनिशिया, मैक्सिको, बांग्लादेश,फिजी, पापुआ न्यूगिनी, यूके, स्पेन, ब्राजील सहित तमाम देशों के दूतावासों ने शिरकत की है। 4 फरवरी से शुरू हुआ ये प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कला मेला 17 फरवरी तक चलेगा।

Updated : 8 Feb 2018 12:00 AM GMT
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