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मैहर माता के मंदिर से जुड़ा है आल्हा-ऊदल का इतिहास

स्वामीनाथ शुक्ल

मैहर माता के मंदिर से जुड़ा है आल्हा-ऊदल का इतिहास
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मंगलवार से शुरू हो रहा है चैत्र नवरात्र, रोजाना होती है लाखों की भीड़

मैहर। धार्मिक इतिहास के पन्नों में लिखा है कि मैहर माता का मंदिर खुलने से पहले शारदा माता की पूजा हो जाती है। मंदिर खुलने से पहले अंदर से घंटी बजने की आवाज सुनाई पड़ती है। इस रहस्य का पता लगाने के लिए बैज्ञानिकों की टीम भी गई थी। लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंची थी। जिससे बैज्ञानिकों की टीम वापस लौट गई थी।इस मंदिर से आल्हा-ऊदल का इतिहास भी जुड़ा है।

मंदिर के इतिहास में लिखा है कि राजा दक्ष की पुत्री का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार राजा दक्ष बहुत बड़ी यज्ञ का अनुष्ठान किए थे। अनुष्ठान में सभी को निमंत्रण पत्र भेजा गया था। राजा दक्ष बेटी और दामाद को निमंत्रण नहीं दिए थे। पिता के अनुष्ठान की भनक लगने के बाद बेटी बिना बुलाए पहुंच गई थी। जिससे राजा दक्ष बेटी को देखकर बहुत क्रोधित हो गए थे। गुस्से में बेटी और भगवान शिव दोनों का बहुत अपमान कर दिए थे। पिता के अपमान से आहत बेटी सती हो गई थी। माता सती के अपमान की जानकारी होने पर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए थे। जिससे सती के शव को कंधे पर रखकर तांडव नृत्य करने लगे। भगवान शिव के गुस्से वाले तांडव नृत्य से चारों तरफ प्रलय आ गई। इस प्रलय से संसार को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने सती के पुनर्जन्म और भगवान शिव के तांडव नृत्य को रोकने के लिए सती के शरीर को सुदर्शन से काटकर 52 टुकड़े कर दिए।

मान्यता है कि माता सती के टुकड़े और आभूषण जहां जहां गिरे हुए थे। वही स्थान पवित्र होकर 52 शक्तिपीठ बन गए। मैहर माता भी एक शक्तिपीठ माना जाता है। मैहर में माता सती के गले का हार गिरा था। जिससे इसका नाम मैहर माता हो गया था। मैहर का अर्थ मां के हार से जुड़ा है। मैहर में शारदा माता का मंदिर मध्यप्रदेश के सतना जिले में है। मंदिर हिंदुओं के आस्था का केंद्र माना जाता है। मंदिर का रहस्य किसी से छिपा नहीं हैं। कहा जाता है कि मंदिर खुलने से पहले ही माता शारदा की पूजा हो जाती है।

शारदा माता का मंदिर त्रिकूट पर्वत पर है। इसकी ऊंचाई 600 फिट है। मंदिर में जाने के लिए भक्तों को 1001 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मान्यता है कि आल्हा ने यहां 12 वर्ष तपस्या की थी। आल्हा ऊदल दोनों भाइयों ने ही इस मंदिर की खोज की थी। वे यहां की माता को माई कहकर पुकारते थे। इसलिए यहां की माता को शारदा माई कहा जाने लगा था। एक अन्य मान्यता के अनुसार आदि शंकराचार्य ने यहां की पहली पूजा की थी। मंदिर को लेकर तरह-तरह की किंवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि शाम की आरती के बाद जब पुजारी मंदिर के द्वार बंद कर लौट जाते हैं तो मंदिर के अंदर से घंटी और पूजा करने की आवाज आती है। लोगों का मानना है कि सुबह की आरती भी वही करते हैं।

मंदिर के एक पुजारी का कहना है कि मंदिर में मां का पहला श्रृंगार आल्हा करते हैं। जब ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर के द्वार खोले जाते हैं तो यहां पूजा हुई मिलती है। पुजारी का कहना है कि इस रहस्य का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों की टीम भी आई थी। लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। बुंदेलखंड के महोबा में एक परमार रियासत थी। आल्हा और ऊदल नाम के दो भाई इनके सामंत थे। ये दोनों वीर और प्रतापी योद्धा थे। कालिंजर के परमार राजा के राज्य में एक कवि जगनिक थे। कवि ने आल्हा खंड नाम का काव्य लिखा था। इसमें दोनों भाइयों की वीरता की 52 कहानियां लिखी गईं हैं। इसके अनुसार इन्होंने आखिरी लड़ाई पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ लड़ी थी। कहा जाता है कि इस लड़ाई में पृथ्वीराज हार गए थे, लेकिन गुरु गोरखनाथ के आदेश पर इन्होंने पृथ्वीराज को जीवनदान दे दिया था। इसके बाद वैराग्य लेकर संन्यासी हो गए।

मंगलवार से चैत्र नवरात्र शुरू हो रहा है। जिससे नवरात्र में रोजाना लाखों भक्त माता के दरबार में माथा टेकने आते हैं। शारदा माता विद्या और बुद्धि की देवी है। जाने माने कथा व्यास आचार्य पंडित कृष्ण देव शुक्ल और आचार्य संतोष मिश्र शास्त्री ने बताया कि मैहर माता का रहस्य किसी को पता नहीं है। मंदिर खुलने के पहले पहली पूजा हो जाती है। नवरात्र में देवी का दर्शन पाने के लिए अपार भीड़ जमा होती है।

Updated : 13 April 2024 12:03 PM GMT
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स्वदेश डेस्क

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