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राजनीतिक सदमे की तरह हैं नतीजे

राजनीतिक सदमे की तरह हैं नतीजे
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देश को आज एक राजनीतिक सदमा लगा है और इस सदमे के लिए जवाबदेह सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही है। देशवासियों ने सम्पूर्ण आस्था, समर्पण एवं विश्वास के साथ भाजपा को अपना समर्थन दिया है। विश्वास की इस पूंजी को अगर बिखरने से न रोका गया तो इसके परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए तो दुखद होंगे ही, देश के लिए घातक होंगे। उत्तरप्रदेश के ताजा उपचुनाव के नतीजों की इबारत में इसे साफ पढ़ा जा सकता है। लोकतंत्र आंकड़ों का खेल है और परिणामों का अंक गणित आज भाजपा के खिलाफ है, पर यह जनादेश नहीं है। जनमत आज भी भाजपा नेतृत्व पर असंदिग्ध विश्वास करना चाहता है, बशर्ते भाजपा नरेशों से बचे, गौरवों के महिमा मंडन से बाज आए, शाजियाओं से दूरी बनाए और उसके अपने देव दुर्लभ कार्यकर्ताओं की ताकत को पहचाने जो अटेर हो या कोलारस, मुंगावली या फिर फूलपुर, गोरखपुर घर से ही नहीं निकले। केन्द्र में भाजपा आज दीनदयाल मार्ग पर अशोका मार्ग से आ गई है। आग्रह सिर्फ यह कि वह ध्यान से विचार करें क्या वह दीनदयाल जी के बताए मार्ग पर ही है या कांग्रेस की तरह जिस मार्ग पर वह चलती है उस मार्ग को ही महात्मा गांधी मार्ग बनाती आई है।

फूलपुर एवं गोरखपुर लोकसभा सीट महज दो लोकसभा सीट नहीं थी। फूलपुर एक ऐसी लोकसभा सीट थी, जिस पर कांग्रेस का या समाजवादी पार्टी का ही राज रहा है। 2014 की प्रचंड लहर में यह सीट भाजपा के खाते में आई। वहीं गोरखपुर में विपरीत से विपरीत हालातों में भी मतदाताओं ने पहले हिन्दू महासभा या बाद मेंं भाजपा पर एक बार नहीं बार-बार विश्वास जताया। राजनीतिक लिहाज से एकदम विपरीत-विपरीत ध्रुवों पर खड़ी यह लोकसभा सीट का राजनीतिक मिजाज 2014 में स्पष्ट संदेश दे रहा था कि देश बदल रहा है और देश बदला भी। उत्तर से लेकर पूर्वांचल तक भाजपा ने अपना विजय रथ अश्वमेध की तरह दौड़ाया भी। यही नहीं सुदूर दक्षिण के केरल में भी सांकेतिक उपस्थिति दर्ज करा कर भाजपा ने यह संदेश दिया कि वह देश को वह मुकाम देने के लिए सज्ज हो रही है। पर यहीं पर एक फिसलन भी दिखाई दी और हर कीमत पर जीत की अधीरता भी। कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते-करते भाजपा कांग्रेस ही नहीं देश के हर उस राजनीतिक दल से युक्त होने लगी, जिससे देश की जनता त्रस्त हो चुकी थी। बेशक साम दाम दंड भेद की इस नीति से भाजपा को राजनीतिक लाभ भी मिले पर उसका मूल कार्यकर्ता जो उसका आधार था,खिसकना शुरु हुआ। ताजा उपचुनावों में लगातार हार का एक बड़ा कारण यह भी है।

दूसरा भाजपा को यह समझना होगा कि 2014 के उप चुनावों में उसे विपक्ष के मत के विभाजन का बड़ा लाभ मिला था, जो पहले कांग्रेस को मिलता था। भाजपा ने बेहद आक्रामक एवं किसी भी हद तक जा कर जिस प्रकार विपक्ष को चुनौती दी, वह अपने अस्तित्व के खतरे को देखते हुए गोलबंद होना शुरु हुए। सपा एवं बसपा का मेल बेशक अवसरवादिता का गठबंधन है, यह कितना स्थाई है, पवित्र है, यह प्रश्न आज के राजनीतिक वातावरण में अप्रासंगिक हो चुके हैं। भाजपा यह प्रश्न खड़े कर अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी जंग में उतार सकती थी, पर नैतिकता के धरातल पर वह भी इन प्रश्नों का स्वयं सामना करने में सक्षम नहीं थी और कार्यकर्ता स्वयं हताश था।
तीसरा भाजपा नेतृत्व को यह समझना होगा कि देश का एक बड़ा वर्ग जो मध्यम वर्ग कहलाता है, देश का व्यापारी, नौकरी पेशा वर्ग भाजपा का पारंपरिक वोट है। संभव है नेतृत्व की नीयत ठीक हो यह भी संभव है कि कालांतर में आर्थिक मोर्चे पर नतीजे ठीक आएं, पर नोटबंदी, जीएसटी सहित आर्थिक मोर्चे पर जो जो निर्णय लिए गए उसने आम आदमी की कमर तोड़ दी। स्वदेशी का नारा एक मजाक बन गया। लघु एवं मध्यम उद्योग मंदी की चपेट में आ गए। युवाओं की समस्याओं को ठीक से संबोधित नहीं किया जा सका।

वहीं एक संदेश और गया है कि पार्टी में सामूहिक नेतृत्व का भाव कहीं न कहीं शिथिल हुआ है। यकीनन नेतृत्व की नीयत पर किसी को संदेह नहीं है, पर देश जब निर्णायक संघर्ष की तैयारी कर रहा हो, तो सबकी सहभागिता राजनीतिक तौर पर अपेक्षित है। नेतृत्व को यह विचार करना होगा कि समूची पार्टी एकजुट निर्णय के स्तर पर दिखाई दे। यह अच्छा हुआ उपचुनाव के नतीजों ने खतरों के संकेत दे दिए हैं। महागठबंधन आज भी दिवा स्वप्न है, पर भाजपा यह मानकर चले कि यह गठबंधन होगा, ऐसे में उसे स्वयं को आंतरिक स्तर पर एकजुट होना होगा, कार्यकर्ताओं को जोड़ना होगा एवं साथ ही नेतृत्व अपने मूल वोटरों को पहचाने उनकी दुखती रग को समझे एवं समाधान दे अन्यथा परिणाम देश के लिए दुखद होंगे। देश के लिए दुखद इसलिए कि भाजपा को देशभर में अब तक मिली जीत में बेशक नेतृत्व का स्वयं का योगदान हो पर यह बरसों की साधना एवं परिश्रम का प्रतिफल है। साधना का यूं निष्फल होना देश के लिए सदमा होगा, कारण भाजपा को सत्ता मिलना, मात्र सत्ता परिवर्तन नहीं था, देश को ऊंचाई देना उसका मूल लक्ष्य था, जो अभी अधूरा है।

Updated : 15 March 2018 12:00 AM GMT
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