वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल का निधन
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नई दिल्ली। देश के बडे वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल का निधन हो गया है। 90 साल की उम्र में नोएडा में उन्होंने , यशपाल को कई पुरस्कारों से नवजा गया था। सबसे पहले 1955 में देव पुरस्कार, 1970 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, 1971 में मंगला प्रसाद पारितोषिक इसके बाद 1970 में पद्म भूषण और फिर साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया।
हम आपको बता दें कि यशपाल का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख था। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते थे। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता था। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े, इसके परिणामस्वरुप लम्बी फरारी और जेल में व्यतीत करना पड़ा। इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बनाया, जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से जनजागरण का काम शुरु किया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
यशपाल का परिचय
यशपाल का जन्म 3 दिसम्बर 1903 को पंजाब के फ़ीरोज़पुर छावनी में एक साधारण खत्री परिवार में हुआ था। उनकी मां प्रेमदेवी वहां अनाथालय के एक स्कूल में अध्यापिका थीं। यशपाल के पिता हीरालाल एक साधारण कारोबारी व्यक्ति थे। उनका पैतृक गांव रंघाड़ था, जहां कभी उनके पूर्वज हमीरपुर से आकर बस गए थे। पिता की एक छोटी-सी दुकान थी और उनके व्यवसाय के कारण ही लोग उन्हें ‘लाला’ पुकारते थे। बीच-बीच में वे घोड़े पर सामान लादकर फेरी के लिए आस-पास के गांवों में भी जाते थे।
अपने व्यवसाय से जो थोड़ा-बहुत पैसा उन्होंने इकठ्ठा किया था उसे वे, बिना किसी पुख्ता लिखा-पढ़ी के, हथ उधारू तौर पर सूद पर उठाया करते थे। अपने परिवार के प्रति उनका ध्यान नहीं था। इसीलिए यशपाल की मां अपने दो बेटों यशपाल और धर्मपाल को लेकर फीरोज़पुर छावनी में आर्य समाज के एक स्कूल में पढ़ाते हुए अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के बारे में कुछ अधिक ही सजग थीं।
यशपाल के विकास में गरीबी के प्रति तीखी घृणा आर्य समाज और स्वाधीनता आंदोलन के प्रति उपजे आकर्षण के मूल में उनकी मां और इस परिवेश की एक निर्णायक भूमिका रही है। यशपाल के रचनात्मक विकास में उनके बचपन में भोगी गई गऱीबी की एक विशिष्ट भूमिका थी।