बदलता मौसम खतरे का संकेत
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ग्लोबल वार्मिंग को लेकर देश-दुनिया के मंच पर लगातार चिंताएं जाहिर हो चुकी हैं। मंच से इस बात पर भी एकमत राय बन चुकी है कि लगातार मौसम में बेतरतीब तरीके से होता बदलाव अनेक संकट साथ ला रहा है। लगातार ग्लेशियर का पिघलना हो या फिर सूखा एवं बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र, सभी में गत एक दशक में विपरीत नजारे देखने को मिले हैं। तो ग्लोबल वार्मिंग का कारण माना गया है। लेकिन सुधार की दिशा में उस मान से कोई पहल नहीं हो पा रही। तभी तो अमेरिका जैसा देश कभी कार्बन उत्सर्जन को लेकर विश्व से एक मत होता है और कभी वैश्विक निर्णय का खुला बायकट करता है। इतिहास, भूगोल और सामान्य ज्ञान की हमारी सारी धारणाएं यही कहती हैं कि यूरोप अगर ठंडा रहता है, तो उसके आगे उत्तरी ध्रुव बहुत ही ठंडा। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के इस युग में ये सारी अवधारणाएं अब ध्वस्त होती दिख रही हैं। इसी समय उत्तरी ध्रुव में जो हो रहा है, वह असामान्य भी है और ऐतिहासिक भी। पहली बार ऐसा हुआ है, जब उत्तरी ध्रुव का औसत तापमान यूरोप के औसत तापमान से ऊपर चला गया हो। लेकिन उत्तरी ध्रुव का यह तापमान जहां पहुंच गया है, वह डराने वाला है। उत्तरी ध्रुव ऐसी जगह है, जहां हर मौसम में हर दम बर्फ जमी रहती है। तापमान शून्य से काफी नीचे रहता है, औसत तापमान शून्य से लगभग 30 डिग्री सेल्सियस नीचे रहता है। बेशक, भारत के लिहाज से हम दो डिग्री को भी काफी ठंडा मौसम मान सकते हैं, लेकिन उत्तरी ध्रुव के हिसाब से यह काफी गरम है। वैज्ञानिकों का आंकलन है कि उत्तरी ध्रुव अपने ऐतिहासिक औसत तापमान के मुकाबले इस बार 35 डिग्री सेल्सियस अधिक गरम दिख रहा है। इसीलिए यह भी कहा जा रहा है कि यूरोप में अगर इस समय शीत लहर है, तो उत्तरी ध्रुव में लू चल रही है। दिक्कत यह है कि अभी वसंत का मौसम है और स्थिति आने वाले दिनों में और बिगड़ सकती है। अभी यह ध्रुव अंधेरे में है और मार्च के मध्य में यहां सूर्य देवता भी अपने दर्शन देने लगेंगे, तब यह स्थिति काफी बिगड़ भी सकती है। ध्रुवों पर जमी बर्फ को हम अरसे से धरती के पर्यावरण का पैमाना मानते आए हैं।
यह माना जाता रहा है कि जब ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगेगी, तो दुनिया के कई हिस्सों में कयामत आएगी। इसका अर्थ होगा, दुनिया के कई द्वीपों और यहां तक कि कई देशों का डूब जाना। वनस्पति और जीव जगत की कई प्रजातियों का नष्ट हो जाना। क्या यह समय आ गया है? वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी यह मानना जल्दबाजी होगी, पर उत्तरी ध्रुव की पिघलती बर्फ बता रही है कि खतरे ने दस्तक दे दी है। समस्या यह भी है कि जो हो रहा है, वैज्ञानिक अभी ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं। वे मानते रहे हैं कि समय के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग का असर जैसे-जैसे बढ़ेगा, धरती के ध्रुवों की बर्फ पिघलने लगेगी। लेकिन अचानक एक दिन तापमान इतना ज्यादा बढ़ने की खबर आएगी, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। इसका एक अर्थ यह भी है कि यह ऐसी स्थिति है, जिससे निपटने की दुनिया के पास फिलहाल कोई तरकीब उपलब्ध नहीं है। वैसे एक सच यह भी है कि उत्तरी ध्रुव के तापमान के ताजा आंकड़े ग्रीनलैंड में बने निगरानी केंद्र ने हासिल किए हैं, और ये आंकड़े पूरे ध्रुव के नहीं हैं, इसलिए माना यह जा रहा है कि सब जगह स्थिति शायद इतनी खराब न हो। अगर ऐसा है भी, तब भी ये खबरें एक चेतावनी तो हैं ही।
- महेन्द्र वर्मा, भितरवार