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विश्व पुस्तक मेले में राष्ट्रवादी साहित्य की रही धूम

विश्व पुस्तक मेले में राष्ट्रवादी साहित्य की रही धूम
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नई दिल्ली। विश्व पुस्तक मेले में इस बार राष्ट्रवादी साहित्य की मांग खूब देखने को मिली। देश के 12 राष्ट्रवादी प्रकाशकों के स्टॉलों पर पाठकों की भारी भीड़ उमड़ी। राष्ट्रीय साहित्य संगम के बैनर तले हुए पुस्तक मेले में देश के दस राष्ट्रवादी प्रकाशन सुरुचि प्रकाशन, भारती प्रकाशन नागपुर, आकाशवाणी प्रकाशन जालंधर, साहित्य साधना ट्रस्ट अहमदाबाद, अर्चना प्रकाशन भोपाल, भारतीय संस्कृति प्रचार समिति कटक, साहित्य निकेतन प्रकाशन हैदराबाद, जनगंगा प्रकाशन जयपुर, कुरुक्षेत्र प्रकाशन (कोचीन), जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र दिल्ली, संस्कृत भारती प्रकाशन दिल्ली और लोकहित प्रकाशन लखनऊ पहुंचे थे।

दस दिनों के दौरान इन प्रकाशनों की दस पुस्तकों का विमोचन हुआ। इसमें श्री भारती प्रकाशन नागपुर की संकेत रेखा, अर्चना प्रकाशन भोपाल की एक मुखौटा ऐसा भी, एकात्मता के स्वर, हम असहिष्णु लोग, आदि।
मेले में लोगों ने जमकर राष्ट्रवादी साहित्य की किताबें खरीदी| दूसरी तरफ राष्ट्रीय साहित्य संगम के बैनर तले हो रहे ‘शब्दोत्सव’ में राष्ट्रवादी विषयों पर विभिन्न विद्वानों की चर्चाएं सुनी। पूरे दस दिनों तक शब्दोत्सव की सबसे ज्यादा धूम रही। इन बौद्धिक कार्यक्रमों में देशभर के विद्धतजन, शिक्षाविद, पत्रकार, शोधार्थी और विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र इस विमर्श में शामिल हुए|
शब्दोत्सव में सात जनवरी को लेखन में विचार, धार और धारा विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया जिसमें निष्पक्ष और जनपक्षीय पत्रकारिता पर जोर दिया गया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के साथ मिलकर हुए इस कार्यक्रम में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन के महानिदेशक के.जी. सुरेश और वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने तथा कई अन्य पत्रकारों ने अपने विचार रखे।
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने ने कहा ‘ विचार के बिना समाचार नहीं होता। पत्रकार जनपक्ष को कभी नजरअंदाज न करें क्योंकि पत्रकारिता का वास्तविक उद्देश्य वही है। के. जी. सुरेश ने कहा ‘भ्रामक तथ्यों के सहारे समाज में विघटन, वैमनस्य और विष फैलाने वाली पत्रकारिता किसी का भला नहीं करती।’ डॉ. अग्निहोत्री ने कहा ‘पत्रकारिता संस्थानों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे ऐसे पत्रकार तैयार करें जो आधुनिक तकनीक और विचार संबंधी सभी चुनौतियों से निबटने में सक्षम हों।’

आठ जनवरी को ‘साहित्य इतिहास में मिथक और यथार्थ’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध इतिहासकार कपिल कुमार, रजनीश कुमार और मक्खनलाल लाल उपस्थित रहे। इस अवसर पर कपिल कुमार ने कहा ‘भारत के गौरवशाली इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता रहा है। दस जनवरी को शब्दोत्सव के तहत ‘ कलम खामोश क्यों’ विषय पर विमर्श हुआ। इसमें उन विषयों को उठाया गया जिन विषयों पर कथित सेकुलर मीडिया लिखने से हमेशा बचता रहा है। कार्यक्रम में प्रज्ञा प्रवाह के संयोजक जे नंद कुमार ने मीडिया में हिन्दू पीड़ित और मुस्लिम पीड़ितों के लिए मीडिया की अलग-अलग दृष्टि पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा ‘ब्रेक इंडिया ब्रिगेड और मेक इंडिया ब्रिगेड का यह एक बहुत बड़ा युद्ध है। भारत के आगे बढ़ने से यहां के बहुत से लोग चिंतित हैं। भारतीय संस्कृति में प्रेम को पवित्र भाव माना गया है, किन्तु एक योजना के तहत हिन्दू लड़कियों के कन्वर्जन के उद्देश्य से देश तोड़ने के हथियार के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है।’ इस दौरान ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर, वरिष्ठ टीवी पत्रकार चंद्र्र प्रकाश, वरिष्ठ पत्रकार नीलू रंजन, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की सहायक प्रोफेसर प्रेरणा मल्होत्रा ने भी अपने विचार लोगों के सामने रखे। 12 जनवरी को 'साहित्य और पत्रकारिता, कितने दूर कितने पास' विषय पर लेखक मंच में परिचर्चा की गयी। परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार एवं समीक्षक श्री अनंत विजय, चर्चित व्यंग्यकार डॉ आलोक पुराणिक, प्रसिद्ध लेखक राजीव रंजन प्रसाद तथा राष्ट्रीय पुस्तक न्यास की निदेशक श्रीमती रीता चौधरी ने पत्रकारिता में साहित्य के महत्व पर चर्चा की। विषय वस्तु प्रस्तुतीकरण व मंच संचालन श्री अनुराग पुनेठा ने किया।

14 जनवरी को शब्दोत्सव के तहत 'लोक को नकारे तो कैसा साहित्य' विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गयी। गोष्ठी में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी, सुप्रसिद्ध लोक गायिका मालिनी अवस्थी, आकाशवाणी में लोक सम्पदा विभाग के निदेशक सोमदत्त शर्मा, साहित्यकार प्रो. प्रमोद दूबे तथा दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.अवनिजेश अवस्थी ने विचार व्यक्त किये। मंच का कुशल संचालन उमेश चतुर्वेदी ने किया।

Updated : 17 Jan 2018 12:00 AM GMT
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