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महबूबा मैडम! हद कर दी आपने ?

महबूबा मैडम! हद कर दी आपने ?
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- प्रभुनाथ शुक्ल

राजनीति क्यों और किसके लिए होनी चाहिए। उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए। राजनीति में नीति के साथ उसका धर्म और समावेशी सामाजिक विकास के साथ राष्ट्रीयहित शामिल होना चाहिए। लेकिन आज की राजनीति वैचारिक अकाल से जूझ रही है। उसकी सार्वभौमिकता सिकुड़ गई है। दृष्टिकोण सामरिक होने के बजाय दल, जाति, समूह और क्षेत्रवाद की धुरी पर केंद्रित हो गया है। इसकी मूल वजह वोट बैंक की राजनीति और दीर्घकालिक सत्ता की चाहत है। जिसकी वजह से यह अपने मूल सिद्धान्तों से भटक गई है। अलगाववादी ताकतों की वजह से कश्मीर जल रहा है। पाक प्रायोजित आतंक की फसल घाटी में लहलहा रही है। सीमांत गाँवों की स्थिति बेहद बुरी है, लोग पलायन कर रहे हैं। हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। बेगुनाह लोग मारे जा रहे हैं। जबकि सरकार और विपक्षी दल राजनीति से बाज नहीं आ रहे। बाप- बेटे यानी उमर और अब्दुल्ला की भाषा जलते कश्मीर में घी का काम कर रही है। वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान से गोली चल रही है तो भारत भी चला रहा है। अब्दुल्ला चाहते हैं कि भारत संत बना रहे और पाकिस्तान के आतंकी सेना के जवानों और निर्दोष लोगों को भूनते रहें। वह बातचीत को अंतिम विकल्प मानते हैं। लेकिन यह प्रयोग बाप-बेटे ने अपनी सरकार में क्यों नहीं अपनाया। आज उन्हें बातचीत की याद आ रही है। भाजपा, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस कश्मीर पर राजनीति कर रही हैं। जिसकी वजह है कि घाटी सुलग रही है। क्योंकि दोनों सत्ता में बने रहना चाहते हैं। इस लिए कश्मीर में चल रही राष्ट्र विरोधी नीतियों को समय समय पर हवा दी जाती है। राज्य सरकार के फैसलों में भी वोट बैंक की बू आती है। इस तरह के फैसले राजनीति की घटिया सोच को प्रदर्शित करते हैं।

महबूबा सरकार ने सेना पर पत्थरबाजी करने वाले लोगों पर लदे मुकदमें हटाने का फैसला किया है। कश्मीर के हालात ठीक नहीं हैं। अभी तक वहाँ पंचायत चुनाव तक के हालात नहीं बन रहे हैं। लोकसभा की खाली अनंतनाग सीट पर भी उपचुनाव नहीं कराए जा रहे हैं। महबूबा की बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भी चुनाव कराने की आम राय नहीं बन पाई। विपक्षी दलों ने साफ तौर पर कह दिया कि राज्य में चुनाव कराने के हालात ठीक नहीं हैं। अस्पतालों पर हमला बोल आतंकी अपने साथियों को छुड़ाने में कामयाब हों रहे हैं। राज्य सरकार के सिविल पुलिस के जवान भी आतंकियों का निशाना बन रहे हैं।

अहम सवाल है कि राज्य में हालात इतने बुरे हैं फिर सेना पर पत्थरबाजी करने वालों से हमदर्दी क्यों दिखाई जा रही है। राष्ट्रद्रोह और युद्ध की साजिश रचने वालों के प्रति नरमी क्यों? महबूबा कश्मीर और शेष भारत को अलग चश्मे से देखने की भूल क्यों कर रही हैं। संगीन जुर्म में भी धारा 370 की आजादी का प्रयोग क्यों करना चाहती हैं। सेना के मनोबल को तोड़ने की साजिश क्यों। राज्य सरकार के इस फैसले से सहयोगी भाजपा चुप क्यों है?
लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित अपने ही मुल्क में शरणार्थी बने हैं। जबकि बांग्लादेशी रोहिन्ग्या देश में खुलेआम शरण लिए हैं। यह कितनी विडम्बना है कि कश्मीरी पंडितों को हम उनका घर नहीं दिला पा रहे जबकि राष्ट्रद्रोह के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे हटाने की तैयारी कर रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के लिए हमदर्दी के एक लफ्ज भी नहीं निकले ऐसा क्यों। यह राजनीति नहीं तो और क्या है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से सबसे अधिक जो प्रभावित हुए हैं, वे कश्मीरी पंडित हैं। अफसोस इस बात का है कि उनकी परेशानियों को राज्य सरकार ने कभी गंभीरता से नहीं लिया।

महबूबा सरकार ने 2008 से 2017 के बीच पत्थरबाजी के 1745 मामलों में 9,730 युवाओं पर दर्ज प्रकरण वापस लेने का फैसला किया है। सरकार ने मामले वापस लेने के लिए कमेटी का गठन किया था। पिछले दो वर्षों के दौरान पत्थरबाजी की मामूली घटनाओं में शामिल होने वाले चार हजार युवाओं को माफी देने की भी महबूबा सरकार ने सिफारिश की है। कश्मीर में 2016-2017 में 3773 मामले दर्ज किए गए। जिसमें 11,290 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 233 लोग अभी तक लापता हैं। 2016 में पत्थरबाजी के 2904 मामले दर्ज किए गए और 8570 लोगों को गिरफ्तार किया गया। जबकि 2017 में 869 मामले दर्ज किए गए और 2720 लोगों को गिरफ्तार किया गया। पत्थरबाजी की घटनाओं में 56 सरकारी कर्मचारी और 16 हुर्रियत कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं को मिलाकर 4949 लोग संलिप्त पाए गए। जबकि 4074 लोग किसी भी अलगाववादी या आतंकवादी संगठन से संबंधित नहीं थे। उन्होंने पथराव तो किया और वे गुनहगार हैं। उनके साथ थोड़ी नरमी की जा सकती है। लेकिन यह नरमी कुछ शर्तों पर होनी चाहिए जिससे बहके युवक दोबारा इस तरह की हरकत में न शामिल हों।

पाकिस्तान ने 2017 में 860 से अधिक बार सीजफायर का उल्लंघन किया। वहीं 2018 में 160 से अधिक बार युद्ध विराम तोड़ चुका है। 2014 में 51 जवान शहीद हो गए जबकि 110 आतंकियों को मार गिराया गया। 2015 में 41 सैनिक शहीद हुए और 113 आतंकियो को ढेर किया गया। 2016 में सुरक्षाबलों ने अपने 88 जवान गंवा दिए हालांकि इस दौरान 165 आतंकियों का खेल भी तमाम हुआ। साल 2017 में 83 जवानों ने शहादत हासिल की जबकि आॅपरेशन आॅलआउट में 218 आतंकियों को मार गिराया। 2018 में 4 फरवरी तक सेना के कैप्टन समेत 8 जवान शहीद हो चुके हैं लेकिन साथ ही 10 आतंकियों को मौत की नींद सुलाया गया है। कश्मीरी युवाओं में आतंकी बनने का शौक अधिक पनपा है। आतंकी बुरहानबानी की मौत के बाद इस चाहत में अधिक इजाफा हुआ है। मार्च 2015 में पीडीपी-भाजपा गठबंधन की सरकार आने के बाद से राज्य में 457 लोग मारे जा चुके हैं। जिनमें 48 आम लोग और 134 सुरक्षाकर्मी के अलावा 275 उग्रवादी हैं। जबकि अब तक 100 से ज्यादा आम नागरिक मारे जा चुके हैं। फिर वहाँ महबूबा सरकार क्या कर रही है। युवा आतंकी क्यों बन रहे हैं। सरकार उन्हें समझाने में नाकाम क्यों हो रही है।

कश्मीर में लोगों को पत्थरबाजों का गुनाह नहीं दिखाई पड़ता जबकि उन्हें काबू करने के लिए इस्तेमाल होने वाली पैलेट गन को मुद्दा बना दिया गया है। कश्मीर में हिंसा पर काबू पाना कितनी मुश्किल है। पाकिस्तान की शह पर अलगाववादियों ने कश्मीर में पत्थरबाजी की जो साजिश रची है उसके सीधे निशाने पर हैं सीआरपीएफ और सेना के जवान। हालात इतने खराब हैं कि पत्थरबाजों की आड़ में आतंकी ग्रेनेड हमले करने से भी नहीं चूकते। फिर भी अफसोस की बात है कि पत्थरबाजों को ही पीड़ित की तरह पेश किया जा रहा है। जबकि जवानों पर मुकदमे दर्ज किये जा रहे हैं। कश्मीर में पत्थरबाजी और आगजनी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने पर अफसरों पर मुकदमा दर्ज किया जाता है। शोपिया में सेना के दल पर की गई पत्थरबाजी और आगजनी पर गोली चलाने वाले सैनिकों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया जाता है। कश्मीरी राजनेता यह भूल जाते हैं कि उनका सम्बन्ध शेष भारत से भी है। पाकिस्तान हो या कश्मीरी अलगाववादी भारत से कश्मीर को कभी अलग नहीं कर सकते, यह उनकी भूल है। मुख्यमंत्री महबूबा को घाटी की सियासत की चिंता छोड़ देश और सेना की सोचनी होगी। राज्य सरकार को पत्थरबाओं पर से मुकदमें हटाने से पहले फैसले पर विचार करना चाहिए। देश वोट बैंक की राजनीति से नहीं नीतियों और विचारों से चलता है। भारत को अलग रख कर कश्मीर पर इस तरह के फैसले उचित नहीं हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

Updated : 9 Feb 2018 12:00 AM GMT
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