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अब केवल नाम रह गया है जे.सी. मिल का, कपड़ा उत्पादन करने वाले हाथ हुए असहाय

अब केवल नाम रह गया है जे.सी. मिल का, कपड़ा उत्पादन करने वाले हाथ हुए असहाय
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ग्वालियर।
जियाजीराव कॉटन मिल्स लिमिटेड (जे.सी. मिल) कभी ग्वालियर की पहचान था। यहां ‘जियाजी सूटिंग शर्टिंग’ के नाम से बनने वाला कपड़ा भी दुनिया भर में विख्यात था। करीब 700 बीघा जमीन में फैले इस मिल में लगभग 16 हजार मजदूर काम करते हैं, लेकिन पिछले ढाई दशक से यह मिल वीरान पड़ा है। इस मिल में काम करने वाले मजदूरों को लम्बी लड़ाई के बाद उनकी मेहनत-मजदूरी का लम्बित पैसा अब मिलने की आस जगी है। इसके लिए मजदूरों से फार्म भरवाए जा रहे हैं।

ग्वालियर के हजीरा क्षेत्र में जे.सी. मिल की नींव सन् 1922 में तब रखी गई थी, जब उस समय के शासक जीवाजीराव सिंधिया सेठ घनश्याम दास बिरला को अपने साथ ग्वालियर लेकर आए थे और उन्हें अपने महल में रखा था। इसके बाद से ही यह क्षेत्र बिरला नगर से पहचाना जाने लगा। सन् 1923 में इस मिल में कपड़ा उत्पादन के लिए मशीनें लगाई गईं। प्रारंभ में यहां सादा कपड़ा बनाया जाता था। कुछ समय बाद यहां फेंसी और जकार लूम लगाए गए। तत्पश्चात यहां कपड़े के साथ पलंग की निवार और गर्म कपड़ों के लिए ऊन का उत्पादन भी होने लगा। इसके बाद यहां बनने वाले कपड़े को ‘जियाजी सूटिंग शर्टिंग’ नाम दिया गया। यह कपड़ा धीरे-धीरे दुनिया भर में विख्यात हो गया।

प्रारंभ में जे.सी. मिल में करीब 16 हजार मजदूर काम करते थे। सन् 1946-47 के दशक में यहां प्रतिदिन करीब एक लाख गज कपड़े का उत्पादन होता था। सन् 1952 के दशक में यहां आधुनिक मशीनें लगाई गईं, उसके बाद धीरे-धीरे मजदूरों की संख्या कम होती गई और करीब 14 हजार मजदूर रह गए, जबकि कपड़े का उत्पादन प्रतिदिन डेढ़ लाख गज होता था। इसके बाद सन् 1958 तक प्रतिदिन कपड़े का उत्पादन बढक़र तीन लाख गज हो गया था। उस समय एक मजदूर एक लूम पावर चलाता था और करीब बीस गज कपड़े का उत्पादन करता था। इसी क्रम में एक बार फिर मशीनों में परिवर्तन हुआ और स्वचालित आधुनिक मशीनें लगाई गईं। इसके बाद एक मजदूर आठ लूम पावर चलाता था और करीब 200 मीटर कपड़े का उत्पादन करता था।

कांग्रेस की गलत नीतियों से बंद हुए मिल
जानकारों के अनुसार सन् 1990 के दशक में कांग्रेस के शासनकाल में उद्योग विकास बैंक स्थापित कर उद्योगों को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए ऋण व अनुदान दिया गया। इसके साथ ही औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (बीआईएफआर) का गठन किया गया, जिसे उद्योगों के लिए सुझाव, सिद्धांत, नियम, शर्तें आदि बनाने तथा उन्हें लागू कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई, लेकिन बीआईएफआर द्वारा उद्योग संचालित करने के लिए जो कठिन नियम व शर्तें थोपी गईं, उन पर अधिकांश औद्योगिक संस्थान खरे नहीं उतरे। परिणाम स्वरूप ग्वालियर के जे.सी. मिल सहित देश के अधिकांश उद्योग-धंधे बंद हो गए।

सन् 1992 में बंद हुआ कपड़े का उत्पादन
सन् 1992 में जे.सी. मिल में आठ हजार श्रमिक काम करते थे और प्रतिदिन करीब साढ़े पांच हजार मीटर कपड़े का उत्पादन होता था। यह वो समय था, जब केन्द्र सरकार ने उद्योगों को विकसित करने के लिए खुले हाथों से ऋण व अनुदान देना प्रारंभ किया था। उस समय जे.सी. मिल को भी करीब 13 करोड़ रुपए मिले थे, लेकिन उद्योगपतियों ने इस पैसे का दुरुपयोग किया और कपड़ा मिलों को गृह उद्योगों में परिवर्तित किया जाने लगा। उस दौर में देश भर में लगभग 90 से 95 प्रतिशत मिल बंद हुए थे, जिनमें ग्वालियर का जे.सी. मिल भी शामिल था। इसी के साथ ग्वालियर में संचालित सिमको एवं ग्वालियर ग्रेसिम सहित कुछ अन्य मिल भी बंद हुए थे। इसके बाद शासन ने 4 मई 1998 में जे.सी. मिल को घोषित रूप से बंद कर दिया था।

भुगतान के लिए भराए जा रहे हैं फार्म
उच्च न्यायालय के आदेश अनुसार मजदूरों के स्वत्वों के आंशिक लाभांश के भुगतान के लिए परिसमापन अधिकारी द्वारा मिल श्रमिकों से इन दिनों फार्म भरवाए जा रहे हैं। इनके फार्मों के सत्यापन का अधिकार मजदूर कांग्रेस ग्वालियर (इंटक) को दिया गया है, जहां से सत्यापन उपरांत फार्म जे.सी. मिल के गेस्ट हाउस में मौजूद परिसमापन अधिकारी कार्यालय इन्दौर से जुड़े कर्मचारियों द्वारा प्राप्त किए जा रहे हैं। जिन श्रमिकों के फार्म परिसमापन अधिकारी कार्यालय इन्दौर पहुंच चुके हैं, उनके बैंक खातों में पैसा आना भी प्रारंभ हो गया है। जिन मजदूरों की मृत्यु हो चुकी है, उनको उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र देना अनिवार्य किया गया था। चूंकि उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र प्राप्त करने में श्रमिकों की विधवाओं को दिक्कतें आ रही थीं। इस समस्या का समाधान करते हुए परिसमापन अधिकारी ने 100 रुपए के स्टाम्प पर शपथ पत्र के साथ फार्म को इंटक प्रतिनिधि से सत्यापन कराने पर उसे ही उत्तराधिकार प्रमाण-पत्र के रूप में मान्य करने की स्वीकृति दे दी है।

श्रमिकों में बंटेंगे 13 करोड़ रुपए
वर्तमान में जे.सी. मिल के लगभग तीन हजार मजदूर हैं, जिनमें करीब 1500 श्रमिकों की विधवाएं शामिल हैं। इन सभी को रजिस्टर में हाजिरी बंद होने से लेकर मिल के अधिकारिक रूप से बंद होने के बीच के समय (1992 से 1998 तक) का उनके स्वत्वों के आंशिक लाभांश का भुगतान किया जाना है। इसके लिए जे.सी. मिल की कुछ सम्पत्ति बेची गई है, जिसमें ग्वालियर, उज्जैन, भटिंगा की जमीन, कोलकाता का ऑफिस, ग्वालियर की दीनिग फैक्ट्री एवं जे.सी. मिल में लगीं मशीनें आदि शामिल हैं। इस सम्पत्ति को बेचकर परिसमापन अधिकारी को करीब 26 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। बताया गया है कि उच्च न्यायालय खंडपीठ ग्वालियर द्वारा 20 अक्टूबर 2016 को पारित आदेश के पालन में करीब 13 करोड़ की राशि मजदूरों को बांटी जाएगी। इससे पहले चार-पांच किश्तों में करीब तीन हजार मजदूरों (प्रत्येक) को 42900 रुपए प्राप्त हो चुके हैं।

इनका कहना है
परिसमापन अधिकारी द्वारा जे.सी. मिल श्रमिकों को उनके स्वत्वों के आंशिक लाभांश के भुगतान के लिए करीब 13 करोड़ रुपए बांटे जाना हैं। यह पैसा सीधे श्रमिकों के बैंक खातों में जमा कराया जाएगा। इसके लिए हम श्रमिकों से फार्म भरवा रहे हैं, लेकिन कुल कितने मजदूरों को भुगतान किया जाना है तथा प्रत्येक मजदूर को कितना भुगतान किया जाएगा। इस बारे में परिसमापन अधिकारी ही बता पाएंगे।

रतीराम यादव, अध्यक्ष
मजदूर कांगे्रस ग्वालियर

Updated : 20 Dec 2016 12:00 AM GMT
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