चॉकलेट की तरह बंट रहे हैं प्रदूषण अनापत्ति प्रमाण-पत्र
ग्वालियर| ग्वालियर व चम्बल संभाग में धड़ल्ले से संचालित खदानों, क्रेशरों और फैक्ट्रियों ने प्रदूषण नियंत्रण संबंधी नियमों को खूंठी पर टांग रखा है। क्रेशर और खदानें प्रदूषण नियंत्रण के उपाय किए बिना धड़ल्ले से संचालित किए जा रहे हैं। वहीं शहर के अंदर और सीमा पर स्थित दोनों प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों मालनपुर और बामौर में भी कई फैक्ट्रियां प्रदूषण नियमों का उल्लंघन कर धुंआ और रसायन युक्त गंदगी फैला रही हैं। वहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी निर्धारित सुविधा शुल्क लेकर कार्यालय में बैठकर ही अनापत्ति प्रमाण-पत्र बांट रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में बिलौआ में संचालित क्रेशरों और खदानों को एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण के उपाय नहीं किए जाने और खनिज के परिवहन के चलते जर्जर सड़क से उड़ती धूल के कारण बंद करा दिया था, जबकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड स्थानीय नागरिकों की इस समस्या पर मौन साधे बैठा रहा। अब भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा क्रेशरों, खदानों और प्रदूषण फैलाने वाले उपक्रमों का भौतिक सत्यापन नहीं करके कार्यालय में बैठकर ही रिपोर्ट तैयार की जा रही है और सुविधा शुल्क लेकर धड़ल्ले से अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी किए जा रहे हैं और इनका नवीनीकरण भी कार्यालय में बैठकर ही किया जा रहा है, जबकि नियमानुसार अधिकारी को संबंधित संस्थान पर पहुंचकर वहां प्रदूषण फैलाने वाले उपकरणों अथवा कारणों की जांच करना चाहिए। संबंधित उपक्रम से फैलने वाले प्रदूषण की मात्रा और मानक की जांच के बाद इसके नियमों की परिधि में आने पर ही इसे अनापत्ति प्रमाण-पत्र अथवा इसका नवीनीकरण प्रमाण-पत्र दिया जा सकता है।
अधिकारी नहीं देते नियमों की जानकारी
क्रेशर, खदानों और प्रदूषण फैलाने वाले उपक्रमों को प्रदूषण अनापत्ति प्रमाण-पत्र जारी करने से पूर्व किन-किन प्रदूषण नियंत्रण संबंधी उपाय करना आवश्यक है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी इस संबंध में किसी भी तरह की जानकारी नहीं देना चाहते। रिश्वत की दम पर अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाले और प्रतिवर्ष इसका नवीनीकरण कराने वाले अधिकांश संस्थान प्रदूषण नियमों की अनदेखी कर धड़ल्ले से अपना कारोबार कर रहे हैं।
रिश्वत नहीं तो प्रमाण-पत्र नहीं
जिन उपक्रमों के संचालन हेतु पर्यावरण के अनापत्ति प्रमाण-पत्र की आवश्यकता होती है। ऐसे संस्थान द्वारा पर्यावरण नियमों का पूरी तरह पालन करने के बाद भी पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड कार्यालय से स्थल निरीक्षण के नाम पर लम्बे समय तक अटकाए रखा जाता है और बार-बार चक्कर लगवाए जाते हैं। परेशान होकर अंतत: ईमानदार कारोबारी अथवा उद्योगपति को भी रिश्वत देकर ही अपना काम कराना पड़ता है। इसकी भरपाई के लिए वह भी प्रदूषण नियमों को ताक पर रखकर धड़ल्ले से कारोबार करता है।
अवैध खदान व क्रेशरों पर कार्रवाई नहीं
जिले में धड़ल्ले से जारी अवैध खनन और क्रेशर कारोबार को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरी तरह अनदेखा किए हुए है। अवैध खनन, परिवहन और नियमों को खूंठी पर टांगकर धूल उड़ाते क्रेशरों की जानकारी प्रदूषण विभाग के अधिकारियों को भी है और जिला प्रशासन को भी, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं करना चाहता।
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