पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के राजनीतिक सफर पर एक नज़र
भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा का बुधवार के दिन दुखद निधन हो गया है। पटवा के निधन से पूरे मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में शोक व्याप्त है। पटवा की पार्थिक देह आज सायंकाल चार बजे से भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय पं. दीनदयाल परिसर में अंतिम दर्शन के लिए रखी जाएगी। उनका अंतिम संस्कार गुरूवार (29 दिसम्बर) के दिन उनके पैतृक गांव कुकड़ेश्वर, जिला मंदसौर में किया जाएगा। आज उनके निधन की खबर मिलते ही मुख्यमंत्री चैहान एवं उनकी पत्नी साधना सिंह सीधे बंसल हॉस्पिटल पहुंचे। उन्होंने पटवा के परिवार को ढांढस बंधाया। सौम्य व्यक्तित्व, शालीन व्यवहार, कुशल संगठन क्षमता, ओजस्वी वक्ता और विभिन्न जनसमस्याओं को उठाने वाले जुझारू नेता के रूप में सुन्दरलाल पटवा ने सार्वजनिक ओर राजनीतिक जीवन में अपनी एक अलग पहचान बनाई।
सभ्रंत परिवार की पृष्ठभूमि के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संबद्धता ने पटवा के जीवन को उच्च आदर्शों के प्रति संस्कारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। पटवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने के पश्चात 1942 से 1951 तक विस्तारक रहे। सुन्दरलाल पटवा का जन्म मंदसौर जिले के कुकडेश्वर कस्बे में एक प्रगतिशील श्वेताम्बर जैन परिवार में 11 नवम्बर 1924 को हुआ था। उनके पिता मन्नालाल पटवा अपने क्षेत्र के एक ख्यातिप्राप्त व्यवसायी और प्रतिष्ठत समाज सेवी थे। पटवा की प्रारंभिक शिक्षा कुकडेश्वर और रामपुरा में हुई। अपने पारिवारिक परिवेश और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबद्धता के कारण भारतीय संस्कृति, मानवीय मूल्यों, सामाजिक मर्यादाओं के प्रति रूझान के कारण पटवा इन्टरमीडिएट तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश कर गये। उन्होंने मनासा क्षेत्र से 1957 में मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया और अपने क्षेत्र की समस्याओं को मुखरित करने और उनके समाधान के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहे हैं। अपने क्षेत्र के प्रति जागरूकता के कारण वे पुनः 1962 में निर्वाचित हुए और विधान सभा में प्रतिपक्ष के मुख्य सचेतक रहे। विधान सभा की अनेक समितियों में उन्होंने प्रतिनिधित्व किया और भारतीय जनसंघ की प्रदेश शाखा के महामंत्री रहे। मंदसौर जिले के सहकारिता आंदोलन को पटवा ने नई चेतना प्रदान की।
वे 1967 में नीमच सेन्ट्रल को-आपरेटिव बैंक के अध्यक्ष निर्वाचित हुए और लम्बे समय तक इस बैंक के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए उन्होंने सहकारिताआंदोलन को जनोन्मुखी बनाया उनके कार्यकाल में सहकारी संस्थाओं के माध्यम से कमजोर वर्गों, शिल्पियोग और श्रमिकों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के सफल प्रयोग किये गये। इसके परिणामस्वरूप मंदसौर जिले में सहाकरिता के क्षेत्र में कई औद्योगिक परियोजनाएं शुरू हुई है। पटवा की यह मान्यता रही है कि जब तक कृषि और दुग्ध व्यवसाय को आधुनिक स्वरूप प्रदान नहीं किया जाता, तब तक ग्रामीण अंचलों का अपेक्षित विकास सम्भव नहीं है। इस उद्देश्य से उन्होंने यूरोपीय देशों का भ्रमण किया और इंग्लैंड में डेयरी विकास का अध्ययन किया। दुग्ध विकास को आधुनिक स्वरूप देने के लिए उन्होंने अपने पारिवारिक फार्म में यह कार्य शुरू काराया। उनसे कनिष्ठ भ्राता समरथमल पटवा ने देश में कृषि उत्पादन प्रतियोगिता में दो बार द्वितीय स्थान प्राप्त कर कृषि पंडित की उपाधि प्राप्त की। मंदसौर जिले में क्रांति लाने में पटवा की भूमिका महत्वपूर्ण रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने कुटीर उद्योगों को भी आधुनिक आधार प्रदान करने के लिए शिल्पियों को प्रोत्साहन प्रदान किया। वे ग्राम राज्य और सत्ता के विकेन्द्रीकरण के प्रवल पक्षधर है। पटवा अपनी पार्टी के सिद्धांतों और आदर्शों के प्रति समर्पित रहे और अपने झुझारू व्यक्तित्व के कारण वे आपतकाल के दौरान 18 माह तक कारावास की अवधि में पटवा ने अपना समय अध्ययन में लगाया। 1977 के आम चुनाव में आप फिर विधान सभा के लिए जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में विजयी हुए और जनता विधायक दल के महामंत्री के रूप में आपने अपनी अपूर्व संगठन क्षमता का परिचय दिया।
जनता शासन के अंतिम समय 20 जनवरी 1980 से 17 फरवरी 80 तक कुछ समय के लिए वे मुख्यमंत्री भी रहे और आपने ही प्रतिपक्ष के नेता को केबिनेट मंत्री का दर्जा देने का महत्वपूर्ण कदम उठाया था। इसके साथ ही उन्होंने तकनीकी विभागों के सचिव पद पर तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति और शासकीय सेवकों को केन्द्र के समान मंहगाई भत्ता देने का निर्णय लिया। पटवा 1980 के चुनाव में सीहोर से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए और उन्होंने प्रतिपक्ष के नेता के रूप में विधान सभा में अपनी तार्किक ओर ओजस्वी शैली से विभिन्न जन समस्याओं को उठाकर प्रतिपक्ष की भूमिका को एक नया आयाम प्रदान किया। हरिजन, वनवासियों, ग्रामीणों, किसानों, मजदूरों तथा समाज के गरीब तबकों की विभिन्न समस्याओं को श्री पटवा ने न केवल विधान सभा में अपितु जन आंदोलनों के माध्यम से भी सशक्त रूप से समय-समय पर उठाया। इसमें संदेह नहीं है कि इन्हीं आंदोलनों के कारण भारतीय जनता पार्टी को व्यापक जनाधार प्राप्त हुआ है। श्री पटवा 1986 से भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष और जागरूक विधायक के रूप में कार्यरत रहे। उन्होंने अपने विधायक जीवन में मनासा, मंदसौर, सीहोर और भोजपुर क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर उनके विकास के लिए अथक परिश्रम कर अपनी लोकप्रियता को बढ़ाया। पटवा अत्यंत निष्ठावान, स्वयंसेवक एवं कठोर परिश्रमी एवं दूरदर्शी राजनेता थे। उन्होंने अपने कौशल और अपनत्व भरे व्यवहार से मध्यप्रदेश में जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी को अनेकों कुशल कार्यकर्ताओं का निर्माण किया।
पटवा जी का सार्वजनिक जीवन इस प्रकार रहा:-
सन् 1942 से 51 तक राष्ट्री सेवक संघ के कार्यकर्ता व विस्तारक। सन् 1948- संघ पर लगे प्रतिबंध के कारण 6 माह की जेल यात्रा। सन् 1951 से जनसंघ के संस्थापक सदस्य व सन् 1980 से भाजपा के संस्थापक सदस्य। विधायक- 1957 व 1962 मनासा, सन् 1977 मंदसौर, सन् 1980 सीहोर, सन् 1985, 90, 93, 98 भोजपुर। सांसद- सन् 1997 से 1998 छिंदवाड़ा, सन् 1999 से 2004 होशंगाबाद। विधानसीभा में नेता प्रतिपक्ष के मुख्य सचेतक- सन् 1962 से 67। अध्यक्ष- नीमच सेन्ट्रल को-आपरेटिव बैंक- सन् 1967 से 75। मीसा के तहत जेलयात्रा- सन् 1975 से 77 (19 माह)। मुख्यमंत्री- 20 जनवरी सन् 1980 से 17 फरवरी 1980 तक, 5 मार्च 1990 से 15 दिसम्बर 1992 तक। नेता प्रतिपक्ष- सन् 1980-85 प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सन् 1980-85 व सन् 1986-90 केंद्रीय मंत्री-सन् 1999 से 2001 तक केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री। पदयात्रा- सन् 1984 में 2200 किमी की पदयात्रा जगदलपुर से झाबुआ। सन् 1994 में राजगढ़ जिले के ग्रामीण अंचल की पदयात्रा। वर्तमान- प्रदेश भाजपा के संरक्षण व मार्गदर्शक।